Sunday 10 June 2012

कर्म बड़ा या भाग्‍य ?

               जब से ज्‍योतिष विषय का झण्‍डा उठाया तब से मेरे आस-पास के अधिकांश विचारकों ने यह सवाल हमेशा मेरे सामने खड़ा किया कि क्‍या आवश्‍यकता है ज्‍योतिष की जबकि लॉजिक यह कहता है कि जैसा कर्म करोगे वैसे ही फल मिलेंगे (करम प्रधान बिस्व रचि राखा......) | इसके साथ ही दूसरा सवाल यह कि जब सबकुछ पूर्व निर्धारित है तो तुम्‍हारा रोल शुरू होने से पहले ही खत्‍म हो जाता है (होई सोई जो राम रचि राखा.....) |

                दोनों की बातें मेरे इस पेशे को खत्‍म कर देने वाली थीं | लेकिन केवल उन्‍हीं लोगों के समक्ष जो कि इन बातों को इसी अंदाज में समझ चुके थे | बाकी लोगों को अब भी लगता है कि उनकी समस्‍याओं का समाधान मेरे पास है | फिर भी एक विद्यार्थी होने के नाते यह सवाल मेरे सामने बड़ी स्‍पष्‍टता से रहा कि कर्म ही हमारी कुण्‍डली है या भाग्‍य पहले से लिखा जा चुका है | अगर भाग्‍य पहले से तय नहीं है तो क्‍या कर्म से कुण्‍डली को बदला जा सकता है |

इसी क्रम में पिछले दिनों फिर एक बार एक पूर्व सहपाठी ने मुझसे यही सवाल दोहराया कि

'Kya Bhagya vaastav mein he karm se bada hota hai aur kya jyotis se bhagya ko badla ja sakta hai.'

इस सवाल का स्‍पष्‍ट जवाब है पता नहीं |

तो मैं यहाँ क्‍या कर रहा हूं ?

इसके जवाब में, मैं यह कह सकता हूं कि जो लोग अपने कर्म से भाग्‍य को बदलने की सोच रहे हैं, मैं उनकी मदद कर रहा हूँ | एक ज्‍योतिषी किसी जातक की क्‍या मदद कर सकता है, इसका बहुत सटीक वर्णन दक्षिण के प्रसिद्ध ज्‍योतिषी के.एस. कृष्‍णामूर्ति अपनी पुस्‍तक "फंडामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्‍ट्रोलॉजी" में कर चुके हैं | उनके अनुसार नदी में नाव खेते हुए जब एक नाविक किनारा नहीं मिलने पर हारने लगता है तो उसके पास से गुजर रहा एक अन्‍य नाविक उसे बताता है कि आगे इतनी दूरी पर उथला किनारा या जमीन मिल जाएगी | दूसरा नाविक ज्‍योतिषी हो सकता है |

               मुझे भी अधिकांश मामलों में अपना रोल ऐसा ही लगता है | जिसे जो भोगना है वह तो भोगेगा ही, लेकिन यह भोग कब प्रारंभ होगा ? कब खत्‍म होगा ? क्या उपाय किए जा सकते हैं ? या कैसे मुक्ति मिल सकती है ? इस बारे में, मैं संकेत मात्र दे सकता हूँ, एक रास्ता सुझा सकता हूँ, चलना तो उन्हें स्वयं ही पडेगा |

कडे शब्दों में यूँ समझिये...

"न तो किसी और का दुर्भाग्‍य जी सकता हूँ, न ही किसी को मोक्ष दिला सकता हूँ, लेकिन फिर भी जीवन बदल सकता हूँ |"


अभिनव वशिष्ठ.
[www.facebook.com/AbhinavJyotisha]

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