पितरों को तृप्त करने के लिए आश्विन मास के कृष्णपक्ष मे जिस तिथि को पूर्वजों का निर्वाण हुआ हो उस तिथि को तिल, जौ, पुष्प, कुश, गंगाजल या शुद्ध जल से तर्पण, पिंडदान और पूजन करना चाहिए. उसके बाद योग्य ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र, फल एवं दान करना चाहिए. गाय, कौआ, पिपीलिका, श्वान को भी देना चाहिए. यह क्रम पंचबलि कहलाता है.
कुछ नियमित दिनचर्या में किए जाने वाले उपाय निम्न हैं :-
पिता का अपमान न करें और उनकी खुशी के लिए हरसंभव कोशिश करें. हर रोज माता-पिता और गुरु के चरण छूकर आशीर्वाद लेने से पितरों की प्रसन्नता मिलती है. अपने बड़े-बुज़ुर्गों का सदैव आदर करें.
प्रत्येक अमावस्या को गाय के जलते हुए उपले (कंडे, गोबर) पर तैयार शुद्ध भोज्य पदार्थ या खीर रखकर दक्षिण दिशा की ओर मुखकर पितरों से प्रार्थना करें.
हर रोज संभव हो तो चिडिय़ा या दूसरे पक्षियों के खाने-पीने के लिए अन्न के दानें और पानी रखें.
प्रत्येक अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या को योग्य ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र आदि दान करने से पितृदोष के विपरीत प्रभाव में कमी आती है. श्राद्धपक्ष या वार्षिक श्राद्ध में ब्राह्मणों के लिए तैयार भोजन में पितरों की पसंद का पकवान जरुर बनाएं.
हर रोज तैयार भोजन में से तीन भाग गाय, कुत्ते और कौए के लिए निकालें और उन्हें खिलाएं.
किसी तीर्थ पर जाएं तो पितरों के लिए तीन बार अंजलि में जल से तर्पण करना न भूलें.
सूर्योदय के समय सूर्य को देखकर गायत्री मंत्र का उच्चारण करें, इससे आपकी कुंडली मे सूर्य की स्थिति मजबूत होगी. सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक्य भी धारण कर सकते हैं, बशर्ते किसी योग्य ज्योतिषी द्वारा पहले कुंडली जांच लें.
हर शनिवार को पीपल या वट की जड़ों में दूध चढाएं.
पितृपक्ष मे अपने पितरों की याद मे वृक्ष, विशेषकर पीपल लगाकर, उसकी सेवा करने से भी पितृदोष से राहत मिलती है.
अगले लेख में पढें, क्या है सर्वपितृ अमावस्या का महत्व ?
!! हरिॐ तत्सत् !!
''वशिष्ठ''
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