Friday 29 June 2012

*** आषाढ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) इस वर्ष 30 जून ***


               पद्मपुराण के उत्तरखण्डमें भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर को इस व्रत का माहात्म्य बताते हुए कहते हैं-आषाढ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम हरिशयनी है | यह तिथि महान पुण्यमयी, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली तथा सब पापों को हरनेवाली है | आषाढ शुक्ल एकादशी के दिन कमल पुष्प से कमललोचनभगवान विष्णु का पूजन तथा व्रत करनेवाले को तीनों लोकों का एवं त्रिदेवोंकी पूजा का फल स्वत:प्राप्त हो जाता है | हरिशयनीएकादशी/देवशयनीएकादशी के दिन से श्रीहरिका एक स्वरूप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शय्यापर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक शुक्ल एकादशी (हरि-प्रबोधिनी एकादशी) नहीं आ जाती | आषाढ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के चातुर्मास में मनुष्य को भलीभांति धर्म का आचरण करना चाहिए | जो प्राणी इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है | इस कारण हरिशयनी एकादशी का व्रत अवश्य करें |

               देवर्षि नारद के पूछने पर महादेव शंकरजी ने इस एकादशी के व्रत के विधान का वर्णन इस प्रकार किया है- आषाढ के शुक्लपक्ष में एकादशी के दिन उपवास करके भक्तिपूर्वक चातुर्मास-व्रत के नियम को ग्रहण करें | श्रीहरिके योग-निद्रा में प्रवृत्त हो जाने पर वैष्णव चार मास तक भूमि पर शयन करें | भगवान विष्णु की शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हुए स्वरूप वाली सौम्य प्रतिमा को पीताम्बर पहिनाएं | तत्पश्चात एक सुंदर पलंग पर स्वच्छ सफेद चादर बिछाकर तथा उस पर एक मुलायम तकिया रखकर शैय्या को तैयार करें | विष्णु-प्रतिमा को दूध, दही, शहद, लावा और शुद्ध घी से नहलाकर श्रीविग्रह पर चंदन का लेप करें | इसके बाद धूप-दीप दिखाकर मनोहर पुष्पों से उस प्रतिमा का श्रृंगार करें |

तदोपरांत निम्नलिखित मंत्र से प्रार्थना करें-
सुप्तेत्वयिजगन्नाथ जगत्सुप्तंभवेदिदम्।
विबुद्धेत्वयिबुध्येतजगत्सर्वचराचरम्॥
हे जगन्नाथ! आपके सो जाने पर यह सारा जगत सुप्त हो जाता है तथा आपके जागने पर संपूर्ण चराचर जगत् जागृत हो उठता है।

                 श्रीहरिके श्रीविग्रहके समक्ष चातुर्मास-व्रतके नियम ग्रहण करें | स्त्री हो या पुरुष, जो भक्त व्रत करे, वह हरि-प्रबोधिनी एकादशी तक अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग अवश्य करे | जिस वस्तु का परित्याग करें, उसका दान दें |

" ॐ नमोनारायणाय या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय " मंत्र का तुलसी की माला पर जप करें |
भगवान विष्णु का इस प्रकार ध्यान करें-

शान्ताकारंभुजगशयनं पद्मनाभंसुरेशं
विश्वाधारंगगनसदृशं मेघवर्णशुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तंकमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यं
वन्दे विष्णुंभवभयहरं सर्वलौकेकनाथम्॥
जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शय्यापर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और सम्पूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त हैं, नीले मेघ के समान जिनका वर्ण है, जिनके सभी अंग अतिसुंदरहैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो सब लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरणरूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपतिकमलनेत्रभगवान विष्णु को मैं प्रणाम करता हूं।

               हरिशयनीएकादशी की रात्रि में जागरण करते हुए हरिनाम-संकीर्तन करें | इस व्रत के प्रभाव से भक्त की सभी मनोकामनाएंपूर्ण होती हैं |
हरिशयनीएकादशी के व्रत को सतयुग में परम प्रतापी राजा मान्धाता ने अपने राज्य में अनावृष्टि से उत्पन्न अकाल की स्थिति को समाप्त करने के लिए किया था | हरिशयनीएकादशी के व्रत का सविधि अनुष्ठान करने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है तथा सुख-समृद्धि का आगमन होता है |

इस वर्ष 30 जून को देवशयनी एकादशी व्रत किया जाना शास्त्रसम्मत है |

अभिनव वशिष्ठ.
[https://www.facebook.com/AbhinavJyotisha]

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