Monday 26 December 2011

पीपल को पूजते हैं, क्योंकि...

पीपल के वृक्ष को हिंदुओं में देवताओं का निवास स्थान बताया गया है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवता पीपल में निवास करते हैं। मृत हिंदू के लिए एक घट पीपल की शाखाओं में बांधा जाता है। सोमवती अमावस्या को सौभाग्यवती स्त्रियां पीपल का पूजन कर अपने पति की लंबी आयु के लिए करती है। महात्मा बुद्ध ने पीपल के नीचे बैठकर ही ज्ञान प्राप्त किया था। इसलिए उसे 'बोधिवृक्ष भी कहा जाता है।

आयुर्वेद में भी पीपल का कई औषधि के रूप में प्रयोग होता है। श्वास, तपेदिक, रक्त-पित्त,विषदाह,भूख बढ़ाने के लिए यह वरदान है। शास्त्रों में भी पीपल को बहुपयोगी माना गया है तथा उसका धार्मिक महत्व बनाकर काटने का निषेध किया गया है।हिंदू और बौद्ध धर्म में इसको सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त है। केवल भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी इसको पवित्र माना जाता है। तिब्बत में 'लालचंड, नेपाल में 'बंगलसिमा, बर्मा में 'स्याम, श्रीलंका में इसका 'शोलबो नाम से पुकारते हैं। बुद्ध जनता इसे 'बोधिवृक्ष कहती है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में इसे स्वयं अपने ही समान कहा है।

ताविज क्यों पहनते हैं?

अक्सर देखने में आता है कि कई लोग गले में काले रंग के धागे में किसी धातु या लाल-काले रंग के कपड़े का टुकड़ा पहनते हैं। यही ताविज कहलाता है। सामान्यत: सभी छोटे बच्चों को तो अनिवार्य रूप से ताविज बांधा जाता है। कई लोग ताविज बांधने को अंधविश्वास मानते हैं परंतु ऐसा नहीं है। इसके स्वास्थ्य संबंधी कई फायदे भी होते हैं।

ताविज बांधने की परंपरा हर धर्म में मानी जाती है। यह अति प्राचीनकालीन प्रथा है। जिसे आज भी अधिकांश लोग मानते हैं। ताविज बांधने से बुरी नजर नहीं लगती है। वहीं कई लोग मंत्रों से सिद्ध किए ताविज धारण करते हैं। मंत्रों की शक्ति से सभी भलीभांति परिचत हैं। किसी सिद्ध संत या महात्मा द्वारा अपनी मंत्र शक्ति से ताविज बनाकर दिए जाते हैं। यह ताविज बीमारियों से निजात पाने के लिए बनवाए जाते हैं।

ताविज में एक धागा होता है। इस धागे में किसी कपड़े में या धातु की छोटी सी डिबिया होती है। इस कपड़े या डिबिया में कोई मंत्र लिखा भोज पत्र, भभूती, सिंदूर के साथ कई लोग इसमें तांत्रिक वस्तुएं भी रखते हैं।

मान्यता है कि ताविज के प्रभाव से वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां हमें प्रभावित नहीं कर पाती। साथ ही ताविज का धागा हमें दूसरों की बुरी नजर से बचाता है। ताविज का मंत्र लिखा भोज पत्र या भगवान की भभूति या सिंदूर आदि मंत्रों के बल सिद्ध किए होते हैं जो धारण करने वाले व्यक्ति के लिए शुभ रहते हैं।
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Friday 23 December 2011

शनिश्चरी अमावस्या : 24 दिसंबर 2011 : शनि को मनाने का उपाय : कल करें ऐसी शनि पूजा


शनिदेव दण्डाधिकारी माने गए हैं। उनका ऐसा चरित्र असल में, कर्म और सत्य को जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है। जीवन में परिश्रम और सच्चाई ही ऐसी खूबियां हैं, जिन पर कठिन दौर में भी टिके रहना बड़ी सफलता व यश देने वाला होता है। 

यही कारण है कि आने वाले कल को खुशहाल बनाने के लिए वर्तमान में कर्म में संयम और अनुशासन को अपनाने का संकल्प लेना अहम हैं। शुभ संकल्पों को अपनाने के लिए ही साल के अंत में बने शनिवार व अमावस्या तिथि के संयोग में शनि पूजा व उपासना आने वाले पूरे साल को दु:ख, कलह, असफलता से दूर रख सफलता व सुख लाएगी।

धर्मशास्त्रों व ज्योतिष विज्ञान में शनि पीड़ा या कुण्डली में शनि की महादशा, साढ़े साती या ढैय्या में शनि के अशुभ प्रभावों से बचाव के लिए शनि व्रत रखने का भी बहुत महत्व बताया गया है। चूंकि हर धार्मिक कर्म का शुभ फल तभी मिलता है, जब उसका पालन विधिवत किया जाए। इसलिए जानते हैं शनि अमावस्या के योग में व्रत पालन में स्नान, पूजा, दान और आहार कैसा हो?

स्नान -

शनि उपासना के लिए सबेरे शरीर पर हल्का तेल लगाएं। बाद में शुद्ध जल में पवित्र नदी का जल, काले तिल मिलाकर स्नान करें।

शनि पूजा -

शनिदेव को गंगाजल से स्नान कराएं। तिल या सरसों का तेल, काले तिल, काली उड़द, काला वस्त्र, काले या नीले फूल के साथ तेल से बने व्यंजन का नैवेद्य चढ़ाएं।
शनि मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। तेल के दीप से शनि आरती करें।

दान -

शनि व्रत में शनि की पूजा के साथ दान भी जरूरी है। शनि के कोप की शांति के लिए शास्त्रों में बताई गई शनि की इन वस्तुओं का दान करें। उड़द, तेल, तिल, नीलम रत्न, काली गाय, भैंस, काला कम्बल या कपड़ा, लोहा या इससे बनी वस्तुएं और दक्षिणा किसी ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

खान-पान -

शनि की अनुकूलता के लिए रखे गए व्रत में यथासंभव उपवास रखें या एक समय भोजन का संकल्प लें। इस दिन शुद्ध और पवित्र विचार और व्यवहार बहुत जरूरी है। आहार में दूध, लस्सी और फलों का रस लेवें। अगर व्रत न रख सकें तो काले उड़द की खिचड़ी में काला नमक मिलाकर या काले उड़द का हलवा खा सकते हैं।

Wednesday 21 December 2011

कोई मरने के बाद बार-बार सपने में आए तो करना चाहिए ये 2 काम...

शास्त्रों के अनुसार जीवन और मृत्यु का चक्र अनवरत चलता रहता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यही बताया है कि व्यक्ति का शरीर नश्वर होता है। आत्मा अमर होती है जो निश्चित समय के लिए अलग-अलग शरीर धारण करती है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को पुन: नया जन्म मिलता है। जीवन में हमारे कई रिश्ते-नाते बनते हैं, कई लोगों से लगाव होता है। ऐसे में मृत्यु के बाद अक्सर प्रियजनों को मृत व्यक्ति की याद आती है, सपने में भी दिखाई देते हैं।

यदि किसी भी इंसान को सपने में कोई मृत व्यक्ति दिखाई देता है तो उसे ये दो काम अवश्य करना चाहिए। पहला काम है उस मृत व्यक्ति के नाम पर रामायण या श्रीमदभागवत का पाठ कराएं। दूसरा काम है गरीब बच्चों को मिठाई खिलाएं। इसके साथ ही मृत व्यक्ति के नाम से विधि-विधान से तर्पण कराना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार यदि मृत्यु के बाद बार-बार सपनों में आना किसी बात की ओर इशारा होता है। ऐसा माना जाता है कि यदि मरने वाले आत्मा अतृप्त है या उसकी कोई इच्छा अधूरी रह गई है या वह अशांत है तो संबंधित व्यक्ति के सपनों में आकर संकेत देती है। ऐसे में परिवार के सदस्यों को मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पुण्य कर्म, दान आदि करना चाहिए। इससे वह आत्मा तृप्त होती है और उसे शांति प्राप्त होती है।

बेडरुम में भगवान की फोटो नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि...

हमारी धार्मिक मान्यताओं में एक यह भी है कि अपने शयनकक्ष यानी बेडरूम में भगवान की कोई प्रतिमा या तस्वीर नहीं लगाई जाती। केवल स्त्री के गर्भवती होने पर बालगोपाल की तस्वीर लगाने की छूट दी गई है। आखिर क्यों भगवान की तस्वीर अपने शयनकक्ष में नहीं लगाई जा सकती है? इन तस्वीरों से ऐसा क्या प्रभाव होता है कि इन्हें लगाने की मनाही की गई है?
वास्तव में यह हमारी मानसिकता को प्रभावित कर सकता है। इस कारण भगवान की तस्वीरों को मंदिर में ही लगाने को कहा गया है, बेडरूम में नहीं। चूंकि बेडरूम हमारी नितांत निजी जिंदगी का हिस्सा है जहां हम हमारे जीवनसाथी के साथ वक्त बिताते हैं। बेडरूम से ही हमारी सेक्स लाइफ भी जुड़ी होती है। अगर यहां भगवान की तस्वीर लगाई जाए तो हमारे मनोभावों में परिवर्तन आने की आशंका रहती है। यह भी संभव है कि हमारे भीतर वैराग्य जैसे भाव जाग जाएं और हम हमारे दाम्पत्य से विमुख हो जाएं। इससे हमारी सेक्स लाइफ भी प्रभावित हो सकती है और गृहस्थी में अशांति उत्पन्न हो सकती है। इस कारण भगवान की तस्वीरों को मंदिर में ही रखने की सलाह दी जाती है।
जब स्त्री गर्भवती होते है तो गर्भ में पल रहे बच्चे में अच्छे संस्कारों के लिए बेडरूम में बाल गोपाल की तस्वीर लगाई जाती है। ताकि उसे देखकर गर्भवती महिला के मन में अच्छे विचार आएं और वह किसी भी दुर्भावना, चिंता या परेशानी से दूर रहे। मां की अच्छी मानसिकता का असर बच्चे के विकास पर पड़ता है।