कार्तिक कृष्ण अष्टमी को महिलायें अपनी सन्तान की रक्षा और दीर्घायुष्य के लिए यह व्रत रखती हैं. इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध करते प्रदर्शन किया जाता है. माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोईमाता का पूजन किया जाता है. यह अहोई गेरु आदि के द्वारा दीवाल पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर अहोई काढकर पूजा के समय उसे दीवाल पर टांग दिया जाता है. अहोई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है, उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं.
उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है. सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं. जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है. अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है, तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है.
ज्योतिष शास्त्रानुसार, अहोई अष्टमी 7 नवम्बर, बुधवार को होगी. इसमें पूजन लिए समय का कोई विशेष मुहुर्त नहीं है, यह पारिवारिक परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है. एक मान्यता से तारों की छांव में, तो अन्य मान्यता से चंद्रमा को अर्ध्य देकर अहोई माता की पूजन की पूर्णता का विधान है. इससे पूर्व अहोई माता की कहानी सुन कर उनका पूजन किया जाता है.
अहोई अष्टमी व्रत विधि-
विधि-विधान: अहोई व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं, ऐसा संकल्प करें. अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें. अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पर्वती की पूजा करें. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें. अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे सेह या स्याहु कहते हैं. इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है. पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें. पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं.
पूजा के पश्चात सासु-मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करें.
अहोई अष्टमी व्रत कथा-
अहोई अष्टमी को लेकर दो कथाएं हैं, उनमें से एक कथा में साहूकार की पुत्री के द्वारा घर को लीपने के लिए मिट्टी लाते समय मिट्टी खोदने हेतु खुरपा(कुदाल) चलाने से साही के बच्चों के मरने से संबंधित है. इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें कोई भी काम अत्यंत सावधानी से करना चाहिए अन्यथा हमारी जरा सी गलती से किसी का ऐसा बडा नुकसान हो सकता है, जिसकी हम भरपाई न कर सकें और तब हमें उसका कठोर प्रायश्चित करना पडेगा. इस कथा से अहिंसा की प्रेरणा भी मिलती है. अहोईअष्टमी की दूसरी कथा मथुरा जिले में स्थित राधाकुण्डमें स्नान करने से संतान-सुख की प्राप्ति के संदर्भ में है. अहोई अष्टमी के दिन पेठे का दान करें.
!! हरिॐ तत्सत् !!
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