कुशाग्रहणी अमावस्या भाद्रपद कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन मनाई जाती है. इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है.
* कुशाग्रहणी अमावस्या विधि-विधान
कुशाग्रहणी/कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये कुश/कुशा एकत्र कर लेते हैं. प्रत्येक धार्मिक कार्य के लिए कुशा का इस्तेमाल किया जाता है. शास्त्रों में भी दस तरह की कुशा का वर्णन प्राप्त होता है.
यथा- कुशाः काशा यवा दूर्वा उशीराश्च सकुंदकाः |
गोधूमा ब्राह्मयो मौञ्जा दश दर्भाः सबल्वजाः ||
जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण हो, इसमें सात पत्ती हो, कोई भाग कटा न हो, पूर्ण हरा हो, तो वह कुशा देवताओं तथा पितृ दोनों कृत्यों के लिए उचित मानी जाती है.
कुशा तोड़ते समय ""विरञ्चिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज | नुद सर्वाणि पापानि दर्भा स्वस्तिकरो भव || हूं फट्"" मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.
इससे पूर्व अघोरा चतुर्दशी के दिन भी तर्पण कार्य भी किए जाते हैं मान्यता है कि इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है. हिमाचल आदि पहाड़ी प्रदेशों के ग्रामीण क्षेत्रों में परिजनों को बुरी आत्माओं के प्रभाव से बचाने के लिए लोग घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर कांटेदार झाडिय़ों को लगाते हैं यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
* कुशाग्रहणी अमावस्या का महत्व
शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है. इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है. जब अमावस्या के दिन सोम, मंगलवार और गुरुवार के साथ जब अनुराधा, विशाखा और स्वाति नक्षत्र का योग बनता है, तो यह बहुत पवित्र योग माना गया है. इसी तरह शनिवार, और चतुर्दशी का योग भी विशेष फल देने वाला माना जाता है. शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाता है.
* कुशाग्रहणी अमावस्या फल
कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से छुटकारा मिलता है. इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों के विधान है. भगवान विष्णु की आराधना की जाती है यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है. जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है.
अभिनव शर्मा 'वशिष्ठ'
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