*** रक्षाबंधन के पवित्र शुभ मुहूर्त और मंत्र ***
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किसी भी कार्य की शुरुआत अच्छे मुहूर्त में करना चाहिए। शुभ मुहूर्त में किए गए कार्य का परिणाम भी अच्छा आता है। भाई-बहन के इस पवित्र त्योहार
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किसी भी कार्य की शुरुआत अच्छे मुहूर्त में करना चाहिए। शुभ मुहूर्त में किए गए कार्य का परिणाम भी अच्छा आता है। भाई-बहन के इस पवित्र त्योहार
के दिन बहन अपने भाई की कलाई पर मंगल मुहूर्त में राखी बांधती है, उससे भाई की उन्नति, आयु व आय में वृद्धि होती है।
* राखी के दिन ब्राह्मण बंधु जनेऊ (यज्ञोपवित्र) बदलते हैं, यह श्रावणी कर्म कहलाता है। इस बार जनेऊ बदलने का मुहूर्त- सुबह 06.32 से 8.44 तक (कर्क लग्न) है।
* रक्षाबंधन के पवित्र मुहूर्त :
सुबह 6 से 7.30
दोपहर में 12.05 से 03.00
शाम 04.31 से 07.32 तक।
लग्न अनुसार : -
सिंह लग्न - 6.33 से 08.45
कन्या - 08.45 से 10.58
धनु - 03.36 से 05.35।
** रक्षाबन्धन (श्रावण शुक्ला पूर्णिमा)
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श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को भद्रा रहित समय में रक्षाबंधन का त्योहार मनाना चाहिये। रक्षाबंधन के पहले दिन दरवाजे के दोनों तरफ गोबर के जल से धोकर 6 × 6 इंच के आकार का उस पर सूण/शगुन (पुरुष आकार) या स्वास्तिक (सातिया) गेरु से लिख देना चाहिये। पूर्णिमा को मूंग, भात या मिठाई से जिमाना (भोग लगाना) चाहिए।
पहले रोली चावल से पूजा करें बाद में जिमाना चाहिये। किसी-किसी मत से भद्रा आदि में भी रक्षाबंधन उत्सव मनाते हैं। लेकिन शास्त्रें में भद्रा में दो कार्य करने के लिये मना करते हैं।
श्लोक—‘‘भद्रा द्वे न कर्तव्यो श्रावणी फाल्गुनी तथा।’’
भद्राकाल में दो कार्यों को नहीं करना चाहिये, पहला—रक्षाबन्धन और दूसरा होलिकादहन।
प्रायः भोजन के उपरान्त राखी बांधने की परम्परा सामने आती है, जिसे सभी को स्वीकार करना चाहिये।
बहिन भाई के हाथ में राखी बांधते हैं। बहिन दुर्गा का स्वरूप है, बहिन देवताओं से प्रार्थना करती है, मेरे भाई की सब प्रकार से रक्षा करो। भाई.बहन को रुपया देता है। परन्तु भाई का कर्तव्य है, बहिन की हर तरह से रक्षा करे।
वामन भगवान जब बलि के यहां पहरा देने लगे, लक्ष्मी माता बहुत परेशान हुई। नारद द्वारा पता चला भगवान बलि के यहां है। बलि गंगा स्नान करने के लिये आया माता लक्ष्मी भी वहां वेश बदलकर घाट के किनारे बैठ गईं और रोने लगी। बलि की नजर पड़ी पूछा देवी क्यों रो रही हो, कौन हो आप, लक्ष्मी जी ने कहा क्या करूं मेरे कोई भाई नहीं है, बलि ने कहा तुम्हारे कोई भाई नहीं है, मेरे कोई बहिन नहीं है, चलो आज से मैं तुम्हारा भाई तुम मेरी बहिन हुई।
घर ले जाकर बलि ने राखी बंधवाई, और कहाµबहिन क्या सेवा करूं। लक्ष्मी जी ने कहा भाई इस दरबान वामन के बिना मेरा बैकुण्ठ सूना है, इसे दे दो। कहते.कहते लक्ष्मी जी के आंखों में आंसू छलक पड़े। सुनते ही बलि मूर्छित हो गया। जब होश में आये तो भाई को दुःखी देखकर कहा— भैया दुःखी न हो, दरबान नहीं चाहिये। बलि ने कहा - मेरी बहिन पति बिना दुखी हो, भाई कैसे सहन कर सकता है, वामन जी ने कृपा की, एक रूप से बैकुण्ठ गये, एक रूप में दरबान बने रहे।
पंडित जन इसी मंत्र से रक्षा सूत्र (कलावा, मौली) बांधते हैं—
* मन्त्र—
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्ष मां चलमाचल।।
अभिनव वशिष्ठ.
* राखी के दिन ब्राह्मण बंधु जनेऊ (यज्ञोपवित्र) बदलते हैं, यह श्रावणी कर्म कहलाता है। इस बार जनेऊ बदलने का मुहूर्त- सुबह 06.32 से 8.44 तक (कर्क लग्न) है।
* रक्षाबंधन के पवित्र मुहूर्त :
सुबह 6 से 7.30
दोपहर में 12.05 से 03.00
शाम 04.31 से 07.32 तक।
लग्न अनुसार : -
सिंह लग्न - 6.33 से 08.45
कन्या - 08.45 से 10.58
धनु - 03.36 से 05.35।
** रक्षाबन्धन (श्रावण शुक्ला पूर्णिमा)
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श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को भद्रा रहित समय में रक्षाबंधन का त्योहार मनाना चाहिये। रक्षाबंधन के पहले दिन दरवाजे के दोनों तरफ गोबर के जल से धोकर 6 × 6 इंच के आकार का उस पर सूण/शगुन (पुरुष आकार) या स्वास्तिक (सातिया) गेरु से लिख देना चाहिये। पूर्णिमा को मूंग, भात या मिठाई से जिमाना (भोग लगाना) चाहिए।
पहले रोली चावल से पूजा करें बाद में जिमाना चाहिये। किसी-किसी मत से भद्रा आदि में भी रक्षाबंधन उत्सव मनाते हैं। लेकिन शास्त्रें में भद्रा में दो कार्य करने के लिये मना करते हैं।
श्लोक—‘‘भद्रा द्वे न कर्तव्यो श्रावणी फाल्गुनी तथा।’’
भद्राकाल में दो कार्यों को नहीं करना चाहिये, पहला—रक्षाबन्धन और दूसरा होलिकादहन।
प्रायः भोजन के उपरान्त राखी बांधने की परम्परा सामने आती है, जिसे सभी को स्वीकार करना चाहिये।
बहिन भाई के हाथ में राखी बांधते हैं। बहिन दुर्गा का स्वरूप है, बहिन देवताओं से प्रार्थना करती है, मेरे भाई की सब प्रकार से रक्षा करो। भाई.बहन को रुपया देता है। परन्तु भाई का कर्तव्य है, बहिन की हर तरह से रक्षा करे।
वामन भगवान जब बलि के यहां पहरा देने लगे, लक्ष्मी माता बहुत परेशान हुई। नारद द्वारा पता चला भगवान बलि के यहां है। बलि गंगा स्नान करने के लिये आया माता लक्ष्मी भी वहां वेश बदलकर घाट के किनारे बैठ गईं और रोने लगी। बलि की नजर पड़ी पूछा देवी क्यों रो रही हो, कौन हो आप, लक्ष्मी जी ने कहा क्या करूं मेरे कोई भाई नहीं है, बलि ने कहा तुम्हारे कोई भाई नहीं है, मेरे कोई बहिन नहीं है, चलो आज से मैं तुम्हारा भाई तुम मेरी बहिन हुई।
घर ले जाकर बलि ने राखी बंधवाई, और कहाµबहिन क्या सेवा करूं। लक्ष्मी जी ने कहा भाई इस दरबान वामन के बिना मेरा बैकुण्ठ सूना है, इसे दे दो। कहते.कहते लक्ष्मी जी के आंखों में आंसू छलक पड़े। सुनते ही बलि मूर्छित हो गया। जब होश में आये तो भाई को दुःखी देखकर कहा— भैया दुःखी न हो, दरबान नहीं चाहिये। बलि ने कहा - मेरी बहिन पति बिना दुखी हो, भाई कैसे सहन कर सकता है, वामन जी ने कृपा की, एक रूप से बैकुण्ठ गये, एक रूप में दरबान बने रहे।
पंडित जन इसी मंत्र से रक्षा सूत्र (कलावा, मौली) बांधते हैं—
* मन्त्र—
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्ष मां चलमाचल।।
अभिनव वशिष्ठ.
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