tag:blogger.com,1999:blog-60205921524391433902024-03-14T13:31:39.700+05:30* समग्र उन्नयन *यह ब्लॉग जीवन के सर्वांगीण(लौकिक व लोकोत्तर) विकास को समर्पित एक प्रयास है |वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.comBlogger94125tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-62234066358776057922013-08-21T20:36:00.004+05:302013-08-21T20:36:58.613+05:30<div style="text-align: center;">
<span style="color: orange;">॥ॐतत्सवितुर्वरेण्यं॥</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: orange;">॥ॐश्रीगुरवेनमः॥</span></div>
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<br /></div>
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<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"> कृपया हमारे नये ब्लॉग पर पधारें...</span></div>
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<div style="text-align: center;">
धन्यवाद।</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-62650287223749958912013-03-09T14:17:00.003+05:302013-03-09T14:17:31.521+05:30महाशिवरात्रि : 10-3-13<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: orange;">!! तत्सवितुर्वरेण्यं !!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: orange;">!! ॐ श्री गुरवे नम: !!</span></div>
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<br /></div>
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<br /></div>
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शिवरात्रि अथवा महाशिवरात्रि सनातन धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक का बहुत महत्त्व माना गया है और इस पर्व पर रुद्राभिषेक करने से सभी रोग और दोष समाप्त हो जाते हैं।</div>
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<br /></div>
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पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है कि विश्व के प्रत्येक पदार्थ में दो तत्व- अग्नि और सोम मुख्य रूप से रहते हैं। अग्नि प्राण-तत्व है और सोम प्राण का आयतन। आयतन अर्थात शरीर। शरीर में ही प्राणों का संचार होता है। संवत्सर में छह ऋतुएं होती हैं। ये ऋतुएं अग्नि (गर्मी) और सोम (शीतलता) के कारण दो भागों में विभक्त होती हैं। वसंत, ग्रीष्म और वर्षा अग्नि-ऋतुएं हैं तथा शरद, हेमंत और शिशिर सोम-ऋतुएं हैं। अग्नि को पुरुष और सोम को स्त्री माना गया है। इन दोनों के मेल से सृष्टि का उद्भव होता है।</div>
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<br /></div>
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जब अग्नि की वृद्धि होती है, तब सोम की मात्रा कम हो जाती है और सोम की मात्रा में वृद्धि होती है, तब अग्नि की मात्रा कम हो जाती है। लेकिन एक समय ऐसा भी आती है, जिसमें अग्नि और सोम की मात्रा एक समान हो जाती है। यह वसंत ऋतु है। वेदों की मान्यता है कि यह अग्नि और सोम का समागम काल होता है। वेदों में कहा गया है कि अग्नि स्वयं शिव हैं- यो वै रुद्र: सो अग्नि:। वहीं सोम मां उमा पार्वती हैं। वेद कहता है - श्रीर्वैसोम:। शिव और पार्वती के मिलन के समय दोनों का ताप एक जैसा हो जाता है। यही वसंत सम्पात है। यही समय है शिवरात्रि का। इसे ही शिव-पार्वती के विवाह का दिन माना जाता है। उनके मिलन और विश्व की उत्पत्ति का दिन माना जाता है।</div>
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<br /></div>
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<br /></div>
<h4 style="text-align: left;">
* शिवरात्रि क्या है?</h4>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
शिवरात्रि वह रात्रि है जिसका शिवतत्त्व से घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिव की अतिप्रिय रात्रि को शिव रात्रि कहा जाता है। शिव पुराण के ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदिदेव भगवान शिव करोडों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए-</div>
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: blue;">ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का महत्त्व है। महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परमसुख, शान्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<h4 style="text-align: left;">
* पौराणिक कथाएँ</h4>
<div style="text-align: justify;">
महाशिवरात्रि के महत्त्व से संबंधित तीन कथाएँ इस पर्व से जुड़ी हैं:-</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>प्रथम कथा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
एक बार मां पार्वती ने शिव से पूछा कि कौन-सा व्रत उनको सर्वोत्तम भक्ति व पुण्य प्रदान कर सकता है? तब शिव ने स्वयं इस शुभ दिन के विषय में बताया था कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात्रि को जो उपवास करता है, वह मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्ध्य तथा पुष्प आदि समर्पण से उतना प्रसन्न नहीं होता, जितना कि व्रत-उपवास से।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>द्वितीय कथा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
इसी दिन, भगवान विष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान आकार प्रकट हुआ था। ईशान संहिता के अनुसार – श्रीब्रह्मा व श्रीविष्णु को अपने अच्छे कर्मों का अभिमान हो गया। इससे दोनों में संघर्ष छिड़ गया। अपना महात्म्य व श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दोनों आमादा हो उठे। तब शिव ने हस्तक्षेप करने का निश्चय किया, चूंकि वे इन दोनों देवताओं को यह आभास व विश्वास दिलाना चाहते थे कि जीवन भौतिक आकार-प्रकार से कहीं अधिक है। शिव एक अग्नि स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। इस स्तम्भ का आदि या अंत दिखाई नहीं दे रहा था। विष्णु और ब्रह्मा ने इस स्तम्भ के ओर-छोर को जानने का निश्चय किया। विष्णु नीचे पाताल की ओर इसे जानने गए और ब्रह्मा अपने हंस वाहन पर बैठ ऊपर गए। वर्षों यात्रा के बाद भी वे इसका आरंभ या अंत न जान सके। वे वापस आए, अब तक उनक क्रोध भी शांत हो चुका था तथा उन्हें भौतिक आकार की सीमाओं का ज्ञान मिल गया था। जब उन्होंने अपने अहम् को समर्पित कर दिया, तब शिव प्रकट हुए तथा सभी विषय वस्तुओं को पुनर्स्थापित किया। शिव का यह प्राकट्य फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को ही हुआ था। इसलिए इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।</div>
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<br /></div>
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>तृतीय कथा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
इसी दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह हुआ था। भगवान शिव का ताण्डव और भगवती का लास्य नृत्य दोनों के समन्वय से ही सृष्टि में संतुलन बना हुआ है, अन्यथा ताण्डव नृत्य से सृष्टि खण्ड- खण्ड हो जाये। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण दिन है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<h4>
* बेल (बिल्व) पत्र का महत्त्व</h4>
<div style="text-align: justify;">
बेल (बिल्व) के पत्ते श्रीशिव को अत्यंत प्रिय हैं। शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है। एक बार उसे जंगल में देर हो गयी, तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची- वह सारी रात एक-एक कर पत्ता तोडकर नीचे फेंकता जाएगा। कथानुसार, बेलवृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख, शिव प्रसन्न हो उठे। जबकि शिकारी को अपने शुभ कृत्य का आभास ही नहीं था। शिव ने उसे उसकी इच्छापूर्ति का आशीर्वाद दिया। यह कथा न केवल यह बताती है कि शिव को कितनी आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है, बल्कि यह भी कि इस दिन शिव पूजन में बेल पत्र का कितना महत्त्व है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: blue;">$*$</span> <span style="color: red;">रात्रि में चारों प्रहरों की पूजा में अभिषेक जल में पहले पहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घी और चौथे में शहद को मुख्यत: शामिल करना चाहिए।</span> <span style="color: blue;">$*$</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>* शिवरात्रि पर चार प्रहर पूजन काल :- (जयपुर के अक्षांश-रेखांश के आधार से)</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>प्रथम - सायं 6:29 से रात्रि 9:32 तक</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>द्वितीय - रात्रि 9:33 से 12:36 तक</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>तृतीय - मध्यरात्रि बाद 12:37 से 3:40 तक</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>चतुर्थ - मध्यरात्रि बाद 3:41 से प्रातः 6:45 तक</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>अथवा स्थानिक चौघडिये भी ग्राह्य हैं |</b></div>
<div style="text-align: right;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: right;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b> <span style="color: red;">सभी को शुभकामनाएं...</span></b></div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-66552483085263650132012-12-26T13:37:00.001+05:302012-12-26T13:37:05.702+05:30कुंभ 2013<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
प्रयागराज (इलाहबाद) में कुंभ महापर्व, मकर में सूर्य व वृष के बृहस्पति में मनाया जाता है |<br />
<br />
यथा- <span style="color: red;">''मकरे च दिवानाथे वृष राशि गते गुरौ |</span><br />
<span style="color: red;"> प्रयागे कुम्भयोगो वै माघ मासे विधुक्षये ||''</span><br />
<br />
इस प्रमाण से देवगुरु बृहस्पति दिनांक 17 मई 2012 ई. को प्रातः 9:35 पर वृष राशि में प्रवेश कर चुके हैं तथा सूर्यदेव दिनांक 14 जनवरी 2013 से 12 फरवरी 2013 ई. तक मकर राशि में विचरण करेंगे | जिससे यह कुंभ महापर्व त्रिवेणी संगम प्रयागराज में मकर संक्रांति 14 जनवरी 2013 से शुरु होकर आगामी दो मास तक अर्थात 11 मार्च 2013 ई. तक चलेगा |<br />
<br />
<br />
<b><span style="font-size: large;">इस कुंभ महापर्व के तीन शाही स्नान-</span></b><br />
<b><br /></b>
<b>(1) मकर संक्रांति पर्व - पौष शुक्ल तृतीया, सोमवार, दिनांक- 14.1.13</b><br />
<b>(2) माघी मौनी अमावस्या - माघ कृष्ण अमावस्या, रविवार, दिनांक- 10.2.13</b><br />
<b>(3) बसंत पंचमी - माघ शुक्ल चतुर्थी, गुरुवार, दिनांक- 14.2.13</b><br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;">इस कुंभ महापर्व के अंगभूत स्नान-</span><br />
<br />
(1) पुत्रदा एकादशी, मंगलवार - 22.1.13<br />
(2) पौषी पूर्णिमा, रविवार - 27.1.13<br />
(3) महोदय योग, शनिवार - 9.2.13<br />
(4) कुंभ संक्रांति पुण्यकाल, मंगलवार - 12.2.13<br />
(5) सूर्य रथ सप्तमी, रविवार - 17.2.13<br />
(6) भीष्माष्टमी, सोमवार - 18.2.13<br />
(7) जया एकादशी, गुरुवार - 21.2.13<br />
(8) भीष्म द्वादशी, शुक्रवार - 22.2.13<br />
(9) माघी पूर्णिमा, सोमवार - 25.2.13<br />
(10) विजया एकादशी, शुक्रवार - 8.3.13<br />
(11) महा शिवरात्रि, रविवार - 10.3.13<br />
(12) सोमवती अमावस्या, सोमवार - 11.3.13<br />
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-60920618657864132102012-12-26T13:00:00.001+05:302012-12-26T13:00:18.557+05:30कुम्भ पर्व<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक- में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष इस पर्व का आयोजन होता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ होता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">पौराणिक कथा</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार ऋषि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र 'जयंत' अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतएव कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है।</div>
<div style="text-align: justify;">
जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है।</div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-29509868206859644742012-12-25T16:58:00.005+05:302012-12-25T17:14:57.380+05:30!! गोविंद दामोदर स्तोत्र !!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGEsoPDZAQ8liNbyVtoTdbYvvEY-I2W9gWBYvDPHnUnu1MzjjD2xN46dM_9ztO1WDWA0LVeUxxBVOtOYdAjl7rkapn8jgn1yfn0JpVSwrNQuQWMNbA7sLdMRVmbNtr_Uvd-nWIRxpNkDT1/s1600/krishna-on-leaf.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="297" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGEsoPDZAQ8liNbyVtoTdbYvvEY-I2W9gWBYvDPHnUnu1MzjjD2xN46dM_9ztO1WDWA0LVeUxxBVOtOYdAjl7rkapn8jgn1yfn0JpVSwrNQuQWMNbA7sLdMRVmbNtr_Uvd-nWIRxpNkDT1/s400/krishna-on-leaf.jpg" width="400" /></a></div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">करारविन्देन पदारविन्दं</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">मुखारविन्दे विनिवेशयन्तं !</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">बाल मुकन्दं मनसा स्मरामि !1!!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">हे नाथ नारायण वासुदेव !</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">गोविन्द दामोदर माधवेति !2!!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">विक्रेतुकामा किल गोपकन्या</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">मुरारिपादार्पितचित्तवृति: !</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">दध्यादिकं मोहवशादवोचद्</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">गोविन्द दामोदर माधवेति !3!!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">गृहे गृहे गोपवधुकदंबा:</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">सर्वे मिलित्वा समवाप्य योगं !</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्य</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">गोविन्द दामोदर माधवेति !4!!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">सुख शयना निलये निजेअपि</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">नामानि विष्णोः प्रवदन्ति मत्:र्या: !</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">ते निश्चितं तन्मयतां व्रजदन्ति</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">गोविन्द दामोदर माधवेति !5!!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">जिह्वे सदैवं भज सुन्दराणि</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">नामानि कृष्णस्य मनोहराणि !</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">समस्त भक्तार्तिविनाशनानि</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">गोविन्द दामोदर माधवेति !6!!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">सुखावसाने इदमेव सारं</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम !</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">देहावसाने इदमेव जाप्यं</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">गोविन्द दामोदर माधवेति !7!!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">गोपाल गोवर्धननाथ विष्णो !</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">जिह्वे </span><span style="color: red; font-size: large;">पिबस्वा</span><span style="color: red; font-size: large;">मृतमेतदेव</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">गोविन्द दामोदर माधवेति !8!!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red; font-size: large;">*******************</span></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
इस स्तोत्र का जाप रोज संध्या करते समय करना चाहिए, इसका नित्य जाप करने से भगवान गोविन्द (कृष्ण) की कृपा होती है और पारिवारिक क्लेशो से छुटकारा मिलता है, व घर व परिवार में शान्ति बनी रहती है |</div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-39473879164999605482012-12-25T16:46:00.000+05:302012-12-25T16:46:00.167+05:30।। मधुराष्टकं ।।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-V_iqC-YY_8ggOIVOgpwZ3gG_HJWaMSBUjcpEl4oVmV3_bFCrz_qkTZZHV0gFyu10ruDTEs2_lHTRRa6oPWjAIWMzDaZNgCbv0jU51YJvgWFBzqanRpI_x6yBeWG0Kfpp07xORwRBfMka/s1600/rk00.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="235" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-V_iqC-YY_8ggOIVOgpwZ3gG_HJWaMSBUjcpEl4oVmV3_bFCrz_qkTZZHV0gFyu10ruDTEs2_lHTRRa6oPWjAIWMzDaZNgCbv0jU51YJvgWFBzqanRpI_x6yBeWG0Kfpp07xORwRBfMka/s400/rk00.jpg" width="400" /></a></div>
<br /><table align="center" border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="background-color: white; color: black; font-family: Helvetica, Verdana, Arial; font-size: 14px; height: 45px; line-height: 28px; text-align: left; width: 405px;"><tbody>
<tr style="font-size: 12px;"><td><h3 style="color: red; font-size: 16px; text-align: justify;">
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।<br />हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। १ ।।<br /><br />वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्<br />चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। २ ।।</h3>
</td></tr>
</tbody></table>
<table align="center" border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="background-color: white; color: black; font-family: Helvetica, Verdana, Arial; font-size: 14px; height: 45px; line-height: 28px; text-align: left; width: 395px;"><tbody>
<tr style="font-size: 12px;"><td><h3 style="color: red; font-size: 16px; text-align: justify;">
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।<br />नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ३ ।।</h3>
</td></tr>
</tbody></table>
<table align="center" border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="background-color: white; color: black; font-family: Helvetica, Verdana, Arial; font-size: 14px; height: 45px; line-height: 28px; text-align: left; width: 391px;"><tbody>
<tr style="font-size: 12px;"><td><h3 style="color: red; font-size: 16px; text-align: justify;">
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।<br />रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ४ ।।</h3>
</td></tr>
</tbody></table>
<table align="center" border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="background-color: white; color: black; font-family: Helvetica, Verdana, Arial; font-size: 14px; height: 45px; line-height: 28px; text-align: left; width: 412px;"><tbody>
<tr style="font-size: 12px;"><td><h3 style="color: red; font-size: 16px; text-align: justify;">
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।<br />वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ५ ।।</h3>
</td></tr>
</tbody></table>
<table align="center" border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="background-color: white; color: black; font-family: Helvetica, Verdana, Arial; font-size: 14px; height: 45px; line-height: 28px; text-align: left; width: 411px;"><tbody>
<tr style="font-size: 12px;"><td><h3 style="color: red; font-size: 16px; text-align: justify;">
गुञ्जा मधुरा बाला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।<br />सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ६ ।।</h3>
</td></tr>
</tbody></table>
<table align="center" border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="background-color: white; color: black; font-family: Helvetica, Verdana, Arial; font-size: 14px; height: 45px; line-height: 28px; text-align: left; width: 392px;"><tbody>
<tr style="font-size: 12px;"><td><h3 style="color: red; font-size: 16px; text-align: justify;">
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।<br />दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ७ ।।</h3>
</td></tr>
</tbody></table>
<table align="center" border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="background-color: white; color: black; font-family: Helvetica, Verdana, Arial; font-size: 14px; line-height: 28px; text-align: left; width: 404px;"><tbody>
<tr style="font-size: 12px;"><td><h3 style="color: red; font-size: 16px; text-align: justify;">
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।<br />दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ८ ।।</h3>
</td></tr>
</tbody></table>
<br /><table align="center" border="0" cellpadding="1" cellspacing="1" style="background-color: white; color: black; font-family: Helvetica, Verdana, Arial; font-size: 14px; line-height: 28px; text-align: left; width: 380px;"><tbody>
<tr style="font-size: 12px;"><td><h3 style="color: red; font-size: 16px; text-align: justify;">
इति श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं मधुराष्टकं सम्पूर्णं ।।</h3>
</td></tr>
</tbody></table>
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">*************</span></div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-40062594936866240262012-12-21T20:23:00.000+05:302014-11-03T14:26:28.405+05:30गीता जयंती - मोक्षदा एकादशी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEil09VLMyBQi_TAjOgEu0KecpjvhTmOxwCMEkygrU-Qn3wgrQBdGSn0Y7yOVwRlbhV9LMNg2tMR6F0WgJwE5EG4Zs9E1IJV8ZygAvQJgGnbuCfhKhKFCcU6qvJ18xGGzmUGtIYADgdhef40/s1600/GitaBhagvat-Gita-thumbnail.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEil09VLMyBQi_TAjOgEu0KecpjvhTmOxwCMEkygrU-Qn3wgrQBdGSn0Y7yOVwRlbhV9LMNg2tMR6F0WgJwE5EG4Zs9E1IJV8ZygAvQJgGnbuCfhKhKFCcU6qvJ18xGGzmUGtIYADgdhef40/s320/GitaBhagvat-Gita-thumbnail.jpg" height="240" width="320" /></a><b>ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि ''गीता जयंती'' के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है। इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है।</b> भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय में कहते हैं, मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूँ। इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs71Dh2BqZA2puFt1rnj1-Gw3P5fI-omZIyA72Ntt5-ZRLYVRt5zi1RG3tZEds4Eal_sd38vZ3as_RtzA82kdzEKP7EYn66f5X_wK6Uz-z0T-hZ_fDQUm55WESxjio3oFdULzNj74qvn5Z/s1600/GitaBhagavadGitaChap2Verse20.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs71Dh2BqZA2puFt1rnj1-Gw3P5fI-omZIyA72Ntt5-ZRLYVRt5zi1RG3tZEds4Eal_sd38vZ3as_RtzA82kdzEKP7EYn66f5X_wK6Uz-z0T-hZ_fDQUm55WESxjio3oFdULzNj74qvn5Z/s400/GitaBhagavadGitaChap2Verse20.jpg" height="283" width="400" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjs71Dh2BqZA2puFt1rnj1-Gw3P5fI-omZIyA72Ntt5-ZRLYVRt5zi1RG3tZEds4Eal_sd38vZ3as_RtzA82kdzEKP7EYn66f5X_wK6Uz-z0T-hZ_fDQUm55WESxjio3oFdULzNj74qvn5Z/s1600/GitaBhagavadGitaChap2Verse20.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><br /></a>भगवद्गीता के पठन-पाठन, श्रवण एवं मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता के भाव आते हैं। गीता केवल लाल कपड़े में बाँधकर घर में रखने के लिए नहीं बल्कि उसे पढ़कर संदेशों को आत्मसात करने के लिए है। गीता का चिंतन अज्ञानता के आचरण को हटाकर आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है। गीता भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास है। गीता ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हम सब हर काम में तुरंत नतीजा चाहते हैं लेकिन भगवान ने कहा है कि धैर्य के बिना अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी। गीता केवल ग्रंथ नहीं, कलियुग के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है। जिसके जीवन में गीता का ज्ञान नहीं वह पशु से भी बदतर होता है। भक्ति बाल्यकाल से शुरू होना चाहिए। अंतिम समय में तो भगवान का नाम लेना भी कठिन हो जाता है तो गीता कहां जीवन में उतर पायेगी। </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
दुर्लभ मनुष्य जीवन हमें केवल भोग विलास के लिए नहीं मिला है, इसका कुछ अंश भक्ति और सेवा में भी लगाना चाहिए। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। अध्यात्म और धर्म की शुरुआत सत्य, दया और प्रेम के साथ ही संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फलेगा और फूलेगा। गीता तो मरना भी सिखाती है, जीवन को तो धन्य बनाती ही है। गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं यह एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9Y2TWpT9Q3HZZweMBbj30Zq6r39vqUDiTfl-nZCOfB9gO5VRK9jqdGWijcaNxPJznhJKn5fbjtaM8aFxwb-HlcAI5l4NpYu_IXpRyrsYJtrnoTsEqlTCA1VM6AGDYajYKoNxYZv6375dq/s1600/gita2.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em; text-align: justify;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9Y2TWpT9Q3HZZweMBbj30Zq6r39vqUDiTfl-nZCOfB9gO5VRK9jqdGWijcaNxPJznhJKn5fbjtaM8aFxwb-HlcAI5l4NpYu_IXpRyrsYJtrnoTsEqlTCA1VM6AGDYajYKoNxYZv6375dq/s320/gita2.jpg" height="320" width="224" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>कर्म की अवधारणा को अभिव्यक्त करती गीता चिरकाल से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना तब रही। विचारों को तर्क दृष्टी के द्वारा बहुत ही सरल एवं प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया गया है, संसार के गूढ़ ज्ञान तथा आत्मा के महत्व पर विस्तृत एवं विशद वर्णन प्राप्त होता है। गीता में अर्जुन के मन में उठने वाले विभिन्न सवालों के रहस्यों को सुलझाते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें सही एवं गलत मार्ग का निर्देश प्रदान करते हैं। संसार में मनुष्य कर्मों के बंधन से जुड़ा है और इस आधार पर उसे इन कर्मों के दो पथों में से किसी एक का चयन करना होता है। इसके साथ ही परमात्मतत्त्व का विशद वर्णन करते हुए अर्जुन की शंकाओं का समाधान करते हैं। गीता आत्मा एवं परमात्मा के स्वरूप को व्यक्त करती है। कृष्ण के उपदेशों को प्राप्त कर अर्जुन उस परम ज्ञान की प्राप्ति करते हैं जो उनकी समस्त शंकाओं को दूर कर उन्हें कर्म की ओर प्रवृत करने में सहायक होती है। गीता के विचारों से मनुष्य को उचित बोध कि प्राप्ति होती है, यह आत्मतत्व का निर्धारण करता है, उसकी प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। आज के समय में इस ज्ञान की प्राप्ति से अनेक विकारों से मुक्त हुआ जा सकता है।</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
आज जब मनुष्य भोग विलास, भौतिक सुखों, काम वासनाओं में जकडा़ हुआ है और एक दूसरे का अनिष्ट करने में लगा है तब इस ज्ञान का प्रादुर्भाव उसे समस्त अंधकारों से मुक्त कर सकता है क्योंकि जब तक मानव इंद्रियों की दासता में है, भौतिक आकर्षणों से घिरा हुआ है, तथा भय, राग, द्वेष एवं क्रोध से मुक्त नहीं है तब तक उसे शांति एवं मुक्ति का मार्ग प्राप्त नहीं हो सकता।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">!! हरिहरॐ !!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">!! प्रेम.शान्ति.आनंद !!</span></div>
<br /></div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-74710878274504988402012-12-21T16:46:00.002+05:302012-12-21T16:46:43.444+05:30जरूरी है दादा-दादी का साथ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
बदलती जीवन शैली और व्यवसायिक परिस्थितियों ने व्यक्ति को अपना घर-परिवार, अपने माता-पिता से दूर जीवन व्यतीत करने के लिए विवश कर दिया है | आय के बेहतर अवसरों की तलाश और आर्थिक स्थिति सशक्त बनाने के लिए व्यक्ति जब अपने अभिभावकों से अलग दूसरे शहरों में रहने लगता है, तो ऐसे में वह वहीं अपना परिवार बसा लेता है, परिणामस्वरूप आधुनिक परिप्रेक्ष्य में एकल परिवारों की संख्या में दिनोंदिन वृद्धि होने लगी है |</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
भले ही यह एकल परिवार आज के युवाओं की पहली पसंद हों, लेकिन हाल ही में हुए एक शोध ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बच्चों के प्रारंभिक विकास के लिए परिवार के बड़े-बुजुर्गों का सांनिध्य अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है | <b>सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि यह सर्वेक्षण एक ब्रिटिश संस्थान द्वारा कराया गया है,</b> जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता और हितों को अत्यधिक महत्व मिलने के चलते संयुक्त परिवारों का औचित्य न के बराबर है | वह भी इस तथ्य को स्वीकारते हैं कि दादा-दादी, बच्चों को केवल लाड़-प्यार ही नहीं करते बल्कि उनके नैतिक और मानसिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं |</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यद्यपि यह शोध एक विदेशी कंपनी द्वारा कराया गया है, लेकिन यह भारतीय परिदृश्य के संदर्भ में और अधिक प्रासंगिक प्रतीत होता है | आमतौर पर यह देखा जा सकता है कि विदेशों में जहां एक ओर बच्चे अपने अभिभावकों को पर्याप्त महत्व नहीं देते वहीं अभिभावक भी बच्चों के जीवन में हस्तक्षेप नहीं कराते हैं, जो एकल परिवारों की प्रमुखता का कारण बनता है | इसके परिणामस्वरूप आपसी और करीबी संबंध भी बेहद औपचारिक बन जाते हैं | लेकिन <b>भारत में ऐसी परिस्थितियां पाश्चात्य देशों का अत्यधिक अनुसरण करने की ही देन हैं जो वैश्वीकरण और उदारीकरण जैसी नीतियों के भारत में आगमन के बाद पैदा हुई हैं | संयुक्त परिवार का महत्व गौण होने के पीछे सबसे बड़ा उत्तरदायी कारक लोगों में आत्मकेंद्रित होती मानसिकता है जो उन्हें केवल अपने परिवार और अपने तक ही सीमित रखती है |</b> तथाकथित मॉडर्न होते युवा माता-पिता के साथ रहना आउट ऑफ फैशन समझते हैं | अपना अलग घर, अपनी अलग दुनियां बसाना उन्हें बहुत आकर्षक लगता है | इसके अलावा बढ़ती महंगाई भी एक और कारण है जिसकी वजह से घर में ज्यादा सदस्य होना बोझिल लगने लगता है, लेकिन आज की युवा पीढी अपने मौज-शौक में कोई कटौती करने को तैयार नहीं, अल्बत्ता बडे-बुज़ुर्गों की छत्रछाया हो न हो |</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
भले ही एकल परिवार, आजकल की वैवाहिक दंपत्ति को एक अच्छा विकल्प लगता हों, लेकिन निश्चित तौर पर दादा-दादी से दूरी बच्चों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है | <b>ऐसा नहीं है बुजुर्गों से दूरी बच्चों को असभ्य बनाती है, लेकिन अगर दादा-दादी का साथ हो तो बच्चे और अधिक भावुक और समझदार हो जाते हैं |</b> आजकल के दौर में जब महिलाएं भी घर से बाहर काम करने जाती हैं और बच्चे घर में अकेले होते हैं तो ऐसे में अगर उन्हें दादा-दादी का साथ मिल जाए तो वह खुद को सहज महसूस तो करते ही हैं, इसके अलावा उन्हें अपने परिवार की उपयोगिता भी भली-भांति समझ में आती है |</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
माँ(दादी) के स्नेह को समर्पित...</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
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<br /></div>
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</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">!! हरिहरॐ !!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">!! प्रेम.शान्ति.आनंद !!</span></div>
<br />
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-35490922532160181032012-12-11T17:29:00.000+05:302012-12-11T17:35:34.402+05:30* दो सीख *<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
पिछले दिनों एक पुराने साथी ने इस बात का उलाहना दिया कि इस बार मैनें दिवाली की बधाई का फोन नहीं किया | एकबारगी तो जवाब देने का मन नहीं हुआ, लेकिन जब उससे कंट्रोल ही नहीं हुआ तो मैनें सोचा... आज तो इसका मुँह बंद करना ही पडेगा | वो जब बोल चुका तो मैनें कहा, हम पिछले कई सालों से कॉंन्टेक्ट में हैं, इन सालों में होली, दिवाली, सकरात(संक्रांति), तेरा बर्थ-डे, तेरी शादी की सालगिराह, यहाँ तक कि तेरी श्रीमति के बर्थ-डे तक पे मैनें कॉल किया, कभी-कभी तो ऐसा भी हुआ है कि तेरे बर्थ-डे पे सिर्फ़ मैनें ही कॉल किया था; अब तू ज़रा मुझे याद करके बता के तूने आखरी बार कब मुझे कॉल किया था? बेचारे की बोलती बंद हो गई, मैनें थोडी रियायत बरती और पूछा, चल ये ही बता दे कि मेरा बर्थ-डे कब आता है? इस बार बेचारे का मुँह लटक गया |</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
थोडी देर शांति छाई रही, कुछ देर बाद मैंनें कहा, अगर मैं तुझसे पूछुं के तूने कॉल क्यूं नहीं किया, तो तेरा जवाब क्या होगा? यही न कि बिज़ी था, इसलिए ध्यान नहीं रहा, तो मेरे भाई, जब तू इतना ही बिज़ी है तो मैं तुझे फोन करके डिस्टर्ब क्यों करुँ? इतना सुनने के बाद वो कुछ ना बोल पाया |</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उसकी बोलती तो बंद हो गई लेकिन इस घटना ने मुझे दो सीख दी,</div>
<div style="text-align: justify;">
पहली, <b>किसी को उलाहना देने या बुरा कहने से पहले अपने अंदर भी झांक लो, कहीं वो कमियाँ तुम्हारे अंदर भी तो नहीं;</b></div>
<div style="text-align: justify;">
और दूसरी, <b>रिश्ते निभाने से निभते हैं, बहाने ढूंढने से नहीं, टाईम किसी के पास नहीं है, सब अपनी-अपनी लाइफ में बिज़ी हैं, रिश्तों के लिए टाईम निकालना पडता है, किसी ने कहा भी है, ''रिश्ते बना उतना आसान है जितना मिट्टी से मिट्टी पर मिट्टी लिखना और निभाना उतना ही मुश्किल है जितना पानी से पानी पर पानी लिखना |</b></div>
<br />
<br />
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">''हरिहरॐ''</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">प्रेम.शांति.आनंद</span></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-86418728249271230242012-11-29T17:52:00.002+05:302012-11-29T17:52:54.087+05:30* व्रत एवं पर्व * [29 नवंबर से 28 दिसंबर, सन् 2012]<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<b>* व्रत एवं पर्व *</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>विक्रम संवत् 2069</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>मार्गशीर्ष प्रतिपदा से मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>[तदनुसार 29 नवंबर से 28 दिसंबर, सन् 2012]</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
29 नवंबर- गोप मास प्रारंभ, कात्यायनी मासिक पूजा शुरू, रोहिणी व्रत (जैन)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
30 नवंबर- अशून्यशयन व्रत</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
2 दिसंबर- संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, सौभाग्यसुंदरी व्रत</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
3 दिसंबर- वीड पंचमी-श्रीमनसादेवी, शयन एवं विषहरा पूजा (मिथिलांचल), अन्नपूर्णामाता का 16 दिवसीय व्रत प्रारंभ (काशी), डॉ. राजेंद्र प्रसाद जयंती</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
6 दिसंबर- श्रीकालभैरवाष्टमी व्रत (कालाष्टमी), कालभैरव दर्शन-पूजन (काशी, उज्जयिनी)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
7 दिसंबर- प्रथमाष्टमी (उड़ीसा), सशस्त्र सेना दिवस-झण्डा दिवस, आताल-पाताल सवारी (उज्जयिनी)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
8 दिसंबर- अनला नवमी (उड़ीसा), श्रीमहावीर स्वामी दीक्षा कल्याणक (जैन)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
9 दिसंबर- उत्पत्ति/उत्पन्ना एकादशी व्रत (स्मार्त्त), वैतरणी एकादशी, डॉ.राजगोपालाचार्य जयंती</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
10 दिसंबर- उत्पत्ति/उत्पन्ना एकादशी व्रत (वैष्णव)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
11 दिसंबर- भौम-प्रदोष व्रत (ऋणमोचन हेतु प्रशस्त), मासिक शिवरात्रि व्रत, संत ज्ञानेश्वर पुण्य दिवस</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
12 दिसंबर- मेला पुरमण्डल एवं देविका-स्नान (जम्मू-काश्मीर)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
13 दिसंबर- स्नान-दान-श्राद्ध की मार्गशीर्षी अमावस्या</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
14 दिसंबर- नवीन चंद्र-दर्शन, रूद्र व्रत (पीडिया व्रत) मार्तण्ड (मल्लारि) भैरव षठ्रात्र प्रारम्भ (महाराष्ट्र एवं मालवा)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
15 दिसंबर- <b>धनु-संक्रान्ति रात्रि 8.15 बजे(जयपुर), संक्रान्ति के स्नान-दान का पुण्यकाल मध्याह्न से सूर्यास्त तक, शुभ कार्यों में वर्जित धनु (खर) मास प्रारंभ</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
16 दिसंबर- वरदविनायक चतुर्थी व्रत</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
17 दिसंबर- विवाहपंचमी- श्रीसीता एवं श्रीराम विवाहोत्सव (मिथिलांचल, अयोध्या), नागपंचमी (दक्षिण भारत)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
18 दिसंबर- श्रीराम कलेवा, स्कन्दषष्ठी व्रत, चम्पाषष्ठी, मूलकरूपिणी षष्ठी (बंगाल), सुब्रह्मण्यम षष्ठी (द.भा.),</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
19 दिसंबर- मित्र सप्तमी, विष्णु-नन्दा-भद्रा सप्तमी, निम्ब सप्तमी, नरसी मेहता जयंती,</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
20 दिसंबर- श्रीदुर्गाष्टमी व्रत</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
21 दिसंबर- कल्पादि, महानंदा नवमी, श्रीहरि जयंती, सूर्य सायन मकर राशि में सायं 4.42 बजे(जयपुर) तदनुसार सूर्य उत्तरायण प्रारंभ, सौर शिशिर ऋतु प्रारंभ</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
22 दिसंबर- राष्ट्रीय पौष मास प्रारंभ</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
23 दिसंबर- मोक्षदा एकादशी व्रत (स्मार्त्त), गीता जयंती, वैकुण्ठ एकादशी (द.भा.), मौनी ग्यारस (जैन), किसान दिवस, श्रद्धानन्द पुण्य दिवस</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
24 दिसंबर- एकादशी व्रत (वैष्णव), अखण्ड द्वादशी, केशव द्वादशी, मस्त्य द्वादशी, व्यंजन द्वादशी (गौड़ीय वैष्णव), पक्षवर्द्धिनी महाद्वादशी, श्यामबाबा द्वादशी, धरणी व्रत, उपभोक्ता दिवस</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
25 दिसंबर- भौम-प्रदोष (ऋणमोचन हेतु), दान द्वादशी (उड़ीसा), महामना मालवीय जयंती (तारीखानुसार)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
26 दिसंबर- रोहिणी व्रत (जैन), जोड़ मेला 3 दिन (फतेहगढ़ साहिब, पंजाब)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
27 दिसंबर- पिशाच-मोचन चतुर्दशी, त्रिपुर भैरव जयंती, चांद्र पूर्णिमा व्रत, श्री दत्तात्रेय जयंती</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
28 दिसंबर- श्रीसत्यनारायण व्रत-कथा-पूर्णिमा, त्रिपुरा महाविद्या एवं अन्नपूर्णा जयंती</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>आगे 29 दिसंबर से 27 जनवरी तक पौष मास होगा |</b></div>
<br />
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">!! हरिहरॐ !!</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="color: red;">!! प्रेम*शांति*आनंद !!</span></div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-6616059558683463532012-11-26T16:50:00.000+05:302014-11-03T14:16:41.856+05:30देव दिवाली : कार्तिक पूर्णिमा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9QPF9JemQKoH9qaoUXM25wuLY1PZp5EGSV70gzxYI6klBMfFIK4RlQmk0F4WTZFTSSP9NJCLyV_lzlTYG_uV_iX73D9NVHyDX7XHU7HihmBtwAoamQWHrLuu7cw3bam0GYkJywEmgqyDG/s1600/dev+diwali+1.png" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9QPF9JemQKoH9qaoUXM25wuLY1PZp5EGSV70gzxYI6klBMfFIK4RlQmk0F4WTZFTSSP9NJCLyV_lzlTYG_uV_iX73D9NVHyDX7XHU7HihmBtwAoamQWHrLuu7cw3bam0GYkJywEmgqyDG/s1600/dev+diwali+1.png" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
सनातन धर्म में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है| प्रत्येक वर्ष 12 पूर्णिमाएं होती हैं, जब अधिकमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 13 हो जाती है| कार्तिक पूर्णिमा को <b>त्रिपुरी पूर्णिमा</b> के नाम से भी जाना जाता है| इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि इसी दिन भगवान शिवजी ने त्रिपुरासुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे| <b>[एक मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है]</b> इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय <b>शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया</b> और <b>क्षमा</b>, इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से भगवान शिवजी की प्रसन्नता प्राप्त होती है| इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है|</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>पुराणों के अनुसार</b>, इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए <b>मत्स्य अवतार</b> धारण किया था|</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBayIPGrcsjWnV7RgELcdBOnMku2wyQhhuIFRzt3TLJ4qs2tdSkC8QFEl-e18ZZ3_p0Fy_HnAcc837IiuVQFnsbHw13rsQjJ_9glIpnqniy4tZzSGnv8kjAnVsGr0wZK4kPWinw-O9ipnt/s1600/dev+Diwali+2.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBayIPGrcsjWnV7RgELcdBOnMku2wyQhhuIFRzt3TLJ4qs2tdSkC8QFEl-e18ZZ3_p0Fy_HnAcc837IiuVQFnsbHw13rsQjJ_9glIpnqniy4tZzSGnv8kjAnVsGr0wZK4kPWinw-O9ipnt/s1600/dev+Diwali+2.png" /></a>एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णुजी कार्तिक शुक्लैकादशी को जागरण के उपरांत पूर्णिमा से किशेष क्रियाशील होते हैं, जिसके उपलक्ष में देवता दिवाली मनाते हैं, इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा को <b>देवदिवाली</b> भी कहा जाता है|</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>महाभारत के अनुसार</b>, महाभारत काल में हुए 18 दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्रीकृष्ण पांडवों सहित गढ़खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए| कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया| इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की| इसलिए इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का विशेष महत्व है|</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
एक मान्यता यह भी है कि इस दिन, पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है| जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान शिवजी का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है| इस पूर्णिमा को <b>शैव मत</b> में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी|</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>वैष्णव मत</b> में भी कार्तिक पूर्णिमा को बहुत अधिक मान्यता मिली है इस पूर्णिमा को <b>महाकार्तिकी</b> भी कहा गया है| यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है| अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है| इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह <b>महापूर्णिमा</b> कहलाती है| कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो "<b>पद्मक योग</b>" बनता है, जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है|</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>महत्व</b> : कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीपदान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है| इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है| इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है| मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है|</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, पुष्कर, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है|</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>स्नान और दान विधि</b> : ऋषि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है| शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें| आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें|</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>अतिविशिष्टदान : इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य है, क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है|</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>गुरुनानक जयंती</b> : सिक्ख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देवजी का जन्म हुआ था| इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के अनुयायी गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक देवजी के अनुसरण का संकल्प करते हैं, इसे <b>गुरु पर्व</b> भी कहा जाता है|</div>
<br />
<br />
<b>सभी को देव दिवाली/ गुरुनानक जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं...</b><br />
<br />
<br />
<div style="text-align: center;">
!! हरिहरॐ !!</div>
<div style="text-align: center;">
!! प्रेम*शांति*आनंद !!</div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-19277920349637785762012-11-04T22:17:00.000+05:302012-11-04T22:17:24.347+05:30अहोई अष्टमी : 07.11.12 <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कार्तिक कृष्ण अष्टमी को महिलायें अपनी सन्तान की रक्षा और दीर्घायुष्य के लिए यह व्रत रखती हैं. इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध करते प्रदर्शन किया जाता है. माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोईमाता का पूजन किया जाता है. यह अहोई गेरु आदि के द्वारा दीवाल पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर अहोई काढकर पूजा के समय उसे दीवाल पर टांग दिया जाता है. अहोई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है, उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है. सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं. जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है. अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है, तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
ज्योतिष शास्त्रानुसार, अहोई अष्टमी 7 नवम्बर, बुधवार को होगी. इसमें पूजन लिए समय का कोई विशेष मुहुर्त नहीं है, यह पारिवारिक परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है. एक मान्यता से तारों की छांव में, तो अन्य मान्यता से चंद्रमा को अर्ध्य देकर अहोई माता की पूजन की पूर्णता का विधान है. इससे पूर्व अहोई माता की कहानी सुन कर उनका पूजन किया जाता है.</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijhNnhcQwXAFiY0DTO37H0kj5CmZG7ZRd2HU7PVIXvmw53_xnaAY95rRobMkJ0Ibv3_WkAg87WolEExfyXycqdX7QBGDmbCq3SMOa7F1vkK35CD-Ys9vhtwn7kwo3jw7kABP-xcfL8c1Yx/s1600/ahoi-Astami.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijhNnhcQwXAFiY0DTO37H0kj5CmZG7ZRd2HU7PVIXvmw53_xnaAY95rRobMkJ0Ibv3_WkAg87WolEExfyXycqdX7QBGDmbCq3SMOa7F1vkK35CD-Ys9vhtwn7kwo3jw7kABP-xcfL8c1Yx/s320/ahoi-Astami.jpg" width="224" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>अहोई अष्टमी व्रत विधि-</b></div>
<div style="text-align: justify;">
विधि-विधान: अहोई व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं, ऐसा संकल्प करें. अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें. अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पर्वती की पूजा करें. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें. अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे सेह या स्याहु कहते हैं. इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है. पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें. पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं.</div>
<div style="text-align: justify;">
पूजा के पश्चात सासु-मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करें.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>अहोई अष्टमी व्रत कथा-</b></div>
<div style="text-align: justify;">
अहोई अष्टमी को लेकर दो कथाएं हैं, उनमें से एक कथा में साहूकार की पुत्री के द्वारा घर को लीपने के लिए मिट्टी लाते समय मिट्टी खोदने हेतु खुरपा(कुदाल) चलाने से साही के बच्चों के मरने से संबंधित है. इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें कोई भी काम अत्यंत सावधानी से करना चाहिए अन्यथा हमारी जरा सी गलती से किसी का ऐसा बडा नुकसान हो सकता है, जिसकी हम भरपाई न कर सकें और तब हमें उसका कठोर प्रायश्चित करना पडेगा. इस कथा से अहिंसा की प्रेरणा भी मिलती है. अहोईअष्टमी की दूसरी कथा मथुरा जिले में स्थित राधाकुण्डमें स्नान करने से संतान-सुख की प्राप्ति के संदर्भ में है. अहोई अष्टमी के दिन पेठे का दान करें.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
!! हरिॐ तत्सत् !!</div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-76264473785860872012-10-15T21:05:00.000+05:302012-10-15T21:05:04.092+05:30नवरात्र पूजन विधि<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
शारदीय नवरात्र शक्ति की उपासना का महापर्व है.</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9zq1XFvIX2z3pA-OAKMublOFVpw1KnwsiVt0p3bUPIp5u8_wHbzMLE9d1jTwAIgPoGgEdHTmciFVo-x_ZrEVui6Q00EUig_WBI0q4GvpmBemTf4_tsQDj5FxO4Vckd4y4UuZr6qQX6mPY/s1600/durga-maa.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="385" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9zq1XFvIX2z3pA-OAKMublOFVpw1KnwsiVt0p3bUPIp5u8_wHbzMLE9d1jTwAIgPoGgEdHTmciFVo-x_ZrEVui6Q00EUig_WBI0q4GvpmBemTf4_tsQDj5FxO4Vckd4y4UuZr6qQX6mPY/s400/durga-maa.jpg" width="400" /></a></div>
<br />
<span style="color: blue; text-align: justify;">मार्कण्डेयपुराणके अंतर्गत देवी-माहात्म्य में स्वयं जगदम्बा का आदेश है-</span><br />
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">शरत्काले महापूजा क्रियतेया चवार्षिकी।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">तस्यांममैतन्माहात्म्यंश्रुत्वाभक्तिसमन्वित:॥</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">सर्वाबाधाविनिर्मुक्तोधनधान्यसुतान्वित:।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">मनुष्योमत्प्रसादेनभविष्यतिन संशय:॥</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अर्थ- <b>शरद् ऋतु के नवरात्र में जो मेरी वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे माहात्म्य (दुर्गासप्तशती) को भक्तिपूर्वक सुनेगा, वह मनुष्य मेरी कृपा से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
नवरात्रमें दुर्गासप्तशती को पढने अथवा सुनने से देवी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं. सप्तशती का पाठ उसकी मूल भाषा संस्कृत में करने पर ही उसका सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है. श्रीदुर्गासप्तशतीको भगवती दुर्गा का ही स्वरूप समझना चाहिए.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white;"><span style="color: blue;">* पाठ करने से पूर्व पुस्तक का इस मंत्र से पंचोपचारपूजन करें-</span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">नमोदेव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">नम: प्रकृत्यैभद्रायैनियता:प्रणता:स्मताम्॥ </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यदि आप दुर्गासप्तशती का संस्कृत में पाठ करने में असमर्थ हों तो सप्तश्लोकी दुर्गा को पढें. सात श्लोकों वाले इस स्तोत्र में सप्तशती का सार समाहित है. जो इतना भी न कर सके वह केवल दुर्गा नाम को मंत्र मानकर उसका अधिकाधिक जप करे.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white;"><span style="color: blue;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white;"><span style="color: blue;">* नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन इस प्रकार करें-</span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">आगच्छ वरदेदेवि दैत्यदर्प-निषूदिनी।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">पूजांगृहाणसुमुखि नमस्तेशंकरप्रिये।।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: blue;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: blue;">* देवी के पूजन के समय यह मंत्र पढें-</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधानमोऽस्तुते॥</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: blue;">* षोडशोपचारविधि से देवी की पूजा करने के उपरान्त यह प्रार्थना करें-</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;">रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
देवि! मेरा कल्याण करो. मुझे श्रेष्ठ सम्पत्ति प्रदान करो. मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखे जाते हैं. <b>व्रत का विधान गुरु - कुल की परम्परा के अनुसार बन जाता है.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: red;">**</span></b> ऋषियों ने सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए <b>सप्तरात्र</b>, <b>पंचरात्र</b>, <b>त्रिरात्र</b>, <b>युग्मरात्र</b> और <b>एकरात्र</b> व्रत का विधान भी बनाया है.</div>
<div style="text-align: justify;">
प्रतिपदा से सप्तमीपर्यन्त उपवास रखने से <b>सप्तरात्र-व्रत</b> का अनुष्ठान होता है. इस व्रत को करने वाले अष्टमी के दिन माता को हलवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में प्रसाद को ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं.</div>
<div style="text-align: justify;">
<b>पंचरात्र-व्रत</b> पंचमी को दिन में केवल एक बार, षष्ठी को केवल रात्रि में एक बार, सप्तमी को बिना मांगे जो कुछ मिल जाय अर्थात अयाचित भोजन करके, अष्टमी को पूरी तरह उपवास रखकर, नवमी में केवल एक बार भोजन करने से पूर्ण होता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
सप्तमी, अष्टमी और नवमी को केवल एक बार फलाहार करने से <b>त्रिरात्र व्रत</b> होता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
आरंभ और अंत के दिनों में मात्र एक बार आहार लेने से <b>युग्मरात्र व्रत</b> तथा नवरात्र के प्रारंभिक अथवा अंतिम दिन उपवास रखने से <b>एकरात्र-व्रत</b> सम्पन्न होता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjglNfAsJm7yaqLeDWswqGs98cH-E-IG9LKwq4Wr4b8ISMTfCJ_85dQbld1OiuLeFpLtY7G0A004cPYW0ne-5aFXOGINcl11CteaJEGPSQDQBaYT17k12qZPSY1QOyC3ti8DxcUVa_lAGg/s1600/nav-durga+01.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" height="251" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjglNfAsJm7yaqLeDWswqGs98cH-E-IG9LKwq4Wr4b8ISMTfCJ_85dQbld1OiuLeFpLtY7G0A004cPYW0ne-5aFXOGINcl11CteaJEGPSQDQBaYT17k12qZPSY1QOyC3ti8DxcUVa_lAGg/s400/nav-durga+01.jpg" width="400" /></a>नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन <span style="color: red;">शैलपुत्री</span> की, द्वितीया में <span style="color: red;">ब्रह्मचारिणी</span>, तृतीया में <span style="color: red;">चंद्रघण्टा</span>, चतुर्थी में <span style="color: red;">कूष्माण्डा</span>, पंचमी में <span style="background-color: white;"><span style="color: red;">स्कन्दमाता</span></span>, षष्ठी में <span style="color: red;">कात्यायनी</span>, सप्तमी में <span style="color: red;">कालरात्रि</span>, अष्टमी में <span style="color: red;">महागौरी</span> तथा नवमी में <span style="color: red;">सिद्धिदात्री</span> की पूजा करें. </div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjglNfAsJm7yaqLeDWswqGs98cH-E-IG9LKwq4Wr4b8ISMTfCJ_85dQbld1OiuLeFpLtY7G0A004cPYW0ne-5aFXOGINcl11CteaJEGPSQDQBaYT17k12qZPSY1QOyC3ti8DxcUVa_lAGg/s1600/nav-durga+01.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em; text-align: center;"><br /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>नवरात्रमें नवदुर्गा की उपासना करने से नवग्रहों का प्रकोप भी शांत हो जाता है. रावण का वध करने के लिए शारदीय नवरात्र का व्रत स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्रजी ने किया था.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
!! हरिॐ तत्सत् !!</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="http://www.facebook.com/akvashishtha2011" target="_blank"><span style="color: red;"><b>''वशिष्ठ''</b></span></a></div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-1800554031357715232012-10-15T19:19:00.000+05:302012-10-15T21:50:39.596+05:30शारदीय नवरात्रा - घटस्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त्त<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfhueBsPT9CNd8pg1A08FIIcMqXyfpcCreywTJaQL6FzApP-VH8a4YGfUNtEm5kVDsWLU4ros0Jc0Lbz6StyjQuO6piiWQfHuadUb2lbDi-rxqOmcow7X5TOF93Lanl08kLNbsqMvF_bsu/s1600/kalash.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfhueBsPT9CNd8pg1A08FIIcMqXyfpcCreywTJaQL6FzApP-VH8a4YGfUNtEm5kVDsWLU4ros0Jc0Lbz6StyjQuO6piiWQfHuadUb2lbDi-rxqOmcow7X5TOF93Lanl08kLNbsqMvF_bsu/s400/kalash.jpg" width="300" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अश्विन शुक्ल प्रतिपदा मंगलवार दिनांक 16 अक्टूबर, 2012 ई. को शारदीय नवरात्रा आरंभ हो रहे हैं. देवी पुराण में नवरात्रा के दिन देवी का आह्वान, स्थापना व पूजन का समय प्रातःकाल लिखा है किन्तु इस दिन चित्रा नक्षत्र व वैधृति योग को वर्जित बताया गया है. इस वर्ष आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को वैधृति योग का संयोग तो नहीं हो रहा है, किन्तु चित्रा नक्षत्र का संयोग प्रातः 06:45 बजे तक होने से घटस्थापना का श्रेष्ठ समय अभिजित काल ही रहेगा. अत: <b><span style="color: red;">इस वर्ष शारदीय नवरात्रा में घटस्थापना दोपहर अभिजित मुहूर्त्त में 11:50 से 12:35 बजे तक करना श्रेष्ठ रहेगा.</span></b> <span style="color: blue;">चौघडिये के हिसाब से घटस्थापना करने वाले दिन के 09:22 से दोपहर बाद 01:38 बजे तक क्रमश: चर, लाभ व अमृत के चौघडियों में भी घटस्थापना कर सकते हैं.</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: orange;">(विशेष- समय गणना जयपुर के अक्षांश-रेखांश आधारित है, अतः अपने नगर के अनुसार अवश्य देखें)</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
!! हरिॐ तत्सत् !!</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;"> <b><a href="http://www.facebook.com/akvashishtha2011" target="_blank">''वशिष्ठ''</a></b></span></div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-27427882318498875382012-10-15T18:06:00.001+05:302012-10-15T21:54:08.169+05:30आदिशक्ति की आराधना का पर्व: शारदीय नवरात्र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiADp6E2I3shmjqJTohgECM1UBpzZMxLKv5_CDkrVJG8fjp0lAG4LGaXW-icSWrAlbRHa3_2PhQ3l9x5B62GgM_V_-ek8ndcsVO7vZ0LjIP_wEm0-kpFQ97PC5x9gjD-M4xQkCZMBrDsaHx/s1600/Durga-Mata-282.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="255" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiADp6E2I3shmjqJTohgECM1UBpzZMxLKv5_CDkrVJG8fjp0lAG4LGaXW-icSWrAlbRHa3_2PhQ3l9x5B62GgM_V_-ek8ndcsVO7vZ0LjIP_wEm0-kpFQ97PC5x9gjD-M4xQkCZMBrDsaHx/s400/Durga-Mata-282.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
मंगलवार से शारदीय नवरात्र पर्व शुरू होगा. नवरात्र के पहले दिन घट स्थापन कर दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की जाती है और पूरे नौ दिन व्रत और दुर्गा सप्तशती का पाठ का विधान है. पूरे नवरात्र अखंड दीप जलाकर माँ की स्तुति की जाती है और उपवास रखा जाता है. नवरात्र के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देकर व्रत का समापन किया जाता है. वर्ष में नवरात्र दो बार आते हैं. चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होने वाले नौ दिवसीय पर्व को <b><span style="color: red;">वासंतिक नवरात्र</span></b> कहा जाता है और अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले नवरात्र को <b><span style="color: red;">शारदीय नवरात्र</span></b> कहते हैं.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
नवरात्र में भगवती के नौ रूपों - <b><span style="color: red;">शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी</span></b> और <b><span style="color: red;">सिद्धिदात्री</span></b> की पूजा-आराधना का विधान है. माँ जगदंबा शक्ति की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं और उनकी उपासना का पर्व है नवरात्र. <b><span style="color: blue;">नवरात्र के दिनों को तीन भागों में बांटा गया है. पहले तीन दिनों में तमस को जीतने की आराधना, अगले तीन दिन रजस और आखिरी तीन दिन सत्व को जीतने की अर्चना के माने गए हैं.</span></b> नवरात्र पर्व का आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक महत्व है. यह पर्व नवरात्र के अलावा दुर्गा पूजा, कुल्लू दशहरा, मैसूर दशहरा, बोम्मई कोलू, आयुध पूजा, विद्यारंभ, सरस्वती पूजा और सिमोल्लंघन आदि नामों से देश के विभिन्न भागों में मनाया जाता है. यह पर्व ऋतु परिवर्तन को भी दर्शाता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
नवरात्र के पहले दिन ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूजा करने व व्रत रखने का संकल्प लिया जाता है. <b>यह व्रत नौ, सात, पांच या तीन दिन का किया जा सकता है</b>. इस दौरान व्रती को एक समय भोजन व नियम-संयम युक्त दिनचर्या का पालन करना जरूरी माना गया है. यह व्रत आबाल-वृद्ध कोई भी कर सकता है. माँ दुर्गा के 51 शक्तिपीठ माने गए हैं (मतांतर से 52), जहाँ विशेष अर्चना की जाती है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
मार्कंडेय पुराण के अंतर्गत देवी महात्म्य में दुर्गा ने स्वयं को शाकंभरी अर्थात साग-सब्जियों से विश्व का पालन करने वाली बताया है. देवी का एक और नाम कूष्मांडा भी है. इससे स्पष्ट है कि माँ दुर्गा का संबंध वनस्पतियों से भी प्रतीकात्मक रूप से जुड़ा है. <b><span style="color: red;">दुर्गा पूजा का मूल महत्व मातृशक्ति की पूजा है. शक्ति में सृजन की जो क्षमता होती है, उसी की हम पूजा करते हैं. शक्ति का सही रूप सृजन धर्मा है. प्रकृति अपने नारी रूप में जगत को धारण करती है, उसका पालन करती है और शक्ति रूप में संतुलन बिगड़ने पर विध्वंसकारी शक्तियों का विनाश कर सार्थक शक्ति का संचार करती है.</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: red;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: blue;">अध्यात्म में नवरात्र पर्व की विशेष मान्यता है. कारण कि नवरात्र में किए गए प्रयास, शुभ संकल्प पराम्बा की कृपा से सफल होते हैं.</span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b></b></div>
<b>आगे नवरात्र के विशेष लेखों का क्रम चलेगा.</b><br />
<b><br /></b>
<b><br /></b>
<b><span style="color: red;">अगला लेख घटस्थापना के श्रेष्ठ मुहूर्त्त पर...</span></b><br />
<b><br /></b>
<b><br /></b>
<b> !! हरिॐ तत्सत् !!</b><br />
<b><br /></b>
<b><br /></b>
<b> <span style="color: red;">''वशिष्ठ''</span></b><br />
<br /></div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-13684753182645984492012-10-15T17:24:00.004+05:302012-10-15T17:25:26.320+05:30* व्रत-पर्व * -(16 से 29 अक्टूबर सन् 2012)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
* व्रत-पर्व *<br />
<br />
विक्रम संवत् 2069<br />
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन पूर्णिमा तक<br />
(अक्टूबर सन् 2012- 16 से 29)<br />
<br />
16 अक्टूबर- शारदीय नवरात्र प्रारंभ, कलश (घट) स्थापना, नाती द्वारा नाना-नानी का श्राद्ध अपराह्न काल, महाराज अग्रसेन जयंती, सूर्य तुला संक्रान्ति.<br />
<br />
17 अक्टूबर- नवीन चंद्र-दर्शन, रेमन्त-पूजन (मिथिलांचल), तुला संक्रान्ति के स्नान-दान का पुण्यकाल पूर्वान्ह तक.<br />
<br />
18 अक्टूबर- सिंदूर तृतीया, चतुर्थी तिथि क्षय, वरदविनायक चतुर्थी व्रत, माना चतुर्थी (बंगाल, उड़ीसा), रथोत्सव चतुर्थी,<br />
<br />
19 अक्टूबर- उपांग ललिता पंचमी व्रत, नत पंचमी (उडीसा)<br />
<br />
20 अक्टूबर- शारदीय दुर्गा पूजा प्रारम्भ, बिल्वाभिमंत्रण षष्ठी, गजगौरी व्रत, स्कन्दषष्ठी व्रत, तपषष्ठी (उड़ीसा), मूल नक्षत्र में सरस्वती (देवी) का आवाहन, छठ पूजा-मेला आमेर (जयपुर)<br />
<br />
21 अक्टूबर- महासप्तमी व्रत-पूजा, शारदीय त्रिदिनात्मक दुर्गा पूजा-पत्रिका प्रवेश (बंगाल), पूर्वाषाढा नक्षत्र में सरस्वती (देवी) की पूजा, भानुसप्तमी पर्व, नवपद ओली प्रारंभ (श्वेत.जैन), नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज का स्थापना दिवस.<br />
<br />
22 अक्टूबर- श्रीदुर्गा-महाअष्टमी व्रत-पूजा, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, अन्नपूर्णा माता दर्शन-पूजन एवं परिक्रमा (काशी), उत्तराषाढा नक्षत्र में सरस्वती देवी के लिये बलिदान, कुमारिका पूजन, सूर्य सायन वृश्चिक राशि में शेषरात्रि 5.44 बजे, सौर हेमंत ऋतु प्रारंभ.<br />
<br />
23 अक्टूबर- श्रीदुर्गा-महानवमी व्रत-पूजा, श्रवण नक्षत्र में सरस्वती (देवी) का विसर्जन, शारदीय नवरात्र पूर्ण.<br />
<br />
24 अक्टूबर- नवरात्रौत्थापन, विजयादशमी (दशहरा), स्वयंसिद्ध अबूझ मुहूर्त्त, आयुध व अपराजिता पूजा, श्री माधवाचार्य जयंती, संयुक्त राष्ट्र दिवस.<br />
<br />
25 अक्टूबर- पापांकुशा एकादशी व्रत (सबका).<br />
<br />
26 अक्टूबर- पद्मनाभ द्वादशी, श्यामबाबा द्वादशी, गणेशशंकर विद्यार्थी जयंती.<br />
<br />
27 अक्टूबर- शनि-प्रदोष व्रत.<br />
<br />
28 अक्टूबर- मारवाड़ उत्सव प्राम्भ- 2 दिन का जोधपुर.<br />
<br />
29 अक्टूबर- शरद्पूर्णिमा व्रतोत्सव, कोजागरी पर्व, लक्ष्मी-पूजा (बंगाल), महारास पूर्णिमा (ब्रज), श्रीबांकेबिहारी द्वारा मोर-मुकुट व कटि-काछनी तथा वंशी धारण करना, लक्ष्मी एवं इंद्र पूजा, रात्रि-जागरण, आदिकवि मुनि वाल्मीकि जयंती, श्री मत्स्येन्द्रनाथ उत्सव (उज्जयिनी), अग्र महाकुंभ (अग्रोहा), स्नान-दान-व्रत की आश्विनी पूर्णिमा, श्रीसत्यनारायण पूजा-कथा, कुमार पूर्णिमा (उड़ीसा), नवान्न पूर्णिमा, डाकोर जी का मेला (गुजरात), कार्तिक स्नान प्रारंभ, कार्तिक मास के लिए आकाशदीप-दान प्रारंभ, ब्रज-परिक्रमा प्रारंभ.<br />
.<br />
.....</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-9847178606757231002012-10-14T08:00:00.000+05:302012-10-14T08:00:01.213+05:30इस बार सर्वपितृ अमावस्या विशेष क्यों है ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इस बार 15 अक्टूबर को पडने वाली सर्वपितृ अमावस्या पर 7 साल बाद एक विशेष त्रियोग बना है. सोमवार का दिन तथा हस्त नक्षत्र की साक्षी में 15 अक्टूबर को आने वाली अमावस्या तिथि ''सोमवती सर्वपितृ अमावस्या'' कहलाएगी. इस विशेष पर्वकाल में पितरों की तृप्ति तथा पदवृद्घि के लिए किया गया पूजन विशेष फलदायी रहेगा. शास्त्रों के अनुसार श्राद्घकर्म में भरणी, मघा तथा हस्त नक्षत्र विशेष महत्व रखते हैं. </div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>'गर्गसंहिता'</b> के अनुसार तिथियों के अलावा इन नक्षत्रों में पितरों का पूजन करने से पितृ तृप्त तो होते ही हैं तथा पितृलोक में उनके पद में विशिष्ट वृद्घि भी होती हैं.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
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हस्त नक्षत्र की उपस्थिति में सर्वपितृ सोमवती अमावस्या पर तुलसी पत्र से पिंडार्चन करना विशेष फलदायी होता है. तुलसी की गंध से पितृगण प्रसन्न होते हैं, <b>'श्राद्घ कल्प'</b> में इसका उल्लेख मिलता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>आशा है आप सभी इस दुर्लभ योग से अवश्य ही लाभ उठायेंगे.</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
!! हरिॐ तत्सत् !!</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
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<b>''वशिष्ठ''</b></div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-25667763799992978742012-10-14T06:00:00.000+05:302012-10-14T06:00:01.631+05:30क्या है सर्वपितृ अमावस्या का महत्व ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
आश्विन कृष्णपक्ष, वह विशिष्ट काल है जिसमें पितरों के लिये तर्पण और श्राद्ध आदि किये जाते है. यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की तिथि होती है किंतु आश्विन मास की अमावस्या पितृपक्ष के लिए उत्तम मानी गई है. इस अमावस्या को <b>सर्वपितृ अमावस्या</b> या <b>पितृविसर्जनी अमावस्या</b> या <b>महालय समापन</b> या <b>महालय विसर्जन</b> आदि नामों से जाना जाता है. यूं तो शास्त्रोक्त विधि से किया हुआ श्राद्ध सदैव कल्याणकारी होता है परन्तु जो लोग शास्त्रोक्त समस्त श्राद्धों को न कर सकें, उन्हें कम से कम आश्विन मास में पितृगण की मरण तिथि के दिन श्राद्ध अवश्य ही करना चाहिए.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
भाद्र शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा से पितरों का काल आरम्भ हो जाता है. यह सर्वपितृ अमावस्या तक रहता है. जो व्यक्ति पितृपक्ष के पन्द्रह दिनों तक श्राद्ध तर्पण आदि नहीं कर पाते हैं और जिन पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सबके श्राद्ध, तर्पण इत्यादि इसी अमावस्या को किये जाते है. इसलिए सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितर अपने पिण्डदान एवं श्राद्ध आदि की आशा से विशेष रुप से आते हैं. यदि उन्हें वहाँ पिण्डदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलती, तो वे अप्रसन्न होकर चले जाते हैं जिससे आगे चलकर पितृदोष लगता है और इस कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. <b>(पितृदोष पर विशेष लेख लिखे जा चुके हैं)</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसे <b>महालय श्राद्ध</b> भी कहते हैं. महा से अर्थ होता है 'उत्सव दिन' और आलय से अर्थ है 'घर' अर्थात कृष्ण पक्ष में पितरों का निवास माना गया है. इसलिए इस काल में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं जो <b>महालय</b> भी कहलाता है. यदि कोई परिवार पितृदोष से कलह तथा दरिद्रता से गुजर रहा हो और पितृदोष शांति के लिए अपने पितरों की मृत्यु तिथि मालूम न हो तो उसे सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध-तर्पणादि करना चाहिए. जिससे पितृगण विशेष प्रसन्न होते हैं और यदि पितृदोष हो तो उसके प्रभाव में भी कमी आती है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अगले लेख में पढें, <b>इस बार सर्वपितृ अमावस्या विशेष क्यों है ?</b></div>
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<br /></div>
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!! हरिॐ तत्सत् !!</div>
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<b>''वशिष्ठ''</b></div>
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वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-33059633099219042832012-10-14T04:00:00.000+05:302012-10-14T04:00:00.477+05:30पितृदोष निवारण के कुछ सरल उपाय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="text-align: justify;"><br /></span>
<span style="text-align: justify;"> पितरों को तृप्त करने के लिए आश्विन मास के कृष्णपक्ष मे जिस तिथि को पूर्वजों का निर्वाण हुआ हो उस तिथि को तिल, जौ, पुष्प, कुश, गंगाजल या शुद्ध जल से तर्पण, पिंडदान और पूजन करना चाहिए. उसके बाद योग्य ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र, फल एवं दान करना चाहिए. गाय, कौआ, पिपीलिका, श्वान को भी देना चाहिए. यह क्रम पंचबलि कहलाता है.</span><br />
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>कुछ नियमित दिनचर्या में किए जाने वाले उपाय निम्न हैं :-</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
पिता का अपमान न करें और उनकी खुशी के लिए हरसंभव कोशिश करें. हर रोज माता-पिता और गुरु के चरण छूकर आशीर्वाद लेने से पितरों की प्रसन्नता मिलती है. अपने बड़े-बुज़ुर्गों का सदैव आदर करें.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
प्रत्येक अमावस्या को गाय के जलते हुए उपले (कंडे, गोबर) पर तैयार शुद्ध भोज्य पदार्थ या खीर रखकर दक्षिण दिशा की ओर मुखकर पितरों से प्रार्थना करें.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
हर रोज संभव हो तो चिडिय़ा या दूसरे पक्षियों के खाने-पीने के लिए अन्न के दानें और पानी रखें.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
प्रत्येक अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या को योग्य ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र आदि दान करने से पितृदोष के विपरीत प्रभाव में कमी आती है. श्राद्धपक्ष या वार्षिक श्राद्ध में ब्राह्मणों के लिए तैयार भोजन में पितरों की पसंद का पकवान जरुर बनाएं.<br />
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
हर रोज तैयार भोजन में से तीन भाग गाय, कुत्ते और कौए के लिए निकालें और उन्हें खिलाएं.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
किसी तीर्थ पर जाएं तो पितरों के लिए तीन बार अंजलि में जल से तर्पण करना न भूलें.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
सूर्योदय के समय सूर्य को देखकर गायत्री मंत्र का उच्चारण करें, इससे आपकी कुंडली मे सूर्य की स्थिति मजबूत होगी. सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक्य भी धारण कर सकते हैं, बशर्ते किसी योग्य ज्योतिषी द्वारा पहले कुंडली जांच लें.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
हर शनिवार को पीपल या वट की जड़ों में दूध चढाएं.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
पितृपक्ष मे अपने पितरों की याद मे वृक्ष, विशेषकर पीपल लगाकर, उसकी सेवा करने से भी पितृदोष से राहत मिलती है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
<br />
अगले लेख में पढें, <b>क्या है सर्वपितृ अमावस्या का महत्व ?</b><br />
<br />
!! हरिॐ तत्सत् !!<br />
<br />
<b>''वशिष्ठ''</b></div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-78521083288409147012012-10-13T15:55:00.002+05:302012-10-13T16:15:17.197+05:30कैसे बनता है पितृदोष ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को पूर्णिमा का श्राद्ध होने के साथ-साथ 'महालयारम्भ' भी होता है. महालय का अर्थ है विभिन्न लोकों में रह रहे पितृगणों का भूलोक (सरलता में इसे पृथ्वी कह सकते हैं) में एकत्र होना. इस तरह भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर सर्वपितृ अमावस्या तक पितृगण सूक्ष्म रुप से भूलोक में ही वास करते हैं. इस पितृपक्ष के समय में पितृगण अपने वंशजों के द्वार पर जाकर, उनसे पितृयज्ञ, श्राद्ध व तर्पणादि की आशा से प्रतीक्षा करते हैं. जब कोई वंशज अपने पूर्वजों के निमित्त ये पवित्र कर्म करता है तो पितरों को अपनी स्थिति से उर्ध्व गति प्राप्त होती है व साथ ही साथ वंशज, पितृऋण से उऋण होता चला जाता है और बदले पितृगण भी अपने वंशजों को संतति, प्रगति व सुख-समृद्धि के वर प्रदान करते हैं. यहाँ यह बात ध्यानपूर्वक समझनी चाहिए कि पितृगण स्वकीय कर्मों के फलस्वरूप किसी भी योनि या अवस्था में हो, वे सदैव अपने वंशज से पितृकर्मों की आशा करते हैं क्योंकि जिस प्रकार हम अपने पूर्वजों के कर्मों के शुभाशुभ फलों से जुडे हैं उसी तरह हमारे पितृ भी हमारे शुभाशुभ कर्मों से जुडे रहते हैं.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>यदि ऐसा ना हो तो ऐसी परिस्थितियों में उस व्यक्ति के पितृगण रूष्ट होकर चले जाते हैं और पितृऋण, जिसे चुकाना हम सभी का कर्त्तव्य है, पितृदोष में बदल जाता है और उस परिवार की आने वाली पीढियों की जन्मकुंडलियों में पितृदोष के रुप में प्रकट होता है</b>. कभी-कभी तो ऐसे अतृप्त पितृगण, प्रेतयोनि में चले जाते हैं और इसके बाद तो जैसे उस परिवार पर कष्टों का पहाड ही टूट पडता है. इसलिए प्रत्येक मनुष्य को पितृकर्म को श्रद्धपूर्वक अवश्य ही करना चाहिए.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
अगले लेख में पढें, पितृदोष निवारण के कुछ सरल उपाय...<br />
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
!! हरिॐ तत्सत् !!</div>
<div>
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>''वशिष्ठ''</b></div>
</div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-83567465011584541252012-10-09T08:00:00.000+05:302012-10-09T08:00:02.674+05:30इन्दिरा एकादशी - 11.10.2012<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<b>भटकते हुए पितरों को गति देने वाली, पितृपक्ष की एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है</b>. इस एकादशी का व्रत करने वाले के सात पीढ़ियों तक के पितृ तर जाते हैं. इस एकादशी का व्रत करने वाला स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_RKKdtLs1clZcS68BwGaJa984irqosUofj8K8gW5fHH4vDmfQjah3Go_CiA_Xcspon2UCu_R5wFM_9vo7943WAhyphenhyphenRhUzW-W6kBDj6dXijTWc8-YVw6H1lanw_-ziugHeIu2iOTnGHwzCy/s1600/shaligramShila_Sringaar.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="295" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_RKKdtLs1clZcS68BwGaJa984irqosUofj8K8gW5fHH4vDmfQjah3Go_CiA_Xcspon2UCu_R5wFM_9vo7943WAhyphenhyphenRhUzW-W6kBDj6dXijTWc8-YVw6H1lanw_-ziugHeIu2iOTnGHwzCy/s400/shaligramShila_Sringaar.jpg" width="400" /></a></div>
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>* विधि</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इस एकादशी के व्रत और पूजा का विधान वही है जो अन्य एकादशियों का है. <b>अंतर केवल यह है कि इस दिन श्री शालिग्राम की पूजा की जाती है</b>. इस दिन स्नानादि से पवित्र होकर भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए तथा पूजा कर आरती करनी चाहिए. फिर पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए. इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसीदल का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>* कथा</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
युधिष्ठिर ने पूछा : हे मधुसूदन ! कृपा करके मुझे यह बताइये कि आश्विन के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ?</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! आश्विन (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार भाद्रपद) के कृष्णपक्ष में <b>‘इन्दिरा’</b> नाम की एकादशी होती है. उसके व्रत के प्रभाव से बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है. नीच योनि में पड़े हुए पितरों को भी यह एकादशी सदगति देनेवाली है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
राजन् ! पूर्वकाल की बात है. सत्ययुग में इन्द्रसेन नाम से विख्यात एक राजकुमार थे, जो माहिष्मतीपुरी के राजा होकर धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करते थे. उनका यश सब ओर फैल चुका था.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
राजा इन्द्रसेन भगवान विष्णु की भक्ति में तत्पर हो गोविन्द के मोक्षदायक नामों का जप करते हुए समय व्यतीत करते थे और विधिपूर्वक अध्यात्मतत्त्व के चिन्तन में संलग्न रहते थे. एक दिन राजा राजसभा में सुखपूर्वक बैठे हुए थे, इतने में ही देवर्षि नारद आकाश से उतरकर वहाँ आ पहुँचे. उन्हें आया हुआ देख राजा हाथ जोड़कर खड़े हो गये और विधिपूर्वक पूजन करके उन्हें आसन पर बिठाया. इसके बाद वे इस प्रकार बोले: ‘ हे मुनिश्रेष्ठ ! आपकी कृपा से मेरी सर्वथा कुशल है. आज आपके दर्शन से मेरी सम्पूर्ण यज्ञ क्रियाएँ सफल हो गयीं. देवर्षे ! अपने आगमन का कारण बताकर मुझ पर कृपा करें.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
नारदजी ने कहा : नृपश्रेष्ठ ! सुनो, मेरी बात तुम्हें आश्चर्य में डालनेवाली है. मैं ब्रह्मलोक से यमलोक में गया था. वहाँ एक श्रेष्ठ आसन पर बैठा और यमराज ने भक्तिपूर्वक मेरी पूजा की. उस समय यमराज की सभा में मैंने तुम्हारे पिता को भी देखा था. वे व्रतभंग के दोष से वहाँ आये थे (<span style="background-color: white; color: #313131; font-family: Arial, Tohama, Helvetica, sans-serif; font-size: 14px; text-align: left;">उन्होने एकादशी का व्रत मध्य में छोड दिया था. उसके कारण उन्हें यमलोक में जाना पडा)</span>. राजन् ! उन्होंने तुमसे कहने के लिए एक सन्देश दिया है, उसे सुनो, उन्होंने कहा है: ‘बेटा ! मुझे ‘इन्दिरा एकादशी’ के व्रत का पुण्य देकर स्वर्ग में भेजो.’ उनका यह सन्देश लेकर मैं तुम्हारे पास आया हूँ. राजन् ! अपने पिता को स्वर्गलोक की प्राप्ति कराने के लिए ‘इन्दिरा एकादशी’ का व्रत करो.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
राजा ने पूछा : भगवन् ! कृपा करके ‘इन्दिरा एकादशी’ का व्रत बताइये. किस पक्ष में, किस तिथि को और किस विधि से यह व्रत करना चाहिए.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
नारदजी ने कहा : राजेन्द्र ! सुनो, मैं तुम्हें इस व्रत की शुभकारक विधि बतलाता हूँ. आश्विन मास के कृष्णपक्ष में दशमी के उत्तम दिन को श्रद्धायुक्त चित्त से प्रतःकाल स्नान करो. फिर मध्याह्नकाल में स्नान करके एकाग्रचित्त हो एक समय भोजन करो तथा रात्रि में भूमि पर सोओ. रात्रि के अन्त में निर्मल प्रभात होने पर एकादशी के दिन दातुन करके मुँह धोओ. इसके बाद भक्तिभाव से निम्नांकित मंत्र पढ़ते हुए उपवास का नियम ग्रहण करो:</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>अघ स्थित्वा निराहारः सर्वभोगविवर्जितः |</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>श्वो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत ||</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
‘कमलनयन भगवान नारायण ! आज मैं सब भोगों से अलग हो निराहार रहकर कल भोजन करुँगा. अच्युत ! आप मुझे शरण दें.’</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
<a name='more'></a><br />
इस प्रकार नियम करके मध्याह्नकाल में पितरों की प्रसन्नता के लिए शालग्राम शिला के सम्मुख विधिपूर्वक श्राद्ध करो तथा दक्षिणा से ब्राह्मणों का सत्कार करके उन्हें भोजन कराओ. पितरों को दिये हुए अन्नमय पिण्ड को सूँघकर गाय को खिला दो. फिर धूप और गन्ध आदि से भगवान ह्रषिकेश का पूजन करके रात्रि में उनके समीप जागरण करो. तत्पश्चात् सवेरा होने पर द्वादशी के दिन पुनः भक्तिपूर्वक श्रीहरि की पूजा करो. उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर भाई-बन्धु, नाती और पुत्र आदि के साथ स्वयं मौन होकर भोजन करो.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
राजन् ! इस विधि से आलस्यरहित होकर यह व्रत करो. इससे तुम्हारे पितर भगवान विष्णु के वैकुण्ठधाम में चले जायेंगे.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् ! राजा इन्द्रसेन से ऐसा कहकर देवर्षि नारद अन्तर्धान हो गये. राजा ने उनकी बतायी हुई विधि से अन्त: पुर की रानियों, पुत्रों और भृत्योंसहित उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कुन्तीनन्दन ! व्रत पूर्ण होने पर आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी. इन्द्रसेन के पिता गरुड़ पर आरुढ़ होकर श्रीविष्णुधाम को चले गये और राजर्षि इन्द्रसेन भी निष्कण्टक राज्य का उपभोग करके, अपने पुत्र को राजसिंहासन पर बैठाकर स्वयं स्वर्गलोक को चले गये. इस प्रकार मैंने तुम्हारे सामने ‘इन्दिरा एकादशी’ व्रत के माहात्म्य का वर्णन किया है. इसको पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>|| ॐ नमो नारायणाय ||</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b> ''वशिष्ठ''</b></div>
</div>
वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-88507931970383577542012-10-08T05:00:00.000+05:302013-12-25T12:21:40.059+05:30पितृदोष<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="text-align: justify;"> </span><br />
<div style="text-align: justify;">
पितृदोष सनातन धर्म की सर्वाधिक महत्वपूर्ण संकल्पनाओं में से एक है. वर्तमान समय में पितृदोष के बारे में बहुत-सी भ्रांतियां आमजन में फैली हुई हैं जिसका कारण है कि पितृदोष के बारे में बहुत से ज्योतिषियों और पंडितों का यह मत है कि पितृदोष पूर्वजों का श्राप होता है, जिसके कारण इससे पीड़ित व्यक्ति जीवन भर तरह-तरह की समस्याओं और परेशानियों, विशेषकर वंशवृद्धि न होना व गृह क्लेश आदि से जूझता रहता है तथा बहुत प्रयास करने पर भी उसे जीवन में सफलता नहीं मिलती और इसके निवारण के लिए पीड़ित व्यक्ति को पूर्वजों की पूजा करवाने के लिए कहा जाता है, जिससे उसके पितृ(पितर) उस पर प्रसन्न हो जाएं तथा उसकी परेशानियों को कम कर दें, जबकि वास्तविकता में यह सारी की सारी धारणा गलत है क्योंकि पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति के पितृ उसे श्राप नहीं देते बल्कि ऐसे व्यक्ति के पितृ तो स्वयं ही शापित होते हैं, जिसका कारण उनके द्वारा किए गए बुरे कर्म होते हैं और जिनका भुगतान उनके वंश में पैदा होने वाले वंशजों को भी करना पड़ता है. जिस तरह संतान अपने पूर्वजों के गुण-दोष धारण करती है, अपने वंश के खून में चलने वाली अच्छाईयां और बीमारियां धारण करती है, अपने बाप-दादाओं से मिली संपत्ति तथा ऋण धारण करती है, पूर्वजों का यश और अपयश धारण करती है उसी तरह से अपने पूर्वजों के द्वारा किए गए अच्छे एवम् बुरे कर्मों के फलों को भी धारण करना पड़ता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कुछ ज्योतिषी तथा पंडित पितृदोष का कारण पितरों का श्राद्ध ठीक से न होना और उससे पितरों के कुपित होने को बताते हैं, जबकि यह संभव ही नहीं है क्योंकि किसी भी व्यक्ति की कुंडली के योग और दोष उस व्यक्ति के जन्म के समय ही निश्चित् हो जाते हैं, तो इसके बाद कोई भी व्यक्ति अपने जीवन काल में अच्छे-बुरे जो भी कर्म करता है, उनके फलस्वरूप पैदा होने वाले योग-दोष उसकी इस जन्म की कुंडली में आ ही नहीं सकते बल्कि ऐसे योग-दोष उसकी अगले जन्मों की कुंडलियों में आते हैं. तो चाहे कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों का श्राद्ध-कर्म ठीक तरह से करे या न करे, उनसे पैदा होने वाले योग-दोष उस व्यक्ति की इस जन्म की कुंडली में कैसे आ सकते हैं? इसलिए जो पितृदोष किसी भी व्यक्ति की इस जन्म की कुंडली में उपस्थित है उसका उस व्यक्ति के इस जन्म के कर्मों से कोई सम्बन्ध नहीं है क्योंकि वह पितृदोष तो उस व्यक्ति को इस जन्म में अच्छे-बुरे कर्म करने की स्वतंत्रता मिलने से पहले ही निर्धारित हो गया था.</div>
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पितृदोष के मूल सिद्धांत को एक पुराणोक्त कथा से आसानी से समझा जा सकता है. यह कथा पतितपावनी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के साथ जुड़ी है. प्राचीन काल में रघुकुल में सगर नाम के राजा हुए, इनके पुत्रों ने भ्रमवश तपस्यारत कपिल मुनि पर आक्रमण कर दिया और कपिल मुनि के नेत्रों से निकली क्रोधाग्नि ने इन सब को भस्म कर दिया. राजा सगर को जब इस बात का पता चला तो वह समझ गए कि कपिल मुनि जैसे महात्मा पर आक्रमण करने के पाप कर्म का फल उनके वंश की आने वाली कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा. इसलिए उन्होंने तुरंत अपने पौत्र अंशुमन को मुनि के पास जाकर इस पाप कर्म का प्रायश्चित पूछने के लिए कहा जिससे उनके वंश से इस पाप कर्म का प्रभाव दूर हो जाए तथा उनके मृतक पुत्रों को भी सद्गति प्राप्त हो. अंशुमन के प्रार्थना करने पर मुनि ने बताया कि इस पाप कर्म का प्रायश्चित करने के लिए उन्हें भगवान ब्रह्माजी को प्रसन्न कर देवनदी गंगा को पृथ्वी पर लाना होगा तथा मृतक राजपुत्रों के अवशेषों को गंगा की पवित्र धारा में प्रवाहित करना होगा, तभी जाकर उनके वंश को इस पाप से मुक्ति मिलेगी. मुनि के कहे अनुसार अंशुमन ने ब्रह्माजी की तपस्या की, किन्तु उनकी जीवन भर की तपस्या से भी ब्रह्माजी प्रसन्न होकर प्रकट नहीं हुए तो उन्होने मरने से पहले यह दायित्व अपने पुत्र दिलीप को सौंप दिया. राजा दिलीप भी जीवन भर ब्रह्माजी की तपस्या करते रहे पर उन्हे भी ब्रह्माजी के दर्शन प्राप्त नहीं हुए तो उन्होने यह दायित्व अपने पुत्र भागीरथ को सौंप दिया. राजा भागीरथ के तप से ब्रह्माजी प्रसन्न होकर प्रकट हुए तथा उन्होने भागीरथ को गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान दिया. वरदान देकर जब भगवान ब्रह्माजी जाने लगे तो राजा भागीरथ ने उनसे एक प्रश्न पूछा, “हे परमपिता, मेरे पितामह और पिता ने जीवन भर आपको प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया परंतु आपने उनमें से किसी को भी दर्शन नहीं दिए जबकि मेरी तपस्या तो उनसे कम थी परतु फिर भी आपने मुझे दर्शन और वरदान दिया, हे प्रभु क्या मेरे पूर्वजों की तपस्या में कोई कमी थी जो उनकी तपस्या व्यर्थ गई”. इसके उत्तर में भगवान ब्रह्माजी ने कहा, “राजन, तपस्या कभी भी व्यर्थ नहीं जाती. आपके पूर्वजों की तपस्या तो कपिल मुनि पर आक्रमण करने के पाप कर्म के निवारण में ही चली गई और आपकी तपस्या के फलस्वरूप गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए आवश्यक पुण्य कर्म संचित हुए हैं. यदि आपके पूर्वजों ने तपस्या करके आपके कुल पर चढ़े हुए पाप कर्मों का भुगतान न किया होता तो आज आपको मेरा दर्शन और वरदान प्राप्त नहीं होता”.</div>
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<span style="background-color: #f3f3f3;"> इस कथा से </span><span style="background-color: white;">स्पष्ट हो जाता है कि राजा सगर के पुत्रों के पाप कर्म से उनके वंश पर जो पितृॠण चढा, उसका भुगतान उनके वंश मे आने वाली पीढ़ियों को करना पड़ा. इस तरह पितृदोष पूर्वजों के श्राप देने से नहीं बल्कि पूर्वजों के स्वयं शापित होने से बनता है और इसके निवारण के लिए पूर्वजों की पूजा नहीं करनी होती है बल्कि पूर्वजों के उद्धार के लिए पितृयज्ञ-तर्पणादि पुण्य कर्म करने होते हैं. जिनके प्रभाव से पितृ अपने पापकर्मों से मुक्त हो सकें.</span></div>
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पितृदोष को समझ लेने के बाद यह भी जान लेना चाहिए कि जन्मकुंडली में उपस्थित किन लक्षणों से पितृदोष का पता चलता है? नव-ग्रहों में सूर्य स्पष्ट रूप से पूर्वजों के प्रतीक हैं, इसलिए किसी कुंडली में सूर्य को बुरे ग्रहों की दृष्टि-युति से पीडित होने पर पितृदोष लगता है. इसके अलावा कुंडली का नवम भाव पूर्वजों से संबंधित होता है, इसलिए यदि कुंडली का नवम भाव या नवमेश बुरे ग्रहों से पीडित हों तो यह भी पितृदोष कहलाता है. इसके अलावा केन्द्र-त्रिकोण व राहु से जुडी कुछ अन्य स्थितियाँ भी पितृदोष बताती हैं. पितृदोष प्रत्येक कुंडली में अलग-अलग तरह के प्रभाव दिखाता है जिनका पूरा ज्ञान कुंडली का विस्तारपूर्वक अध्ययन करने के बाद ही होता है. पितृदोष के निवारण के लिए सबसे पहले कुंडली में उन ग्रहों की पहचान की जाती है जो कुंडली में पितृदोष बना रहे हैं और उसके पश्चात उन ग्रहों के लिए उपाय किए जाते हैं जिनसे पितृदोष के बुरे प्रभावों को कम किया जा सके.</div>
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[आगामी लेखों में पितृदोष से संबंधित कुछ अन्य योगों व पितृदोष निवारण के उपायों के साथ-साथ, पितृयज्ञ व तर्पणादि की सार्थकता से जुडी शंकाओं पर भी चर्चा होगी] </div>
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<b>अभिनव शर्मा ''वशिष्ठ''</b></div>
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वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-14623291286927937562012-09-30T05:00:00.000+05:302012-09-30T05:00:00.866+05:30श्राद्धपक्ष को कनागत (कन्यार्कगत) क्यों कहते हैं ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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भारतीय धर्मग्रंथों में मनुष्य को तीन प्रकार के ऋणों- <b>देवऋण, ऋषिऋण व पितृऋण</b> से मुक्त होना आवश्यक बताया गया है. इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है. पितृऋण यानी हमारे उन जन्मदाता एवं पालकों का ऋण, जिन्होंने हमारे इस शरीर का लालन-पालन किया, बडा और योग्य बनाया. हमारी आयु, आरोग्य एवं सुख-सौभाग्य आदि की अभिवृद्धि के लिए सदैव कामना की, यथासंभव प्रयास किए, उनके ऋण से मुक्त हुए बिना हमारा जीवन व्यर्थ ही होगा. इसलिए उनके जीवन काल में उनकी सेवा-सुश्रुषा द्वारा और मरणोपरांत श्राद्धकर्म द्वारा पितृऋण से मुक्त होना अत्यंत आवश्यक है. श्राद्ध शब्द की व्युत्पत्ति से ही यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि इस कार्य को श्रद्धा के साथ करना चाहिए <b>(श्रद्धया दीयतेयस्मात्तच्छ्राद्धम्)</b>. पूर्वजों की पुण्यतिथि अथवा पितृपक्ष में उनकी मरण-तिथि के दिन उनकी आत्मा की संतुष्टि के लिए किया जाने वाला श्राद्ध-कर्म सही मायनों में पूर्वजों के प्रति श्रद्धांजलि ही है. इसीलिए सनातन धर्म में श्राद्ध को देव-पूजन की तरह ही आवश्यक एवं पुण्यदायक माना गया है. <b>देवताओ से पहले पितरो को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है</b>. वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड पुराण, विष्णु पुराण आदि पुराणों तथा अन्य शास्त्रों जैसे मनुस्मृति इत्यादि में भी श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में बताया गया है.</div>
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<b>भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या तक की (कुल 16 दिन) अवधि को पितृपक्ष (श्राद्धपक्ष) कहा गया है. इसके अलावा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (प्रथम शारदीय नवरात्रा) को ननिहाल से संबद्ध श्राद्ध का प्रावधान है, इस तरह पार्वण श्राद्ध कुल 17 दिन होते हैं</b>. श्राद्ध यानी श्रद्धया दीयतेयत् तत श्राद्धम् अर्थात् श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए. शास्त्रों में 1500 मंत्र श्राद्ध के बारे में हैं. पुराणों, स्मृतियों व अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी श्राद्ध का बहुतायत उल्लेख है. श्राद्धपक्ष को <b>'कनागत'</b> नाम भी से भी जाना जाता है. कनागत (कन्यागत सूर्य) के महीने का कृष्णपक्ष, जिसमें पितरों का श्राद्ध किया जाता है. कनागत, कन्यार्कगत का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है सूर्य (अर्क) का कन्या राशि में जाना. श्राद्धपक्ष में सूर्य कन्या राशि में होता है, इसीलिए इसे कन्यार्कगत (कनागत) कहा जाता है. आश्विन मास के कृष्णपक्ष में पितृलोक हमारी पृथ्वी के सबसे ज्यादा समीप होता है. अतएव इस पक्ष को पितृपक्ष माना जाना बिल्कुल ठीक है. कनागत में पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख सौभाग्य की वृद्धि के लिए पितरों के निमित्त तर्पण किया जाता है. श्राद्ध और तर्पण वंशजों द्वारा पूर्वजों की दी गई श्रद्धांजलि है. हमें किसी भी स्थिति में अपने इस आध्यात्मिक कर्त्तव्य से विमुख नहीं होना चाहिए. </div>
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पितृपक्ष में पितृगणोंके निमित्त तर्पण करने से वे तृप्त होकर अपने वंशज को सुख-समृद्धि-सन्तति का शुभाशीर्वाद देते हैं. पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के मध्य की अवधि अर्थात पूरे 16 दिनों तक पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिये कार्य किये जाते है. <b>पूरे 16 दिन नियम पूर्वक कार्य करने से पितृ-ऋण से मुक्ति मिलती है</b>. पितृ/श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है. भोजन कराने के बाद यथाशक्ति दान-दक्षिणा दी जाती है. इससे स्वास्थ्य समृ्द्धि, आयु व सुख शान्ति रहती है. वह दान सीधा पितरों को प्राप्त होने की मान्यता है. पितरों तक यह भोजन <b>पंचबलि (पिप्पलिका, गौ, काग, ब्राह्मण और श्वान)</b> के माध्यम से पहुंचता है. पितृपक्ष के इन 16 दिनों में पीपल को जल देने की भी मान्यता है.</div>
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बुद्धि एवं तर्क प्रधान इस युग में श्राद्ध के औचित्य को सामान्यत: स्वीकार नहीं किया जाता. किंतु इस रूप में इस पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए कि श्राद्ध पितरों के प्रति हमारी श्रद्धा के प्रतीक हैं. <b>श्राद्ध हमसे श्रद्धा चाहते हैं, पाखंड नहीं. यह श्रद्धा सभी बुजुर्गो के प्रति होनी चाहिए, चाहे वे जीवित हों या दिवंगत. आत्मकल्याण के इच्छुक लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध अवश्य करें.</b></div>
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<b>पितृपक्ष पर विशेष लेखों का क्रम जारी है...</b></div>
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<b>''वशिष्ठ''</b></div>
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वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-90353126703744441362012-09-28T12:00:00.000+05:302012-09-28T12:00:02.140+05:30श्राद्ध में क्या करना चाहिये और क्या नहीं ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<b>श्राद्धकर्म पितरों की संतुष्टि के लिए किया जाता है, जो लगभग सभी हिन्दु लोग करते हैं. श्राद्धकर्म करते समय किन विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिये और क्या नही करना चाहिये -</b></div>
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<b><br /></b></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9JPFkU3Oqxs8Ic5PUyRnXW8yg0m6ldMFNtFPdqun9zb8L-C_2EaS_2KLnY3e8su24UHyMYKRxc0Ebz8xBkqrH7CHOoxgRBDSTSbCEfGhZObup7wFX7-hNVscifV2Qn1WSvpKByfVaWsKr/s1600/Gaya+Pind+Daan.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="245" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9JPFkU3Oqxs8Ic5PUyRnXW8yg0m6ldMFNtFPdqun9zb8L-C_2EaS_2KLnY3e8su24UHyMYKRxc0Ebz8xBkqrH7CHOoxgRBDSTSbCEfGhZObup7wFX7-hNVscifV2Qn1WSvpKByfVaWsKr/s400/Gaya+Pind+Daan.jpg" width="400" /></a></div>
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1. श्राद्ध में भोजन करने वाले ब्राह्मण को यात्रा, भार ढोना, परिश्रम, दान देना, प्रतिग्रह, हवन एवं पुनः भोजन करना आदि कृत्य नहीं करने चाहिए एवं उसे ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए.</div>
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2. श्राद्धकर्ता को श्राद्ध के दिन ताम्बूलभक्षण (पान-खाना), तेलमर्दन (शरीर पर तेल लगाना), उपवास, परान्न भक्षण नहीं करना चाहिए एवं ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए.</div>
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<br /></div>
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3. श्राद्ध वाले दिन लोहे के पात्रों का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए. वर्तमान में सर्वत्र प्रचलित स्टील में भी लोहे का अंश अधिक होता है, अतः इसका भी प्रयोग नहीं करना चाहिए. यदि पूर्णतः त्याग सम्भव नहीं हो, तो ब्राह्मण भोजन के समय तो अवश्य ही लोहे का प्रयोग नहीं करना चाहिए, भोजन यदि चाँदी के बर्तनों में या पत्तल-दोने में करवाएं तो श्रेष्ठ है.</div>
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4. श्राद्ध में पितृकार्य के लिए श्रीखण्ड, चन्दन, खस, कर्पूर सहित सफेद चन्दन का प्रयोग करना उत्तम रहता है. अन्य कस्तूरी, रक्तचंदन, सल्लक, पूतिक आदि की गंध का प्रयोग नहीं करना चाहिए.</div>
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5. श्राद्धकर्म में प्रयोग में ली जाने वाली कुशा चिता में बिछाई गई, रास्ते में पड़ी हुई, पितृतर्पण या ब्रह्मयक्ष में काम में ली गई, बिछौने, गंदगी या आसन से निकाली गई या पिंडों के नीचे रखी गई कुशा नहीं होनी चाहिए.</div>
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<br /></div>
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6. कदम्ब, केवड़ा, मौलसरी, बेलपत्र, करवीर, लाल एवं काले रंग के पुष्प तेज गंध वाले पुष्प एवं गंधरहित पुष्पों का प्रयोग श्राद्ध में निषिद्ध है.</div>
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7. श्राद्ध में चोर, पतित एवं धूर्त, मांस बेचने व्यापारी, नौकर, कुनखी, काले दाँत वाले, गुरुद्रोही, शुद्रापति, शुल्क लेकर पढ़ाने वाले, काना, जुआरी, अन्धा, कुश्ती सिखाने वाला एवं नपुंसक ब्राह्मण को नहीं बुलाना चाहिए.</div>
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<br /></div>
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8. जिस भोजन को सन्यासी ने, गर्भपात करने-कराने वाली स्त्री ने, रजस्वला स्त्री ने या कुत्ते ने देख लिया हो, जिसमें बाल और कीड़े पड़ गये हों एवं बासी अथवा दुर्गंध-युक्त भोजन का प्रयोग श्राद्ध में नहीं करना चाहिए.</div>
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<br /></div>
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9. मसूर, अरहर, राजमाष, गाजर, कुम्हड़ा, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काली जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पिप्पली, सुपारी, कुलथी, कैथ, महुआ, अलसी, पीली सरसों, चना एवं मांस इनमें से किसी भी वस्तु का प्रयोग श्राद्ध के भोजन में कदापि नहीं करना चाहिए.</div>
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<br /></div>
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10. श्राद्ध करने के लिए कृष्ण-पक्ष एवं अपराह्न को श्रेष्ठ माना जाता है.</div>
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<br /></div>
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11. चतुर्दशी को श्राद्ध नहीं करना चाहिए, लेकिन जो पितर युद्ध में या शस्त्रादि से मारे गये हों, उनके लिए चतुर्दशी का श्राद्ध करना शुभ रहता है.</div>
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<br /></div>
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12. दिन का आठवाँ मुहूर्त्त काल ‘कुतप’ कहलाता है, इस समय में सूर्य का ताप घटने लगता है, उस समय में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
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13. मिताक्षरा के अनुसार आठ वस्तुएँ जिनकी श्राद्ध में आवश्यकता होती है, अर्थात्—मध्याह्न, खड़्गपात्र, नेपाली कंबल, चांदी का बरतन, कुश, तिल, गाय और दौहित्र. इसे कुतापाष्टक भी कहते हैं. (ऐसा माना जाता है कि नेपाली कंबल शब्द अपभ्रंशात्मक है)</div>
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<br /></div>
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14. श्राद्धकाल में मन एवं तन को बाहर एवं भीतर से पवित्र रखना चाहिए. क्रोध एवं जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये. श्राद्ध एकान्त में करना चाहिए.</div>
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15. श्राद्ध का भोजन</div>
<a name='more'></a> स्त्री को नहीं करना चाहिए.<br />
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<br /></div>
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16. नाना, मामा, भानजा, गुरु, श्वसुर, दौहित्र, जमाता, बांधव, ऋत्विज एवं यज्ञकर्ता इन दस को श्राद्ध में भोजन करवाना शुभ रहता है.</div>
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<br /></div>
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17. श्राद्ध में जौ, धान, तिल, गेहूं, मूंग, सरसों का तेल, कंगनी, आम, बेल, अनार, बिजौरा, पुराना आंवला, खीर, परवल, चिरौंजी, बेर, इन्द्र जौ, मटर एवं कचनार का प्रयोग करना अत्यन्त शुभ होता है.</div>
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<br /></div>
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18. श्राद्ध भूमि में सर्वत्र काले तिलों को बिखेरना चाहिए, जिस श्राद्ध में तिलों का प्रयोग किया जाता है वह अक्षय फल देता है.</div>
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<br /></div>
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19. पितरों को चाँदी, सोना एवं ताँबा अत्यन्त प्रिय है, अतः इनका प्रयोग श्राद्ध में किया जाए, तो अत्यन्त शुभ होता है. पितरों को तर्पण करते समय यदि तर्जनी अंगुली में चाँदी या सोने की अंगुठी धारण कर ली जाए, तो वह श्राद्ध लाखों करोड़ों गुना फलदायक हो जाता है.</div>
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20. श्राद्ध के पिंडों को गौ को खिला देना चाहिए (मतांतर से ब्राह्मण को भी).</div>
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<br /></div>
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<br /></div>
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<b>पितृपक्ष पर विशेष लेखों का क्रम जारी है...</b></div>
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<b>''वशिष्ठ''</b></div>
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वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6020592152439143390.post-87875470323918585752012-09-27T16:53:00.000+05:302012-09-27T16:53:18.482+05:30पितृपक्ष 2012, कब करें किनका श्राद्ध ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<b>पितृपक्ष</b><br />
<br />
<div style="text-align: justify;">
प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से श्राद्धकर्म आरम्भ हो जाते हैं. यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक और उसके अगले दिन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तक चलते हैं. पितरों को अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का यह एक अद्भुत अवसर होता है. जिस व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि में हुई है, उसी तिथि को उसका श्राद्ध मनाया जाता है. मृत व्यक्ति के लिए घर में ब्राह्मण को बुलाकर भोजन कराया जाता है. सभी व्यक्तियों को अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भावना रखते हुए पितृयज्ञ तथा श्राद्धकर्म करना जरुरी होता है. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. इसके फलस्वरुप स्वास्थ्य अच्छा, सुख-समृद्धि में वृद्धि, घर में शांति रहती है.</div>
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<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
जिन लोगों की मृत्यु अचानक हो जाती है अर्थात शस्त्र, विष, दुर्घटना में मृत व्यक्तियों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. इनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो, इनका श्राद्ध चतुर्दशी में ही करने का विधान है. अमावस्या के दिन सभी लोगों का श्राद्ध किया जा सकता है. जिन लोगों की मृत्यु की तिथि ना पता हो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करने का विधान है. इसलिए इसे सर्वपितृ श्राद्ध भी कहा जाता है.</div>
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<br /></div>
वर्ष 2012 में श्राद्ध की तिथियाँ (इस बार तिथियों के समय का अन्तर है)<br />
<br />
श्राद्ध की तिथि -<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> दिनाँक - वार<br />
<br />
पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध 29 सितम्बर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शनिवार<br />
<br />
प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध 30 सितम्बर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>रविवार<br />
<br />
द्वितीया तिथि का श्राद्ध 1 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सोमवार<br />
<br />
तृतीया तिथि का श्राद्ध 2 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मंगलवार<br />
<br />
चतुर्थी तिथि का श्राद्ध<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> 4 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बृहस्पतिवार<br />
<br />
पंचमी तिथि का श्राद्ध<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> 5 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शुक्रवार<br />
<br />
षष्ठी तिथि का श्राद्ध 6 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शनिवार<br />
<br />
सप्तमी तिथि का श्राद्ध<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> 7 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>रविवार<br />
<br />
अष्टमी तिथि का श्राद्ध<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> 8 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सोमवार<br />
<br />
नवमी तिथि का श्राद्ध<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span> 9 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मंगलवार<br />
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दशमी तिथि का श्राद्ध<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>10 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बुधवार<br />
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एकादशी तिथि का श्राद्ध 11 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>बृहस्पतिवार<br />
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द्वादशी तिथि(सन्यासियों) का श्राद्ध 12 अक्तूबर शुक्रवार<br />
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त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध 13 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शनिवार<br />
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चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध 14 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>रविवार<br />
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अमावस/सर्वपितृ श्राद्ध 15 अक्तूबर<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>सोमवार<br />
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<b>पितृपक्ष पर विशेष लेखों का क्रम जारी है...</b><br />
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<b>''वशिष्ठ''</b><br />
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वसिष्ठ अभिनव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/15995585927810797805noreply@blogger.com0