ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि ''गीता जयंती'' के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है। इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है। भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय में कहते हैं, मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूँ। इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था।
भगवद्गीता के पठन-पाठन, श्रवण एवं मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता के भाव आते हैं। गीता केवल लाल कपड़े में बाँधकर घर में रखने के लिए नहीं बल्कि उसे पढ़कर संदेशों को आत्मसात करने के लिए है। गीता का चिंतन अज्ञानता के आचरण को हटाकर आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है। गीता भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास है। गीता ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हम सब हर काम में तुरंत नतीजा चाहते हैं लेकिन भगवान ने कहा है कि धैर्य के बिना अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी। गीता केवल ग्रंथ नहीं, कलियुग के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है। जिसके जीवन में गीता का ज्ञान नहीं वह पशु से भी बदतर होता है। भक्ति बाल्यकाल से शुरू होना चाहिए। अंतिम समय में तो भगवान का नाम लेना भी कठिन हो जाता है तो गीता कहां जीवन में उतर पायेगी।
दुर्लभ मनुष्य जीवन हमें केवल भोग विलास के लिए नहीं मिला है, इसका कुछ अंश भक्ति और सेवा में भी लगाना चाहिए। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। अध्यात्म और धर्म की शुरुआत सत्य, दया और प्रेम के साथ ही संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फलेगा और फूलेगा। गीता तो मरना भी सिखाती है, जीवन को तो धन्य बनाती ही है। गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं यह एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।
कर्म की अवधारणा को अभिव्यक्त करती गीता चिरकाल से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना तब रही। विचारों को तर्क दृष्टी के द्वारा बहुत ही सरल एवं प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया गया है, संसार के गूढ़ ज्ञान तथा आत्मा के महत्व पर विस्तृत एवं विशद वर्णन प्राप्त होता है। गीता में अर्जुन के मन में उठने वाले विभिन्न सवालों के रहस्यों को सुलझाते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें सही एवं गलत मार्ग का निर्देश प्रदान करते हैं। संसार में मनुष्य कर्मों के बंधन से जुड़ा है और इस आधार पर उसे इन कर्मों के दो पथों में से किसी एक का चयन करना होता है। इसके साथ ही परमात्मतत्त्व का विशद वर्णन करते हुए अर्जुन की शंकाओं का समाधान करते हैं। गीता आत्मा एवं परमात्मा के स्वरूप को व्यक्त करती है। कृष्ण के उपदेशों को प्राप्त कर अर्जुन उस परम ज्ञान की प्राप्ति करते हैं जो उनकी समस्त शंकाओं को दूर कर उन्हें कर्म की ओर प्रवृत करने में सहायक होती है। गीता के विचारों से मनुष्य को उचित बोध कि प्राप्ति होती है, यह आत्मतत्व का निर्धारण करता है, उसकी प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। आज के समय में इस ज्ञान की प्राप्ति से अनेक विकारों से मुक्त हुआ जा सकता है।
आज जब मनुष्य भोग विलास, भौतिक सुखों, काम वासनाओं में जकडा़ हुआ है और एक दूसरे का अनिष्ट करने में लगा है तब इस ज्ञान का प्रादुर्भाव उसे समस्त अंधकारों से मुक्त कर सकता है क्योंकि जब तक मानव इंद्रियों की दासता में है, भौतिक आकर्षणों से घिरा हुआ है, तथा भय, राग, द्वेष एवं क्रोध से मुक्त नहीं है तब तक उसे शांति एवं मुक्ति का मार्ग प्राप्त नहीं हो सकता।
!! हरिहरॐ !!
!! प्रेम.शान्ति.आनंद !!
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