Thursday 29 November 2012

* व्रत एवं पर्व * [29 नवंबर से 28 दिसंबर, सन् 2012]


* व्रत एवं पर्व *
विक्रम संवत् 2069

मार्गशीर्ष प्रतिपदा से मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक
[तदनुसार 29 नवंबर से 28 दिसंबर, सन् 2012]

29 नवंबर- गोप मास प्रारंभ, कात्यायनी मासिक पूजा शुरू, रोहिणी व्रत (जैन)

30 नवंबर- अशून्यशयन व्रत

2 दिसंबर- संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, सौभाग्यसुंदरी व्रत

3 दिसंबर- वीड पंचमी-श्रीमनसादेवी, शयन एवं विषहरा पूजा (मिथिलांचल), अन्नपूर्णामाता का 16 दिवसीय व्रत प्रारंभ (काशी), डॉ. राजेंद्र प्रसाद जयंती

6 दिसंबर- श्रीकालभैरवाष्टमी व्रत (कालाष्टमी), कालभैरव दर्शन-पूजन (काशी, उज्जयिनी)

7 दिसंबर- प्रथमाष्टमी (उड़ीसा), सशस्त्र सेना दिवस-झण्डा दिवस, आताल-पाताल सवारी (उज्जयिनी)

8 दिसंबर- अनला नवमी (उड़ीसा), श्रीमहावीर स्वामी दीक्षा कल्याणक (जैन)

9 दिसंबर- उत्पत्ति/उत्पन्ना एकादशी व्रत (स्मार्त्त), वैतरणी एकादशी, डॉ.राजगोपालाचार्य जयंती

10 दिसंबर- उत्पत्ति/उत्पन्ना एकादशी व्रत (वैष्णव)

11 दिसंबर- भौम-प्रदोष व्रत (ऋणमोचन हेतु प्रशस्त), मासिक शिवरात्रि व्रत, संत ज्ञानेश्वर पुण्य दिवस

12 दिसंबर- मेला पुरमण्डल एवं देविका-स्नान (जम्मू-काश्मीर)

13 दिसंबर- स्नान-दान-श्राद्ध की मार्गशीर्षी अमावस्या

14 दिसंबर- नवीन चंद्र-दर्शन, रूद्र व्रत (पीडिया व्रत) मार्तण्ड (मल्लारि) भैरव षठ्‌रात्र प्रारम्भ (महाराष्ट्र एवं मालवा)

15 दिसंबर- धनु-संक्रान्ति रात्रि 8.15 बजे(जयपुर), संक्रान्ति के स्नान-दान का पुण्यकाल मध्याह्न से सूर्यास्त तक, शुभ कार्यों में वर्जित धनु (खर) मास प्रारंभ

16 दिसंबर- वरदविनायक चतुर्थी व्रत

17 दिसंबर- विवाहपंचमी- श्रीसीता एवं श्रीराम विवाहोत्सव (मिथिलांचल, अयोध्या), नागपंचमी (दक्षिण भारत)

18 दिसंबर- श्रीराम कलेवा, स्कन्दषष्ठी व्रत, चम्पाषष्ठी, मूलकरूपिणी षष्ठी (बंगाल), सुब्रह्मण्यम षष्ठी (द.भा.),

19 दिसंबर- मित्र सप्तमी, विष्णु-नन्दा-भद्रा सप्तमी, निम्ब सप्तमी, नरसी मेहता जयंती,

20 दिसंबर- श्रीदुर्गाष्टमी व्रत

21 दिसंबर- कल्पादि, महानंदा नवमी, श्रीहरि जयंती, सूर्य सायन मकर राशि में सायं 4.42 बजे(जयपुर) तदनुसार सूर्य उत्तरायण प्रारंभ, सौर शिशिर ऋतु प्रारंभ

22 दिसंबर- राष्ट्रीय पौष मास प्रारंभ

23 दिसंबर- मोक्षदा एकादशी व्रत (स्मार्त्त), गीता जयंती, वैकुण्ठ एकादशी (द.भा.), मौनी ग्यारस (जैन), किसान दिवस, श्रद्धानन्द पुण्य दिवस

24 दिसंबर- एकादशी व्रत (वैष्णव), अखण्ड द्वादशी, केशव द्वादशी, मस्त्य द्वादशी, व्यंजन द्वादशी (गौड़ीय वैष्णव), पक्षवर्द्धिनी महाद्वादशी, श्यामबाबा द्वादशी, धरणी व्रत, उपभोक्ता दिवस

25 दिसंबर- भौम-प्रदोष (ऋणमोचन हेतु), दान द्वादशी (उड़ीसा), महामना मालवीय जयंती (तारीखानुसार)

26 दिसंबर- रोहिणी व्रत (जैन), जोड़ मेला 3 दिन (फतेहगढ़ साहिब, पंजाब)

27 दिसंबर- पिशाच-मोचन चतुर्दशी, त्रिपुर भैरव जयंती,  चांद्र पूर्णिमा व्रत, श्री दत्तात्रेय जयंती

28 दिसंबर-  श्रीसत्यनारायण व्रत-कथा-पूर्णिमा, त्रिपुरा महाविद्या एवं अन्नपूर्णा जयंती


आगे 29 दिसंबर से 27 जनवरी तक पौष मास होगा |


!! हरिहरॐ !!
!! प्रेम*शांति*आनंद !!

Monday 26 November 2012

देव दिवाली : कार्तिक पूर्णिमा



सनातन धर्म में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है| प्रत्येक वर्ष 12 पूर्णिमाएं होती हैं, जब अधिकमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 13 हो जाती है| कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है| इस पुर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि इसी दिन भगवान शिवजी ने त्रिपुरासुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे| [एक मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है] इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा, इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से भगवान शिवजी की प्रसन्नता प्राप्त होती है| इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है|


पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था|

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णुजी कार्तिक शुक्लैकादशी को जागरण के उपरांत पूर्णिमा से किशेष क्रियाशील होते हैं, जिसके उपलक्ष में देवता दिवाली मनाते हैं, इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा को देवदिवाली भी कहा जाता है|




महाभारत के अनुसार, महाभारत काल में हुए 18 दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्रीकृष्ण पांडवों सहित गढ़खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए| कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया| इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की| इसलिए इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का विशेष महत्व है|


एक मान्यता यह भी है कि इस दिन, पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है| जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान शिवजी का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है| इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी|


वैष्णव मत में भी कार्तिक पूर्णिमा को बहुत अधिक मान्यता मिली है इस पूर्णिमा को महाकार्तिकी भी कहा गया है| यदि इस पूर्णिमा के दिन भरणी नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है| अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो इस पूर्णिमा का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है| इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और बृहस्पति हों तो यह महापूर्णिमा कहलाती है| कृतिका नक्षत्र पर चन्द्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो "पद्मक योग" बनता है, जिसमें गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है|


महत्व : कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीपदान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है| इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है| इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है| मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है|

शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, पुष्कर, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है|


स्नान और दान विधि : ऋषि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है| शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें| आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें|


अतिविशिष्टदान : इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य है, क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है|


गुरुनानक जयंती : सिक्ख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देवजी का जन्म हुआ था| इस दिन सिक्ख सम्प्रदाय के अनुयायी गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक देवजी के अनुसरण का संकल्प करते हैं, इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है|


सभी को देव दिवाली/ गुरुनानक जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं...


!! हरिहरॐ !!
!! प्रेम*शांति*आनंद !!

Sunday 4 November 2012

अहोई अष्टमी : 07.11.12



               कार्तिक कृष्ण अष्टमी को महिलायें अपनी सन्तान की रक्षा और दीर्घायुष्य के लिए यह व्रत रखती हैं. इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध करते प्रदर्शन किया जाता है. माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय अहोईमाता का पूजन किया जाता है. यह अहोई गेरु आदि के द्वारा दीवाल पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर अहोई काढकर पूजा के समय उसे दीवाल पर टांग दिया जाता है. अहोई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है, उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं.

               उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है. सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं. जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है. अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है, तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है.

               ज्योतिष शास्त्रानुसार, अहोई अष्टमी 7 नवम्बर, बुधवार को होगी. इसमें पूजन लिए समय का कोई विशेष मुहुर्त नहीं है, यह पारिवारिक परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है. एक मान्यता से तारों की छांव में, तो अन्य मान्यता से चंद्रमा को अ‌र्ध्य देकर अहोई माता की पूजन की पूर्णता का विधान है. इससे पूर्व अहोई माता की कहानी सुन कर उनका पूजन किया जाता है.


अहोई अष्टमी व्रत विधि-
               विधि-विधान: अहोई व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं, ऐसा संकल्प करें. अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें. अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पर्वती की पूजा करें. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. संध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें. अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे सेह या स्याहु कहते हैं. इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है. पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें. पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं.
पूजा के पश्चात सासु-मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करें.


अहोई अष्टमी व्रत कथा-
                अहोई अष्टमी को लेकर दो कथाएं हैं, उनमें से एक कथा में साहूकार की पुत्री के द्वारा घर को लीपने के लिए मिट्टी लाते समय मिट्टी खोदने हेतु खुरपा(कुदाल) चलाने से साही के बच्चों के मरने से संबंधित है. इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें कोई भी काम अत्यंत सावधानी से करना चाहिए अन्यथा हमारी जरा सी गलती से किसी का ऐसा बडा नुकसान हो सकता है, जिसकी हम भरपाई न कर सकें और तब हमें उसका कठोर प्रायश्चित करना पडेगा. इस कथा से अहिंसा की प्रेरणा भी मिलती है. अहोईअष्टमी की दूसरी कथा मथुरा जिले में स्थित राधाकुण्डमें स्नान करने से संतान-सुख की प्राप्ति के संदर्भ में है. अहोई अष्टमी के दिन पेठे का दान करें.


                                                           !! हरिॐ तत्सत्‌ !!