योगासन : क्या हैं? और कहाँ से आए?
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चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं | आसन अनेक प्रकार के माने गए हैं | योग में यम और नियम के बाद आसन का तीसरा स्थान है |
* आसन का उद्येश्य : आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है | शरीर से मल या दूषित विकारों के नष्ट हो जाने से शरीर व मन में स्थिरता का अविर्भाव होता है | शांति और स्वास्थ्य लाभ मिलता है | अत: शरीर के स्वस्थ रहने पर मन और आत्मा में संतोष मिलता है |
* आसन और व्यायाम : आसन एक वैज्ञानिक पद्धति है | आसन और अन्य तरह के व्यायामों में फर्क है | आसन जहाँ हमारे शरीर की प्रकृति को बनाए रखते हैं वहीं अन्य तरह के व्यायाम इसे बिगाड़ देते हैं |
'आसनानि समस्तानियावन्तों जीवजन्तव:। चतुरशीत लक्षणिशिवेनाभिहितानी च।'- अर्थात संसार के समस्त जीव जन्तुओं के बराबर ही आसनों की संख्या बताई गई है, यानी कि 84 लाख योनियों से 84 लाख प्रकार के आसन |
इस तरह हुआ आसनों का आविष्कार:-
1.पशु-पक्षी आसन : पहले प्रकार के वे आसन जो पशु-पक्षियों के उठने-बैठने, चलने-फिरने या उनकी आकृति के आधार पर बनाए गए हैं जैसे- वृश्चिक, भुंग, मयूर, शलभ, मत्स्य, गरुढ़, सिंह, बक, कुक्कुट, मकर, हंस, काक, मार्जार आदि |
2.वस्तु आसन : दूसरी तरह के आसन जो विशेष वस्तुओं के अंतर्गत आते हैं जैसे- हल, धनुष, चक्र, वज्र, शिला, नौका आदि |
3.प्रकृति आसन : तीसरी तरह के आसन वनस्पति और वृक्षों आदि पर आधारित हैं जैसे- वृक्षासन, पद्मासन, लतासन, ताड़ासन, पर्वतासन आदि |
4.अंग आसन : चौथी तरह के आसन विशेष अंगों को पुष्ट करने वाले तथा अंगों के नाम से संबंधित होते हैं- जैसे शीर्षासन, एकपाद ग्रीवासन, हस्तपादासन, सर्वांगासन, कंधरासन, कटि चक्रासन, पादांगुष्ठासन आदि |
5.योगी आसन : पांचवीं तरह के वे आसन हैं जो किसी योगी या भगवान के नाम पर आधारित हैं- जैसे महावीरासन, ध्रुवासन, मत्स्येंद्रासन, अर्धमत्स्येंद्रासन, हनुमानासन, भैरवासन आदि |
6.अन्य आसन : इसके अलावा कुछ आसन ऐसे हैं- जैसे चंद्रासन, सूर्यनमस्कार, कल्याण आसन आदि | इन्हें अन्य आसनों के अंतर्गत रखा गया है |
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* आसन के मुख्य प्रकार :
1.बैठकर किए जाने वाले आसन,
2.पीठ के बाल लेटकर किए जाने वाले आसन,
3.पेट के बाल लेटकर किए जाने वाले आसन और
4.खड़े होकर किए जाने वाले आसन |
उक्त चार प्रकार के आसनों में से कुछ आसन ऐसे हैं जिन्हें बैठकर, लेटकर और खड़े रहकर तीनों ही तरीके से किया जाता है | इनमें से कुछ आसन ऐसे भी हैं जिन्हें हाथ के पंजों के बल या पैर के घुटनों के बल पर किया जाता है |
1.बैठकर : पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, वक्रासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तनासन, ब्राह्म मुद्रा, उष्ट्रासन, योगमुद्रा, उत्थीत पद्म आसन, पाद प्रसारन आसन, द्विहस्त उत्थीत आसन, बकासन, कुर्म आसन, पाद ग्रीवा पश्चिमोत्तनासन, बध्दपद्मासन, सिंहासन, ध्रुवासन, जानुशिरासन, आकर्णधनुष्टंकारासन, बालासन, गोरक्षासन, पशुविश्रामासन, ब्रह्मचर्यासन, उल्लुक आसन, कुक्कुटासन, उत्तान कुक्कुटासन, चातक आसन, पर्वतासन, काक आसन, वातायनासन, पृष्ठ व्यायाम आसन-1, भैरवआसन, भरद्वाजआसन, बुद्धपद्मासन, कूर्मासन, भूनमनासन, शशकासन, गर्भासन, मंडूकासन, सुप्त गर्भासन, योगमुद्रासन आदि |
2.पीठ के बल लेटकर : अर्धहलासन, हलासन, सर्वांगासन, विपरीतकर्णी आसन, पवनमुक्तासन, नौकासन, दीर्घ नौकासन, शवासन, पूर्ण सुप्त वज्रासन, सेतुबंध आसन, तोलांगुलासन, प्राणमुक्त आसन, कर्ण पीड़ासन, उत्तानपादासन, चक्रासन, कंधरासन, स्कन्धपादासन, मर्कटासन, ग्रीवासन, एकपादग्रीवासन, द्विपादग्रीवासन, कटी व्यायाम आसन, पृष्ठ व्यायाम आसन-2 आदि |
3.पेट के बल लेटकर : मकरासन, धनुरासन, भुजंगासन, शलभासन, विपरीत नौकासन, खग आसन, चतुरंग दंडासन, कोनासन आदि |
4.खड़े होकर : ताड़ासन, वृक्षासन, अर्धचंद्रमासन, अर्धचक्रासन, दो भुज कटिचक्रासन, चक्रासन, पाद्पश्चिमोत्तनासन, गरुढ़ासन, चंद्रनमस्कार, चंद्रासन, उर्ध्व उत्थान आसन, पाद संतुलन आसन, मेरुदंड वक्का आसन, अष्टावक्र आसन, बैठक आसन, उत्थान बैठक आसन, अंजनेय आसन, त्रिकोणासन, नटराज आसन, एक पाद विराम आसन, एकपाद आकर्षण आसन, उत्कटासन, उत्तानासन, कटी उत्तानासन, जानु आसन, उत्थान जानु आसन, हस्तपादांगुष्ठासन, पादांगुष्ठासन, ऊर्ध्वताड़ासन, पादांगुष्ठानासास्पर्शासन, कल्याण आसन आदि |
5.अन्य : शीर्षासन, मयुरासन, सूर्य नमस्कार, वृश्चिकासन, चंद्र नमस्कार, लोलासन, अधोमुखश्वानासन, मोक्ष आसन, अदवासन, अग्नीस्तंभासन, अनंतासन, अंजनेयासन, योगनिद्रा, मार्जारासन, अनुवित्तासन, अश्व संचालन आसन, भुजपीड़ासन, बिदालासन, बंधासन, चक्र बंधासन, चक्र वज्रासन, चकोरआसन, द्रधासन, द्विपाद परिवर्त्ता कोंडियासन उपधानासन, द्विचक्रिकासन, पादवृत्तासन, पॄष्ठतानासन, प्रसृतहस्त शंखासन, पक्ष्यासन आदि |
* आसन करने के पूर्व : सूक्ष्म व्यायाम (अंग संचालन) के बाद ही योग के आसनों को किया जाता है | योग प्रारम्भ करने के पूर्व अंग-संचालन करना आवश्यक है | इससे अंगों की जकड़न समाप्त होती है तथा आसनों के लिए शरीर तैयार होता है |
* आसनों को सीखना प्रारम्भ करने से पूर्व कुछ आवश्यक सावधानियों पर ध्यान देना जरूरी है | आसन प्रभावकारी तथा लाभदायक तभी हो सकते हैं, जबकि उसको उचित रीति से किया जाए | आसनों को किसी योग्य योग चिकित्सक की देख-रेख में करें तो ज्यादा अच्छा होगा |
(यह प्रयास श्रीगुरुचरणों में समर्पित, जो स्वयं इसका आधार हैं)
अभिनव वशिष्ठ.
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ஜ۩۞۩ஜ हरि ॐ तत्सत् ஜ۩۞۩ஜ
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