Thursday, 31 May 2012

*** वेदमाता गायत्री का प्राकट्य दिवस गायत्री जयंती *** गंगावतरण का पर्व गंगा दशहरा (31.05.2012)***

| तत्सवितुर्वरेण्यं |
 || ॐ श्री गुरवे नमः ||

*** वेदमाता गायत्री का प्राकट्य दिवस गायत्री जयंती (31.05.2012) *** *** गंगावतरण का पर्व गंगा दशहरा (31.05.2012)***-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


*** गायत्री जयंती ***
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हिंदू धर्म में मां गायत्री को वेदमाता कहा जाता है अर्थात सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है। गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मां गायत्री का अवतरण माना जाता है। इस दिन को हम गायत्री जयंती के रूप में मनाते है। इस बार गायत्री जयंती का पर्व 31 मई को है।

धर्म ग्रंथों में यह भी लिखा है कि गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा उसे कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होती। गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं (ॐ स्तुता मया वरदा..... ||), जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं। विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विपत्तियों के समय उसकी रक्षा करती है।

हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है। यही कारण है गायत्री को सभी शक्तियों का आधार माना गया है इसीलिए भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को प्रतिदिन गायत्री उपासना अवश्य करनी चाहिए।









*** गंगा दशहरा ***
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हिंदू जनमानस में गंगा स्नान का विशेष महत्व है। गंगा भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की पवित्रतम नदी है। इस तथ्य को भारतीय तो मानते ही है, विदेशी विद्वान भी इसे स्वीकार करते है। जिस प्रकार संस्कृत भाषा को देववाणी कहा जाता है, उसी प्रकार गंगाजी को देवनदी कहा जाता है।

* प्रचलित मान्यता :-
ऐसा माना जाता है कि गंगा जी स्वर्गलोक से ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को पृथ्वी पर उतरी थीं (जबकि भगवती गंगा की उत्पत्ति श्रीहरि के चरणकमलों से वैशाख शुक्ल सप्तमी को मानी जाती है )। इसी दिन सूर्यवंशी राजा भगीरथ की पीढि़यों का परिश्रम और तप सफल हुआ था। उनके घोर तप के फलस्वरूप गंगाजी ने शुष्क तथा उजाड़ प्रदेश को उर्वर तथा शस्य श्यामल बनाया और भय-ताप से दग्ध जगत के संताप को मिटाया। उसी मंगलमय सफलता की पुण्य स्मृति में गंगा पूजन की परंपरा प्रचलित है।

* भारतीय संस्कृति और गंगा :-

गंगा, गीता और गौ को भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व दिया गया है। प्रत्येक आस्तिक भारतीय गंगा को अपनी माता समझता है। गंगा में स्नान का अवसर पाकर कृत-कृत्य हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन गंगा के प्रति अपनी सारी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान और पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते है। गंगा दशहरा के दिन यदि संभव हो तो गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए अथवा किसी अन्य नदी, जलाशय में या घर के ही शुद्ध जल से गंगाजल मिलाकर स्नान करें, लेकिन गंगा जी का स्मरण और पूजन अवश्य करें।

नाम मंत्र के साथ निम्न मंत्र का प्रयोग भी किया जा सकता है-
नमो भगवत्यै दशपापहरायै गंगायै नारायण्यै रेवत्यै |
शिवायै अमृतायै विश्वरूपिण्यै नंदिन्यै ते नमो नम: ||

गंगा पूजन के साथ उनको भूतल पर लाने वाले राजा भागीरथ और उद्गम स्थान हिमालय का भी पूजन नाम मंत्र से करना चाहिए। इस दिन गंगा जी को अपनी जटाओं में समेटने वाले भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए। संभव हो तो इस दिन दस फूलों और तिल आदि का दान भी करना चाहिए।

* अथक भागीरथ प्रयन्न
गंगा जी की कृपा से भारत का मानचित्र ही बदल गया है। गंगावतरण के प्रमुख साधक भगीरथ की साधना, तप और अति विकट परिश्रम ने यह अमृत फल प्रदान किया है। उनके इस कठिन प्रयत्न की वजह से ही भगीरथ प्रयत्न एक मुहावरा बन गया है और गंगा जी का एक नाम भागीरथी पड़ गया। गंगावतरण की तिथि गंगा दशहरा के दिन हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी में गंगा स्नान, गंगा पूजन और दान का विशेष महत्व है।

अतः ऐसे पवित्र दिन में यथासंभव पवित्र रहकर भगवती गंगा व वेदमाता गयात्री का पूजन-अर्चन करना चाहिये |

आप सभी को अनंत शुभकामनायें...


अभिनव वशिष्ठ.
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Friday, 25 May 2012

सनातन संस्कृति की सप्त-पुरियाँ


|| तत्सवितुर्वरेण्यं ||
|| ॐ श्री गुरवे नमः ||
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सनातन संस्कृति की सप्त-पुरियाँ...
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शास्त्रों में मुक्ति के पांच प्रकार बताये गये हैं...
१) ब्रह्म-ज्ञान
२) भक्ति द्वारा भगवत-कृपा प्राप्ति...
३) पुत्र-पौत्रादि, गोत्रज, कुटुम्बियो आदि द्वारा गया आदि तीर्थो में संपादित श्राद्ध कर्म...
४) धर्म-युद्ध और गौ-रक्षा आदि में मृत्यु...
५) कुरुक्षेत्र, पुष्कर आदि प्रधान तीर्थो में और सप्त प्रधान मोक्ष-दायिनी पुरियो में निवास-पूर्वक शरीर-त्याग

सभी तीर्थ फल देने वाले और पुण्य प्रदान करने वाले होते हैं... अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण यह सप्त-पुरिया अत्यंत प्रसिद्द हैं...

" अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका |
पुरी द्वारावती श्रेया: सप्तैता मोक्षदायका: ||"

१) अयोध्या... यह सात मोक्षदायिनी पुरियो में प्रथम है... यह भगवान् श्री हरि के सुदर्शन चक्र पर बसी है...भगवान् राम की जन्म-भूमि होने के कारण इसका महत्व बहुत अधिक है... इसका आकार मछली के समान है... स्कन्द-पुराण के वैष्णव खंड के अयोध्या माहात्म्य के अनुसार... अयोध्या का मान सहस्त्र-धारा तीर्थ से एक योजन पूर्व तक, ब्रह्म-कुण्ड से एक योजन पश्चिम तक... दक्षिण में तमसा नदी तक... और उत्तर में सरयू नदी तक है...अयोध्या में ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित ब्रह्म-कुण्ड है...और सीता जी द्वारा निर्मित सीता-कुण्ड भी है, जिसे भगवान् राम ने समस्त मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाला बना दिया है... यहाँ सहस्त्र-धारा से पूर्व स्वर्ग-द्वार है... इस स्थान पर हवन , यज्ञ, दान पुण्य आदि अक्षय हो जाता है |

२) मथुरा-वृन्दावन... यह यमुना जी के दोनों तरफ बसा है... यमुना जी के दक्षिण भाग में इसका विस्तार ज्यादा है... यमुना जी का भी महत्व है...क्योंकि यमुना जी सूर्य-पुत्री हैं और यमराज की बहन हैं... श्रीकृष्ण की प्रेमिका हैं (कालिन्दी के रुप में पत्‍‌नी हैं)... और भगवान् श्रीकृष्ण की जन्म-भूमि होने से इसका महत्व बहुत ज्यादा है |

३) हरिद्वार [ मायापुरी ]... यह तीसरी पवित्र पुरी है... यह एक शक्तिपीठ भी है... कनखल से ऋषिकेश तक का क्षेत्र मायापुरी कहलाता है... गंगा माता पर्वतों से उतरकर सर्वप्रथम यहीं समतल भूमि पर प्रवेश करती हैं... और मनुष्यों के पापो की निवृत्ति करती हैं |

४) काशी जी [ वाराणसी ]... यह नगरी भगवान् शिव के त्रिशूल पर बसी है... इस नगरी के लिए कहा जाता है की यह प्रलय काल में भी नष्ट नहीं होगी... 'वरुण' और 'असी' के मध्य होने से इसे वाराणसी कहा गया है... यहाँ पर सैंकड़ो घाट हैं... और विश्वेश्वर लिंग स्वरुप विश्वनाथ मंदिर... अन्नपूर्णा मंदिर... संकट-मोचन मंदिर... गीता मंदिर... भारतवर्ष का प्रथम भारतमाता मंदिर और सहस्त्रों अन्य मंदिर और पवित्र तीर्थ स्थान हैं... जो काशी जी की शोभा और माहात्म्य को बढाते हैं |

५) कांची... पेलार नदी के तट पर स्थित शिव-कांची और विष्णु-कांची नामो से विभक्त हरी-हरात्मक पुरी है...शिव-कांची विष्णु-कांची से बड़ी है... यह मद्रास से ७५ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित है... यहाँ वामन मंदिर... कामाख्या मंदिर... सुब्रह्मण्यम मंदिर आदि तीर्थ स्थल हैं...और सर्वतीर्थ सरोवर भी हैं |

६) उज्जैन [अवंतिका] ... उज्जैन को पृथ्वी की नाभि कहा जाता है... यहाँ महाकाल ज्योतिर्लिंग और हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ प्रसिद्द है... सम्राट विक्रमादित्य के समय में यह सम्पूर्ण भारत की राजधानी रही है... यह मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से ११५ किलोमीटर पश्चिम में है... यहाँ क्षिप्रा नदी शहर के बीचों-बीच से बहती है... यहाँ असंख्यो मंदिर हैं... पुरातन काल में ऐसा कहा जाता था कि यदि १०० बैल-गाडी अनाज की भर कर यहाँ लायी जाए और एक-एक मुट्ठी अनाज यहाँ के हर मंदिर में दिया जाए... तो अनाज कम पड़ जायगा परन्तु मंदिरों की गिनती पूर्ण नहीं होगी |

७) द्वारिका... द्वारिका पुरी सप्त-पुरीयों के साथ ही चार धामों में भी परिगणित है... यह सातवी पुरी है जो गुजरात प्रदेश के जामनगर जिले के पश्चिम समुद्र तट पर स्थित है... भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने जीवन का अधिकांश समय यहीं व्यतीत किया था... यहाँ अनेको मंदिर और तीर्थ-स्थल हैं |

|| हरिहराय नमः ||
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अभिनव वशिष्ठ.
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Sunday, 20 May 2012

सूर्यग्रहण (20/21 मई 2012) : जानिये कैसा रहेगा आपके लिए


सूर्यग्रहण (20/21 मई 2012) : जानिये कैसा रहेगा आपके लिए
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दिनाँक 21  मई  2012 ई. (पूर्वोत्तर असम आदि राज्यों में ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या) सोमवार को प्रातः सूर्योदय से पहले होने वाला सूर्यग्रहण भारत के पूर्वोत्तर राज्यों यथा - अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड सहित पश्चिम बंगाल के उत्तरी नगरों में सूर्योदय के आसन्न काल में ग्रस्तोदय खण्डग्रास रुप में कुछ मिनटों के लिए दिखाई देगा | इन राज्यों में यह सूर्यग्रहण सूर्योदय बाद कम से कम एक मिनट तथा अधिकतम 30 मिनट तक दिखाई देगा | राजस्थान, दिल्ली सहित भारत के पश्चिमी राज्यों में यह ग्रहण कहीं भी दिखाई नहीं देगा |
यह सूर्यग्रहण भारत के पूर्वी राज्यों के साथ-साथ मध्या रूस, चीन, दक्षिणी कोरिया, जापान, इंडोनेशिया, फिलीपीन्स, उत्तरी अमेरिका तथा पैसिफिक महासागर में भी दिखाई देगा | इस सूर्यग्रहण की कंकणाकृति टोकियो (जापान), ताइवान, हांगकांग, न्यू मैक्सिको, एरीजोना, नेवाडा में दिखाई देगी |


नोट:- यह सूर्यग्रहण राजस्थान, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, जम्मू कश्मीर, तमिलनाडू आदि राज्यों में दिखाई नहीं देगा | अतः यहाँ ग्रहणादि सूतक व दान, जप आदि मानने व करने की कोई आवश्यकता नहीं है |


सूर्यग्रहण के स्पर्शादि काल भारतीय स्टैंडर्ड टाईम में इस प्रकार है:-
ग्रहण की स्थिति              समय (घं.मि.)
ग्रहण प्राम्भ                      2 : 26
ग्रहण (कंकण) प्राम्भ           3 : 37
ग्रहण मध्य                       5 : 23
ख़ग्रास (कंकण) समाप्त         7 : 08
ग्रहण समाप्त                      8 : 19


ग्रहण का सूतक - भारत के पूर्वोत्तर राज्यों "जहाँ यह सूर्यग्रहण दिखाई देगा" वहाँ इस ग्रहण का सूतक 20 मई 2012 को सायंकाल सूर्यास्त के समय से प्राम्भ हो जयेगा |


ग्रहण का राशिफल - यह ग्रहण कृतिका नक्षत्र एवं वृष राशि में हो रहा है, अत: कृतिका नक्षत्र व वृष राशि में जन्में व्यक्तियों को विशेष कष्टदायक रहेगा |
मेषादि बारह राशियों पर इस ग्रहण का फल निम्न होगा :-
मेष - व्यय वृद्धि
वृष - चोट भय
मिथुन - धन हानि
कर्क - लाभ, उन्नति
सिंह - सुख - समृद्धि
कन्या - मनहानि भय
तुला - दुर्घटना भय
वृश्चिक - दाम्पत्य कष्ट
धनु - कार्यसिद्धि
मकर - मन अशांत
कुंभ - रोग भय
मीन - आर्थिक लाभ


अतएव सावधान रहें व सूर्यपूजन अवश्य करें


अभिनव वशिष्ठ.
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Saturday, 19 May 2012

शनि जयन्ती : ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या : 20.5.2012



शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन ग्रहाधिपति सूर्यदेव के यहाँ देवी छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ था | इस संवत में यह सुयोग कल अर्थात 20 मई को पड  रहा है | कुछ स्थानों पर इसे "बडपूजन  अमावस्या " या "भावुका अमावस्या" भी कहा जाता है |

महापुरूषों के मतानुसार इस दिन शनिदेव का पूजन अत्यंत शुभ फलदायी रहता है, खासकर उन व्यक्तियों के लिए जो पूर्व जन्मकृत कर्मों के कारण शनि से पीड़ित हों |

शनिदेव दण्डाधिकारी माने गए हैं। उनका ऐसा चरित्र असल में, कर्म और सत्य को जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है। जीवन में परिश्रम और सच्चाई ही ऐसी खूबियां हैं, जिन पर कठिन दौर में भी टिके रहना बड़ी सफलता व यश देने वाला होता है।

यही कारण है कि आने वाले कल को खुशहाल बनाने के लिए वर्तमान में कर्म में संयम और अनुशासन को अपनाने का संकल्प लेना अहम हैं। शुभ संकल्पों को अपनाने के लिए ही शनि जयंती के इस संयोग में शनि पूजा व उपासना आने वाले समय को दु:ख, कलह, असफलता से दूर रख सफलता व सुख लाएगी।

धर्मशास्त्रों व ज्योतिष विज्ञान में शनि पीड़ा या कुण्डली में शनि की महादशा, साढ़े साती या ढैय्या में शनि के अशुभ प्रभावों से बचाव के लिए शनि व्रत रखने का भी बहुत महत्व बताया गया है। चूंकि हर धार्मिक कर्म का शुभ फल तभी मिलता है, जब उसका पालन विधिवत किया जाए। इसलिए जानते हैं शनि अमावस्या के योग में व्रत पालन में स्नान, पूजा, दान और आहार कैसा हो?

स्नान -

शनि उपासना के लिए सबेरे शरीर पर खासकर पैरों की ऊँगलियों पर हल्का सरसों तेल लगाएं। बाद में शुद्ध जल में पवित्र नदी का जल, काले तिल मिलाकर स्नान करें।

शनि पूजा -

शनिदेव को गंगाजल से स्नान कराएं। तिल या सरसों का तेल, काले तिल, काली उड़द, काला वस्त्र, काले या नीले फूल के साथ तेल से बने व्यंजन का नैवेद्य चढ़ाएं।
शनि मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। तेल के दीप से शनि आरती करें।

दान -

शनि व्रत में शनि की पूजा के साथ दान भी जरूरी है। शनि के कोप की शांति के लिए शास्त्रों में बताई गई शनि की इन वस्तुओं का दान करें। साबुत उड़द, तेल, काले तिल, नीलम रत्न, काली गाय, भैंस, काला कम्बल या नीला-काला कपड़ा, लोहा या इससे बनी वस्तुएं और दक्षिणा किसी भार्गव (राजस्थान में इन्हें डाकोत कहा जाता है, शनि मंदिर में पुजारी भी यही हुआ करते हैं) को दान करना चाहिए यदि ऐसा संभव ना हो तो किसी शनि मंदिर में उपरोक्त वस्तुएँ चढा देनी चाहिये।

खान-पान -

शनि की अनुकूलता के लिए रखे गए व्रत में यथासंभव उपवास रखें या एक समय भोजन का संकल्प लें। इस दिन शुद्ध और पवित्र विचार और व्यवहार बहुत जरूरी है। आहार में दूध, लस्सी और फलों का रस लेवें। अगर व्रत न रख सकें तो काले उड़द की खिचड़ी में काला नमक मिलाकर या काले उड़द का हलवा खा सकते हैं।
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आशा है आप सभी इस सुअवसर का लाभ उठायेंगे |

अभिनव वशिष्ठ.
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Sunday, 6 May 2012


|| धम्मं शरणं गच्छामि ||
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आज है वैशाख शुक्ल पू्र्णिमा....बुद्ध पू्र्णिमा...पीपल पू्र्णिमा,
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वह दिन जब राजकुमार गौतम बोध को प्राप्त हुए और और वे "तथागत बुद्ध" कहलाये |
इस दिन को पीपल पू्र्णिमा इसलिए कहते हैं क्योंकि भगवान गौतम बुद्ध का संपूर्ण तप पीपल के सान्निध्य में ही हुआ था | इसीलिये बौद्ध मत में भी पीपल की अत्यधिक मान्यता है | पीपल को श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय में भगवान कृष्ण ने अपना ही स्वरूप बताया है (अश्वत्थ सर्ववृक्षाणां.), और शास्त्र में पीपल के सान्निध्य में किए गए जप, तप, ध्यान आदि को अत्यन्त फलदायी बताया गया है और बुद्धावतार में स्वयं भगवान ने इसे प्रमाणित भी कर दिया है |
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शास्त्र में पीपल पू्र्णिमा को "स्वयंसिद्ध अबूझ मुहू‌र्त्त" बताया गया है | आज का दिन यज्ञ, दान आदि सभी मांगलिक कार्यों के लिए भी अत्यन्त पुण्यदायी बताया गया है | आशा है आप सभी इस अवसर का लाभ उठायेंगे |
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आप सभी को शुभकामनायें...

Saturday, 5 May 2012

श्रीकूर्म जयंती (इस वर्ष 5-मई-2012)

आज श्रीकूर्म जयंती है |
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समुद्र मंथन का प्रसंग हम सभी ने अनेक माध्यमों से सुना‌ - ‌पढा ‌- समझा है |
जब देवताओं व दैत्यों ने अमृत प्राप्ति के लिये मंदराचल पर्वत को मथनी व नागराज वासुकि को रस्सी बनाकर मंथन आरंभ किया तो मंदराचल समुद्र में धँसने लगा तब श्रीहरि ने कूर्म (कच्छप) अवतार लिया और मंदराचल का आधार बने तब सभी ने मिलकर समुद्र मंथन किया | आगे की कथा तो आप सभी जानते ही हैं लेकिन ये कम ही लोग जानते होंगे कि आज ही का वह पवित्र दिन है जब श्रीहरि ने "कूर्मावतार" लिया था | "कूर्मावतार" श्रीहरि के प्रधान दस अवतारों में दूसरा कहा गया है |
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|| ॐ नमो नारायणाय ||

छिन्नमस्ता जयंती 5 मई 2012

|| ॐ छिन्नमस्तिकायै नम: ||
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दस महा विद्याओं में छिन्नमस्ता माता छठी महाविद्या कहलाती हैं | इस वर्ष देवी छिन्नमस्ता जयंती 5 मई 2012, शनिवार के दिन मनाई जाएगी | छिन्नमस्ता देवी को "मां चिंतपूर्णी" के नाम से भी जाना जाता है | देवी के इस रूप के विषय में कई पौराणिक धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. "मार्कंडेय पुराण" व "शिव पुराण" आदि में देवी के इस रूप का विशद वर्णन किया गया है |

एक कथा के अनुसार जब देवी ने चंडी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया, दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा, परंतु देवी की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा शांत नहीँ हो पाई थी | इस पर उनकी रक्त पिपासा को शांत करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई जिस कारण माता को छिन्नमस्ता नाम से भी पुकारा जाने लगा.

माना जाता है की जहां भी देवी छिन्नमस्ता का निवास हो वहां पर चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी होता है | इस बात की सत्यता इस जगह से साबित हो जाती हैं क्योंकी मां के इस स्थान के चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी है. यहां पर कालेश्वर महादेव व मुच्कुंड महादेव तथा शिववाड़ी जैसे शिव मंदिर स्थापित हैं.

देवी छिन्नमस्ता की उत्पति कथा | (मतांतर से इसी कथा को प्रामाणिक माना जाता है)
छिन्नमस्ता के प्रादुर्भाव की एक कथा इस प्रकार है- भगवती भवानी अपनी दो सहचरियों के संग मन्दाकिनी नदी में स्नान कर रही थी | स्नान करने पर दोनों सहचरियों को बहुत तेज भूख लगी | भूख की पीडा से उनका रंग काला हो गया | तब सहचरियों ने भोजन के लिये भवानी से कुछ मांगा, भवानी के कुछ देर प्रतीक्षा करने के लिये उनसे कहा, किन्तु वह बार-बार भोजन के लिए हठ करने लगी | तत्पश्चात्‌ सहचरियों ने नम्रतापूर्वक अनुरोध किया - "मां तो भूखे शिशु को अविलम्ब भोजन प्रदान करती है " ऎसा वचन सुनते ही भवानी ने अपने खड़्ग से अपना ही सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बायें हाथ में आ गिरा और तीन रक्तधाराएं बह निकली | दो धाराओं को उन्होंने सहचरियों की और प्रवाहित कर दिया, जिन्हें पान कर दोनों तृ्प्त हो गई | तीसरी धारा जो ऊपर की बह रही थी, उसे देवी स्वयं पान करने लगी, तभी से वह "छिन्नमस्ता" के नाम से विख्यात हुई हैं |

छिन्नमस्तिका जयंती महत्व
माता छिन्नमस्ता को शाक्त्यों की "कौलाचार परम्परा" में अतिविशिष्ट स्थान प्राप्त है | माता छिन्नमस्ता की पूजन प्रक्रिया में पंच "म" कार क्रम का अनेक तांत्रिक पुरातन कल से प्रयोग करते आए हैं, चूँकि ये आमजनों के चिंतन से परे का विषय है इसलिए आमजन इनके पूजन से अनभिज्ञ रहते हैं | लेकिन फिर भी माता का प्रत्येक स्वरूप पूजनीय है इसलिए संभव हो तो इनका चित्रपट पूजन अथवा दुर्गाजी का पूजन किया जा सकता है |
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आप सभी को मंगलकामनायें...