पीपल के वृक्ष को हिंदुओं में देवताओं का निवास स्थान बताया गया है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवता पीपल में निवास करते हैं। मृत हिंदू के लिए एक घट पीपल की शाखाओं में बांधा जाता है। सोमवती अमावस्या को सौभाग्यवती स्त्रियां पीपल का पूजन कर अपने पति की लंबी आयु के लिए करती है। महात्मा बुद्ध ने पीपल के नीचे बैठकर ही ज्ञान प्राप्त किया था। इसलिए उसे 'बोधिवृक्ष भी कहा जाता है।
आयुर्वेद में भी पीपल का कई औषधि के रूप में प्रयोग होता है। श्वास, तपेदिक, रक्त-पित्त,विषदाह,भूख बढ़ाने के लिए यह वरदान है। शास्त्रों में भी पीपल को बहुपयोगी माना गया है तथा उसका धार्मिक महत्व बनाकर काटने का निषेध किया गया है।हिंदू और बौद्ध धर्म में इसको सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त है। केवल भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी इसको पवित्र माना जाता है। तिब्बत में 'लालचंड, नेपाल में 'बंगलसिमा, बर्मा में 'स्याम, श्रीलंका में इसका 'शोलबो नाम से पुकारते हैं। बुद्ध जनता इसे 'बोधिवृक्ष कहती है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में इसे स्वयं अपने ही समान कहा है।
आयुर्वेद में भी पीपल का कई औषधि के रूप में प्रयोग होता है। श्वास, तपेदिक, रक्त-पित्त,विषदाह,भूख बढ़ाने के लिए यह वरदान है। शास्त्रों में भी पीपल को बहुपयोगी माना गया है तथा उसका धार्मिक महत्व बनाकर काटने का निषेध किया गया है।हिंदू और बौद्ध धर्म में इसको सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त है। केवल भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी इसको पवित्र माना जाता है। तिब्बत में 'लालचंड, नेपाल में 'बंगलसिमा, बर्मा में 'स्याम, श्रीलंका में इसका 'शोलबो नाम से पुकारते हैं। बुद्ध जनता इसे 'बोधिवृक्ष कहती है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में इसे स्वयं अपने ही समान कहा है।