Monday 11 June 2012

कैसा है आपके घर में ऊर्जा का प्रवाह ?

               किसी भी स्‍थान विशेष का वास्‍तु देखने का मूल अर्थ यह है कि वह स्‍थान किसी व्‍यक्ति अथवा संस्‍था के लिए कितना उपयुक्‍त अथवा अनुपयुक्‍त है। वास्‍तु के नियम भी कमोबेश इसी आधार पर बताए गए हैं। किसी घर में वास्‍तु के अनुरूप निर्माण या वस्‍तुओं को किसी स्‍थान विशेष पर रखना अथवा किसी दफ्तर निर्माण में मूल रूप से अंतर होता है। इसे देवताओं या ऊर्जा, दो आधारों से समझने का प्रयास किया जाता रहा है, अगर देवताओं के आधार पर देखें तो समझना कुछ कठिन प्रतीत होता है, लेकिन अगर इसी वास्‍तु निर्माण को हम ऊर्जा के स्‍तर पर देखें तो आप खुद भी अपने घर के सही वास्‍तु का अनुमान कर सकते हैं।

              वास्‍तु में मूल रूप से तीन बातों का ध्‍यान रखा जाता है। इसमें हवा, पानी और रोशनी शामिल हैं। इन तीनों का बहाव अगर सही हो तो उस घर को वास्‍तु के दृष्टिकोण से उपयुक्‍त कहा जा सकता है। अन्‍य देशों की तुलना में भारत की भौगोलिक स्थिति और मौसम चक्र विशिष्‍ट है। उत्तर की ओर हिमालय, उत्‍तर पश्चिम में रेगिस्‍तान, दक्षिण में समुद्र और पूर्व में पहाडि़यों और समुद्र का मिश्रण। एक ओर हिमालय ठण्‍डे प्रदेशों से आ रही सर्द हवाओं को रोकता है तो अरब की खाड़ी से उठने वाली मानसूनी हवाएं प्रकृति ने केवल भारतीय उपमहाद्वीप के लिए ही बनाई हैं। आप भारत के किसी भी कोने में जाएं इन विशेषताओं का लाभ आपको जरूर मिलेगा।

* आपके घर का वास्‍तु
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              घर के वास्‍तु के निर्धारण के समय हमें दिशाओं के ऊर्जा स्‍तर को समझना होगा। वास्‍तु में उत्‍तर और पूर्व दिशा को अधिक ऊर्जा वाली दिशाएं बताया गया है। पूर्व में जहां तेज अधिक है वहीं उत्‍तर में गति अधिक है। उत्‍तर-पूर्व को दोनों का लाभ मिलता है। दक्षिण दिशा में तेजी कम लेकिन दाह यानि गर्मी अधिक है। दक्षिण पूर्व में तेज और दाह दोनों होने से यह शुद्ध स्‍थान बनता है। पश्चिम में रोशनी कम है और गति भी। ऐसे उत्‍तरी पश्चिमी कोना दक्षिणी पश्चिमी कोने की तुलना में अधिक ऊर्जा रखता है, लेकिन उत्‍तरी पूर्वी कोने की तुलना में कम। इसे आप हवा के बहाव, रोशनी के आगमन और जल के प्रवाह के रूप में भी देख सकते हैं।

* उत्‍तर पूर्व बच्‍चों का कोना
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               ऊर्जा के इस प्रवाह को समझने के बाद हमें घर में ऊर्जा के प्रवाह के अनुसार ही सदस्‍यों रहने और क्रिया-कलापों के स्‍थान तय करने होंगे। घर का उत्‍तरी पूर्वी कोना अधिकतम ऊर्जा वाला स्‍थान है। यहां उन्‍हीं लोगों को रखा जा सकता है जो इस ऊर्जा के प्रवाह में सहज रह सकें। घर के बच्‍चे इस स्‍थान के लिए सर्वाधिक उपयुक्‍त हैं। पूर्व और उत्‍तर से मिल रही सकारात्‍मक ऊर्जा उन्‍हें तेजी से विकसित करेगी। दक्षिण पूर्व में रसोई बनाने से हमें दक्षिण से मिल रहे दाह और पूर्व से मिल रहे तेज का लाभ होगा। इस स्‍थान पर चूल्‍हा हमेशा जलता रहेगा और स्‍वादिष्‍ट भोजन मिलेगा। दक्षिण पश्चिम में घर के बड़े बुजुर्ग या नियामक सदस्य रह सकते हैं। उनकी गति कम होती है और ऊर्जा का स्‍तर भी। वहां वे सहज रहेंगे। घर के उत्‍तरी पश्चिमी कोने में अधिक सक्रिय सदस्य को रखा जा सकता है, वे ऊर्जा और न्‍यायप्रियता के साथ काम कर सकेंगे, एक और बात जो अनुभवसिद्ध है - विवाह योग्य कन्या को भी यहाँ रखा जा सकता है, चंद्रमा के प्रभाव से सौंदर्य तो बढेगा ही विवाह भी शीघ्र होगा। इसी तरह बिजली के उपकरणों को दक्षिण की दीवार पर और जल से संबंधित वस्‍तुओं को उत्‍तरी क्षेत्र में रखा जाना चाहिए। यह ऊर्जा की प्रकृति के अनुकूल भी होगा।

* ग्रह और उनकी ऊर्जा
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               वास्‍तु की संरचना में ग्रहों को वही स्‍थान दिए गए हैं जैसी उनकी ऊर्जा है। यह सकारात्‍मक या नकारात्‍मक हो सकती है। वास्‍तु का पूर्व सूर्य के पास है। यह तेजोमय है। उत्‍तर पूर्व पर गुरु का अधिकार है। यह सकारात्‍मक और तेज है। उत्‍तर पर बुध का अधिकार है। यह रचनात्‍मक और सक्रिय है। उत्‍तर पश्चिम पर चंद्रमा का अधिकार है। यह रचनात्‍मक लेकिन अधिक विचार करने वाला है। पश्चिम पर शनि का अधिकार है। यह नकारात्‍मक और धीमा है। दक्षिण पश्चिम पर राहू का अधिकार है। यह नकारात्‍मक और रहस्‍य समेटे हुए है। दक्षिण पर मंगल का राज है। यह उग्र और दाह देने वाला है। दक्षिण पश्चिम पर शुक्र का राज है। यह उष्‍ण और तेजयुक्‍त है। यह क्षेत्र की ऊर्जा के हिसाब से ही हम उसे काम में लें तो अधिकतम परिणाम हासिल होंगे।

* सामान्‍य उपचार
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 कुछ सामान्‍य उपचार कर ऊर्जा के स्‍तर को संतुलित रखा जा सकता है -

#सिंह द्वार (घर का मुख्‍य दरवाजे) के आगे किसी प्रकार का अवरोध हो तो उसे हटा देना चाहिए, अथवा सिंह द्वार को वहां से हटा देना चाहिए।
# दक्षिणी कोने में पानी का कम से कम उपयोग करें। वहां दीपक या लाल बल्ब जलाकर रखें।
# उत्‍तरी पश्चिमी कोने में पानी के बहने का साधन बनाए। बर्तन धोने का स्‍थान, वाशिंग मशीन या पेड़ पौधे लगाकर वहां निरंतर पानी गिराया जा सकता है। इससे परिवार में तनाव कम होगा।
# उत्‍तरी और पूर्वी कोनों में दक्षिणी और पश्चिमी कोनों की अपेक्षा अधिक रोशनी का प्रबंध रखें।
# घर में हवा का बहाव सुनिश्चित करने के लिए एक्‍जास्‍ट फैन लगाएं।
# गंदा पानी शुक्र का परिचायक होता है। ऐसे में पूर्व मुखी घरों में घर के दाएं कोने से घर का गंदा पानी निकालने की सलाह दी गई है।
# बाहर से भीतर की ओर शुद्ध जल का प्रवाह उत्‍तरी क्षेत्रों में हो तो बेहतर है।

* चेतना को प्रभावित करता है कचरा
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               हम घर में मौजूद कचरे के प्रति उपेक्षा का भाव रखते हैं। इसके चलते हम इसके निस्‍तारण के बारे में भी गंभीरता से नहीं सोचते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि कचरा धीरे-धीरे हमें मानसिक, आर्थिक और कई बार शारीरिक स्‍तर पर भी प्रभावित करने लगता है। वास्‍तु निमयों में कचरे का निस्‍तारण तेजी से करने के लिए कहा गया है। जिस मकान की छत पर कचरा जमा होता है, उस मकान के मालिक पर ऋण तेजी से चढ़ता है, इसी के साथ पैसा भी जगह जगह फंस जाता है। छत पर किसी भी सूरत में कचरे का जमाव नहीं होना चाहिए। यह आर्थिक भार से दबा देता है। कचरा जमा करने का दूसरा सबसे बड़ा स्‍थान है अंडरग्राउंड। जिस मकान के तहखाने में भारी मात्रा में कचरा जमा होता है वहां पारिवारिक तनाव तेजी से बढ़ता है। एक स्थिति यह आती है कि छोटी मोटी बातों पर भी बड़े झगड़े होने लगते हैं। अंडरग्राउंड के कचरे का निस्‍तारण भी तुरत फुरत करना चाहिए। इन दो प्रमुख स्‍थानों के अलावा घर में कई ऐसे कोने होते हैं जहां हमारी इच्‍छा के बगैर कचरा एकत्रित होता रहता है। मसलन कागज के टुकड़े, पुराने बैग, पुराने जूते, पुरानी चिठ्ठियां, मैग्‍जीन, ऐश ट्रे, बच्‍चों के टूटे हुए खिलौने, पुरानी बॉल्‍पेन, धातुओं के टुकड़े, अवधिपार दवाएं, पुराने और टूटे बर्तन, सूखे हुए पौधों जैसी हजारों छोटी छोटी चीजें घर में पड़ी रहती हैं और हम इनकी तरफ ध्‍यान भी नहीं दे पाते हैं। इस कचरे के निस्‍तारण से आप बहुत अधिक राहत महसूस कर सकते हैं। आपको जल्द से जल्द यह काम निपटा देना चाहिए।

आशा करता हूँ आप अपने घर की ऊर्जा को अधिकतम लाभ की स्थिति तक ले जाने का प्रयास अवश्य करेंगे...

अभिनव वशिष्ठ.
[www.facebook.com/AbhinavJyotisha]

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