शनिदेव दण्डाधिकारी माने गए हैं। उनका ऐसा चरित्र असल में, कर्म और सत्य को जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है। जीवन में परिश्रम और सच्चाई ही ऐसी खूबियां हैं, जिन पर कठिन दौर में भी टिके रहना बड़ी सफलता व यश देने वाला होता है।
यही कारण है कि आने वाले कल को खुशहाल बनाने के लिए वर्तमान में कर्म में संयम और अनुशासन को अपनाने का संकल्प लेना अहम हैं। शुभ संकल्पों को अपनाने के लिए ही साल के अंत में बने शनिवार व अमावस्या तिथि के संयोग में शनि पूजा व उपासना आने वाले पूरे साल को दु:ख, कलह, असफलता से दूर रख सफलता व सुख लाएगी।
धर्मशास्त्रों व ज्योतिष विज्ञान में शनि पीड़ा या कुण्डली में शनि की महादशा, साढ़े साती या ढैय्या में शनि के अशुभ प्रभावों से बचाव के लिए शनि व्रत रखने का भी बहुत महत्व बताया गया है। चूंकि हर धार्मिक कर्म का शुभ फल तभी मिलता है, जब उसका पालन विधिवत किया जाए। इसलिए जानते हैं शनि अमावस्या के योग में व्रत पालन में स्नान, पूजा, दान और आहार कैसा हो?
स्नान -
शनि उपासना के लिए सबेरे शरीर पर हल्का तेल लगाएं। बाद में शुद्ध जल में पवित्र नदी का जल, काले तिल मिलाकर स्नान करें।
शनि पूजा -
शनिदेव को गंगाजल से स्नान कराएं। तिल या सरसों का तेल, काले तिल, काली उड़द, काला वस्त्र, काले या नीले फूल के साथ तेल से बने व्यंजन का नैवेद्य चढ़ाएं।
शनि मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। तेल के दीप से शनि आरती करें।
दान -
शनि व्रत में शनि की पूजा के साथ दान भी जरूरी है। शनि के कोप की शांति के लिए शास्त्रों में बताई गई शनि की इन वस्तुओं का दान करें। उड़द, तेल, तिल, नीलम रत्न, काली गाय, भैंस, काला कम्बल या कपड़ा, लोहा या इससे बनी वस्तुएं और दक्षिणा किसी ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
खान-पान -
शनि की अनुकूलता के लिए रखे गए व्रत में यथासंभव उपवास रखें या एक समय भोजन का संकल्प लें। इस दिन शुद्ध और पवित्र विचार और व्यवहार बहुत जरूरी है। आहार में दूध, लस्सी और फलों का रस लेवें। अगर व्रत न रख सकें तो काले उड़द की खिचड़ी में काला नमक मिलाकर या काले उड़द का हलवा खा सकते हैं।
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