Tuesday 21 August 2012

* क्यों होता है अधिक मास ?


               लगभग समस्त भारतीय पंचांगों के अनुसार जो कि मुख्यतः सूर्य सिद्धांत पर आधारित होते हैं एक सौर वर्ष में 12 चांद्र मास होते हैं। परंतु जिस वर्ष अधिक मास होता है, उस वर्ष 12के स्थान पर 13 चांद्र मास होते हैं। यह लगभग ढाई वर्ष के अंतर में होता है तथा इस अतिरिक्त मास को ही अधिक मास कहा जाता है। अधिक मास क्यों होता है, आईये, इस बारे में विस्तार से चर
्चा करते हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार इस वर्ष दो भाद्रपद मास है। इनका आरंभ 3 अगस्त को होगा तथा समाप्ति 30 सितंबर को होगी। अधिक भाद्रपद मास का आरंभ प्रथम भाद्रपद मास के द्वितीय पक्ष से होगा तथा यह द्वितीय भाद्रपद मास के प्रथम पक्ष के अंत तक रहेगा। प्रथम भाद्रपद का प्रथम पक्ष तथा द्वितीय भाद्रपद मास का द्वितीय पक्ष शुद्ध भाद्रपद मास होगा। अतः अधिक भाद्रपद मास का आरंभ 18 अगसत 2012 से होकर 16 सितंबर 2012 को समाप्त होगा। 3 अगस्त से 17 अगस्त तक तथा 17 सितंबर से 30 सितंबर तक शुद्ध भाद्रपद मास होंगे। 


              भारतीय पंचांग के पांच अंगो तिथि, नक्षत्र, योग, करण एवं वार इनकी गणना मुख्यतः नभचक्र में सूर्य एवं चंद्रमा की स्थिति के आधार पर की जाती है। भारतीय पंचांग भू-केंद्रित खगोलिय गणनाओं के आधार पर निर्मित किये जाते हैं। इसमें पृथ्वी को केंद्र मानकर नभचक्र में स्थित अन्य सभी ग्रहों की गति की गणना की जाती है। इस गणना पद्धति में पृथ्वी को स्थिर मानकर सूर्य एवं चंद्रमा सहित अन्य सभी ग्रहों को सापेक्ष गति के आधार पर चलायमान किया जाता है। मेष राशि में सूर्य- मेष सौर मास, और वृष राशि में तो वृष सौर मास आदि। सूर्य जिस दिन एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, उस दिन को ''सूर्य संक्रांति दिवस'' कहा जाता हैं इस प्रकार एक सौर वर्ष में 12 सौर मास एवं 12 सूर्य संक्रांतियां होती है। इन संक्रांतियों का नाम भी सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी के आधार पर रखा जाता है। जैसे मेष संक्रांति, वृष संक्रांति, मिथुन संक्रांति आदि। एक सौर वर्ष में चंद्रमा पृथ्वी की 12 परिक्रमाएं पूरी करता है। पृथ्वी की एक परिक्रमा करते समय चंद्रमा सूर्य के साथ एक बार संयुक्ति करता है तथा एक बार 180 का कोण बनता है। अर्थात एक सौर मास में या एक राशि में सूर्य एवं चंद्रमा वर्ष में केवल एक बार ही संयुक्ति करते हैं तथा एक बार ही 180 का कोण बनाते हैं। सूर्य एवं चंद्रमा के संयुक्ति काल को अमावस्या कहा जाता है। चंद्र मास एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक होता है (अमावस्यान्त) अथवा दूसरे सिद्धांत से पू्र्णिमा से पू्र्णिमा तक (पूर्णिमांत)। सूर्य एवं चंद्र एक दूसरे से 180 का कोण बनाते हैं तब पूर्णमासी होती है जो कि अमावस्या के ठीक 15 दिन पश्चात होती है। पूर्णमासी के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में विचरण करता है उसी के आधार पर उस चंद्रमास का नाम रखा गया है। चित्रा नक्षत्र में चंद्रमा होने पर चैत्र मास, विशाखा से वैशाख। ज्येष्ठा से ज्येष्ठ आदि। एक चंद्र मास में सूर्य एक बार राशि परिवर्तन करता है अर्थात एक सौर मास में जिस प्रकार एक अमावस्या एवं एक पूर्णमासी होती है। उसी प्रकार एक चंद्र मास में एक संक्रांति होती है। एक चंद्रमास - 29 दिवस 12 घंटे 44 मिनट एवं 3 सैकेंड का होता है। एक चंद्र वर्ष 354 दिवस 8 घंटे 48 मिनट एवं 36 सेकेंड का होता है। एक सौर वर्ष - 365 दिवस का होता है। इस प्रकार एक सौर वर्ष एवं एक चंद्र वर्ष में लगभग 11 दिवस का अंतर होता है। ढाई से तीन वर्ष में यह अंतर एक चंद्र मास के बराबर हो जाता है इस कारण प्रत्येक ढाई से तीन वर्ष के अंतराल में एक अधिक मास होता है। इसे दूसरी तरह से भी देखा जा सकता है- 60 सौर माह = 5 वर्ष = 62 चंद्र मास, इसी कारण प्रत्येक ढाई वर्ष के पश्चात एक अतिरिक्त चंद्र मास होता है और यही ''अधिक मास'' कहलाता है। अधिक मास तब होता है जब एक सौर मास में एक की अपेक्षा दो अमावस्याएं हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में पहली अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक की अवधि अधिक मास होता है। क्योंकि इस मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती है। तथा उस सौर मास में होने वाली दूसरी अमावस्या से इसी चंद्र मास की पुनरावृत्ति होती है और उस वर्ष में 12 के स्थान पर 13 चंद्र मास हो जाते हैं। पहली अमावस्या राशि के आरंभिक एक या दो अंशों पर होती है तथा दूसरी अमावस्या राशि के अंतिम अंशों के आस-पास होती है या सूर्य के राशि परिवर्तन के समय या सूर्य संक्रांति के समय या उसके एक या दो दिन के अंतर मे होती है। इस प्रकार प्रत्येक चंद्र मास में एक संक्रांति अवश्य होती है तथा एक सौर मास में एक पूर्णमासी एवं एक अमावस्या अवश्य होती है। परंतु अधिक मास में सूर्यसंक्रांति नहीं होती है, इसलिए इसे शुद्ध मास नहीं माना जाता है। इस प्रकार सौर वर्ष एवं चंद्र वर्ष की समयावधि अंतर के कारण प्रत्येक ढाई से तीन वर्ष के अंतराल में एक अधिक चंद्र मास होता है। अर्थात प्रत्येक ढाई से तीन वर्ष के अंतराल में एक सौर वर्ष में 12वे स्थान पर 13 चंद्र मास होते हैं। जिस सौर मास में एक के स्थान पर दो अमावस्या होती है उसी सौर मास में अधिक मास आता है तथा अधिक मास का नाम उस सौर मास में पड़ने वाले चंद्र मास के आधार पर ही होता है, जैसे इस बार भाद्रपद नक्षत्र (पूर्वा व उत्तरा) से भाद्रपद मास |
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कुछ और जानकारी अगले लेख में...
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