Saturday 5 May 2012

छिन्नमस्ता जयंती 5 मई 2012

|| ॐ छिन्नमस्तिकायै नम: ||
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दस महा विद्याओं में छिन्नमस्ता माता छठी महाविद्या कहलाती हैं | इस वर्ष देवी छिन्नमस्ता जयंती 5 मई 2012, शनिवार के दिन मनाई जाएगी | छिन्नमस्ता देवी को "मां चिंतपूर्णी" के नाम से भी जाना जाता है | देवी के इस रूप के विषय में कई पौराणिक धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. "मार्कंडेय पुराण" व "शिव पुराण" आदि में देवी के इस रूप का विशद वर्णन किया गया है |

एक कथा के अनुसार जब देवी ने चंडी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया, दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा, परंतु देवी की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा शांत नहीँ हो पाई थी | इस पर उनकी रक्त पिपासा को शांत करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई जिस कारण माता को छिन्नमस्ता नाम से भी पुकारा जाने लगा.

माना जाता है की जहां भी देवी छिन्नमस्ता का निवास हो वहां पर चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी होता है | इस बात की सत्यता इस जगह से साबित हो जाती हैं क्योंकी मां के इस स्थान के चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी है. यहां पर कालेश्वर महादेव व मुच्कुंड महादेव तथा शिववाड़ी जैसे शिव मंदिर स्थापित हैं.

देवी छिन्नमस्ता की उत्पति कथा | (मतांतर से इसी कथा को प्रामाणिक माना जाता है)
छिन्नमस्ता के प्रादुर्भाव की एक कथा इस प्रकार है- भगवती भवानी अपनी दो सहचरियों के संग मन्दाकिनी नदी में स्नान कर रही थी | स्नान करने पर दोनों सहचरियों को बहुत तेज भूख लगी | भूख की पीडा से उनका रंग काला हो गया | तब सहचरियों ने भोजन के लिये भवानी से कुछ मांगा, भवानी के कुछ देर प्रतीक्षा करने के लिये उनसे कहा, किन्तु वह बार-बार भोजन के लिए हठ करने लगी | तत्पश्चात्‌ सहचरियों ने नम्रतापूर्वक अनुरोध किया - "मां तो भूखे शिशु को अविलम्ब भोजन प्रदान करती है " ऎसा वचन सुनते ही भवानी ने अपने खड़्ग से अपना ही सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बायें हाथ में आ गिरा और तीन रक्तधाराएं बह निकली | दो धाराओं को उन्होंने सहचरियों की और प्रवाहित कर दिया, जिन्हें पान कर दोनों तृ्प्त हो गई | तीसरी धारा जो ऊपर की बह रही थी, उसे देवी स्वयं पान करने लगी, तभी से वह "छिन्नमस्ता" के नाम से विख्यात हुई हैं |

छिन्नमस्तिका जयंती महत्व
माता छिन्नमस्ता को शाक्त्यों की "कौलाचार परम्परा" में अतिविशिष्ट स्थान प्राप्त है | माता छिन्नमस्ता की पूजन प्रक्रिया में पंच "म" कार क्रम का अनेक तांत्रिक पुरातन कल से प्रयोग करते आए हैं, चूँकि ये आमजनों के चिंतन से परे का विषय है इसलिए आमजन इनके पूजन से अनभिज्ञ रहते हैं | लेकिन फिर भी माता का प्रत्येक स्वरूप पूजनीय है इसलिए संभव हो तो इनका चित्रपट पूजन अथवा दुर्गाजी का पूजन किया जा सकता है |
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आप सभी को मंगलकामनायें...

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