Wednesday, 26 December 2012

कुंभ 2013



प्रयागराज (इलाहबाद) में कुंभ महापर्व, मकर में सूर्य व वृष के बृहस्पति में मनाया जाता है |

    यथा-    ''मकरे च दिवानाथे वृष राशि गते गुरौ |
                प्रयागे कुम्भयोगो वै माघ मासे विधुक्षये ||''

इस प्रमाण से देवगुरु बृहस्पति दिनांक 17 मई 2012 ई. को प्रातः 9:35 पर वृष राशि में प्रवेश कर चुके हैं तथा सूर्यदेव दिनांक 14 जनवरी 2013 से 12 फरवरी 2013 ई. तक मकर राशि में विचरण करेंगे | जिससे यह कुंभ महापर्व त्रिवेणी संगम प्रयागराज में मकर संक्रांति 14 जनवरी 2013 से शुरु होकर आगामी दो मास तक अर्थात 11 मार्च 2013 ई. तक चलेगा |


इस कुंभ महापर्व के तीन शाही स्नान-

(1) मकर संक्रांति पर्व - पौष शुक्ल तृतीया, सोमवार, दिनांक- 14.1.13
(2) माघी मौनी अमावस्या - माघ कृष्ण अमावस्या, रविवार, दिनांक- 10.2.13
(3) बसंत पंचमी - माघ शुक्ल चतुर्थी, गुरुवार, दिनांक- 14.2.13


इस कुंभ महापर्व के अंगभूत स्नान-

(1) पुत्रदा एकादशी, मंगलवार - 22.1.13
(2) पौषी पूर्णिमा, रविवार - 27.1.13
(3) महोदय योग, शनिवार - 9.2.13
(4) कुंभ संक्रांति पुण्यकाल, मंगलवार - 12.2.13
(5) सूर्य रथ सप्तमी, रविवार - 17.2.13
(6) भीष्माष्टमी, सोमवार - 18.2.13
(7) जया एकादशी, गुरुवार - 21.2.13
(8) भीष्म द्वादशी, शुक्रवार - 22.2.13
(9) माघी पूर्णिमा, सोमवार - 25.2.13
(10) विजया एकादशी, शुक्रवार - 8.3.13
(11) महा शिवरात्रि, रविवार - 10.3.13
(12) सोमवती अमावस्या, सोमवार - 11.3.13

कुम्भ पर्व



               कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल- हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक- में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष इस पर्व का आयोजन होता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ होता है।



पौराणिक कथा

               कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार ऋषि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र 'जयंत' अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।

               इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया।

               अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतएव कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है।
जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है।

Tuesday, 25 December 2012

!! गोविंद दामोदर स्तोत्र !!



करारविन्देन पदारविन्दं
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तं !
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं
बाल मुकन्दं मनसा स्मरामि !1!!

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव !
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति !2!!

विक्रेतुकामा किल गोपकन्या
मुरारिपादार्पितचित्तवृति: !
दध्यादिकं मोहवशादवोचद्
गोविन्द दामोदर माधवेति !3!!

गृहे गृहे गोपवधुकदंबा:
सर्वे मिलित्वा समवाप्य योगं !
पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्य
गोविन्द दामोदर माधवेति !4!!

सुख शयना निलये निजेअपि
नामानि विष्णोः प्रवदन्ति मत्:र्या: !
ते निश्चितं तन्मयतां व्रजदन्ति
गोविन्द दामोदर माधवेति !5!!

जिह्वे सदैवं भज सुन्दराणि
नामानि कृष्णस्य मनोहराणि !
समस्त भक्तार्तिविनाशनानि
गोविन्द दामोदर माधवेति !6!!

सुखावसाने इदमेव सारं
दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम !
देहावसाने इदमेव जाप्यं
गोविन्द दामोदर माधवेति !7!!

श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश
गोपाल गोवर्धननाथ विष्णो !
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति !8!!

*******************


इस स्तोत्र का जाप रोज संध्या करते समय करना चाहिए, इसका नित्य जाप करने से भगवान गोविन्द (कृष्ण) की कृपा होती है और पारिवारिक क्लेशो से छुटकारा मिलता है, व घर व परिवार में शान्ति बनी रहती है |

।। मधुराष्टकं ।।



अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। १ ।।

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम्
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। २ ।।

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ३ ।।

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ४ ।।

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ५ ।।

गुञ्जा मधुरा बाला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ६ ।।

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ७ ।।

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ।। ८ ।।


इति श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं मधुराष्टकं सम्पूर्णं ।।


*************

Friday, 21 December 2012

गीता जयंती - मोक्षदा एकादशी



ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि ''गीता जयंती'' के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह एकादशी मोह का क्षय करनेवाली है। इस कारण इसका नाम मोक्षदा रखा गया है। भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय में कहते हैं, मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूँ। इसके पीछे मूल भाव यह है कि मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था। 



भगवद्‍गीता के पठन-पाठन, श्रवण एवं मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता के भाव आते हैं। गीता केवल लाल कपड़े में बाँधकर घर में रखने के लिए नहीं बल्कि उसे पढ़कर संदेशों को आत्मसात करने के लिए है। गीता का चिंतन अज्ञानता के आचरण को हटाकर आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है। गीता भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास है। गीता ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हम सब हर काम में तुरंत नतीजा चाहते हैं लेकिन भगवान ने कहा है कि धैर्य के बिना अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी। गीता केवल ग्रंथ नहीं, कलियुग के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है। जिसके जीवन में गीता का ज्ञान नहीं वह पशु से भी बदतर होता है। भक्ति बाल्यकाल से शुरू होना चाहिए। अंतिम समय में तो भगवान का नाम लेना भी कठिन हो जाता है तो गीता कहां जीवन में उतर पायेगी। 


दुर्लभ मनुष्य जीवन हमें केवल भोग विलास के लिए नहीं मिला है, इसका कुछ अंश भक्ति और सेवा में भी लगाना चाहिए। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। अध्यात्म और धर्म की शुरुआत सत्य, दया और प्रेम के साथ ही संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फलेगा और फूलेगा। गीता तो मरना भी सिखाती है, जीवन को तो धन्य बनाती ही है। गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं यह एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।

कर्म की अवधारणा को अभिव्यक्त करती गीता चिरकाल से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना तब रही। विचारों को तर्क दृष्टी के द्वारा बहुत ही सरल एवं प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया गया है, संसार के गूढ़ ज्ञान तथा आत्मा के महत्व पर विस्तृत एवं विशद वर्णन प्राप्त होता है। गीता में अर्जुन के मन में उठने वाले विभिन्न सवालों के रहस्यों को सुलझाते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें सही एवं गलत मार्ग का निर्देश प्रदान करते हैं। संसार में मनुष्य कर्मों के बंधन से जुड़ा है और इस आधार पर उसे इन कर्मों के दो पथों में से किसी एक का चयन करना होता है। इसके साथ ही परमात्मतत्त्व का विशद वर्णन करते हुए अर्जुन की शंकाओं का समाधान करते हैं। गीता आत्मा एवं परमात्मा के स्वरूप को व्यक्त करती है। कृष्ण के उपदेशों को प्राप्त कर अर्जुन उस परम ज्ञान की प्राप्ति करते हैं जो उनकी समस्त शंकाओं को दूर कर उन्हें कर्म की ओर प्रवृत करने में सहायक होती है। गीता के विचारों से मनुष्य को उचित बोध कि प्राप्ति होती है, यह आत्मतत्व का निर्धारण करता है, उसकी प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। आज के समय में इस ज्ञान की प्राप्ति से अनेक विकारों से मुक्त हुआ जा सकता है।


आज जब मनुष्य भोग विलास, भौतिक सुखों, काम वासनाओं में जकडा़ हुआ है और एक दूसरे का अनिष्ट करने में लगा है तब इस ज्ञान का प्रादुर्भाव उसे समस्त अंधकारों से मुक्त कर सकता है क्योंकि जब तक मानव इंद्रियों की दासता में है, भौतिक आकर्षणों से घिरा हुआ है, तथा भय, राग, द्वेष एवं क्रोध से मुक्त नहीं है तब तक उसे शांति एवं मुक्ति का मार्ग प्राप्त नहीं हो सकता।


!! हरिहरॐ !!
!! प्रेम.शान्ति.आनंद !!

जरूरी है दादा-दादी का साथ



बदलती जीवन शैली और व्यवसायिक परिस्थितियों ने व्यक्ति को अपना घर-परिवार, अपने माता-पिता से दूर जीवन व्यतीत करने के लिए विवश कर दिया है | आय के बेहतर अवसरों की तलाश और आर्थिक स्थिति सशक्त बनाने के लिए व्यक्ति जब अपने अभिभावकों से अलग दूसरे शहरों में रहने लगता है, तो ऐसे में वह वहीं अपना परिवार बसा लेता है, परिणामस्वरूप आधुनिक परिप्रेक्ष्य में एकल परिवारों की संख्या में दिनोंदिन वृद्धि होने लगी है |

भले ही यह एकल परिवार आज के युवाओं की पहली पसंद हों, लेकिन हाल ही में हुए एक शोध ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बच्चों के प्रारंभिक विकास के लिए परिवार के बड़े-बुजुर्गों का सांनिध्य अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है | सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि यह सर्वेक्षण एक ब्रिटिश संस्थान द्वारा कराया गया है, जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता और हितों को अत्यधिक महत्व मिलने के चलते संयुक्त परिवारों का औचित्य न के बराबर है | वह भी इस तथ्य को स्वीकारते हैं कि दादा-दादी, बच्चों को केवल लाड़-प्यार ही नहीं करते बल्कि उनके नैतिक और मानसिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं |

यद्यपि यह शोध एक विदेशी कंपनी द्वारा कराया गया है, लेकिन यह भारतीय परिदृश्य के संदर्भ में और अधिक प्रासंगिक प्रतीत होता है | आमतौर पर यह देखा जा सकता है कि विदेशों में जहां एक ओर बच्चे अपने अभिभावकों को पर्याप्त महत्व नहीं देते वहीं अभिभावक भी बच्चों के जीवन में हस्तक्षेप नहीं कराते हैं, जो एकल परिवारों की प्रमुखता का कारण बनता है | इसके परिणामस्वरूप आपसी और करीबी संबंध भी बेहद औपचारिक बन जाते हैं | लेकिन भारत में ऐसी परिस्थितियां पाश्चात्य देशों का अत्यधिक अनुसरण करने की ही देन हैं जो वैश्वीकरण और उदारीकरण जैसी नीतियों के भारत में आगमन के बाद पैदा हुई हैं | संयुक्त परिवार का महत्व गौण होने के पीछे सबसे बड़ा उत्तरदायी कारक लोगों में आत्मकेंद्रित होती मानसिकता है जो उन्हें केवल अपने परिवार और अपने तक ही सीमित रखती है | तथाकथित मॉडर्न होते युवा माता-पिता के साथ रहना आउट ऑफ फैशन समझते हैं | अपना अलग घर, अपनी अलग दुनियां बसाना उन्हें बहुत आकर्षक लगता है | इसके अलावा बढ़ती महंगाई भी एक और कारण है जिसकी वजह से घर में ज्यादा सदस्य होना बोझिल लगने लगता है, लेकिन आज की युवा पीढी अपने मौज-शौक में कोई कटौती करने को तैयार नहीं, अल्बत्ता बडे-बुज़ुर्गों की छत्रछाया हो न हो |

भले ही एकल परिवार, आजकल की वैवाहिक दंपत्ति को एक अच्छा विकल्प लगता हों, लेकिन निश्चित तौर पर दादा-दादी से दूरी बच्चों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है | ऐसा नहीं है बुजुर्गों से दूरी बच्चों को असभ्य बनाती है, लेकिन अगर दादा-दादी का साथ हो तो बच्चे और अधिक भावुक और समझदार हो जाते हैं | आजकल के दौर में जब महिलाएं भी घर से बाहर काम करने जाती हैं और बच्चे घर में अकेले होते हैं तो ऐसे में अगर उन्हें दादा-दादी का साथ मिल जाए तो वह खुद को सहज महसूस तो करते ही हैं, इसके अलावा उन्हें अपने परिवार की उपयोगिता भी भली-भांति समझ में आती है |


माँ(दादी) के स्नेह को समर्पित...


!! हरिहरॐ !!
!! प्रेम.शान्ति.आनंद !!

Tuesday, 11 December 2012

* दो सीख *


               पिछले दिनों एक पुराने साथी ने इस बात का उलाहना दिया कि इस बार मैनें दिवाली की बधाई का फोन नहीं किया | एकबारगी तो जवाब देने का मन नहीं हुआ, लेकिन जब उससे कंट्रोल ही नहीं हुआ तो मैनें सोचा... आज तो इसका मुँह बंद करना ही पडेगा | वो जब बोल चुका तो मैनें कहा, हम पिछले कई सालों से कॉंन्टेक्ट में हैं, इन सालों में होली, दिवाली, सकरात(संक्रांति), तेरा बर्थ-डे, तेरी शादी की सालगिराह, यहाँ तक कि तेरी श्रीमति के बर्थ-डे तक पे मैनें कॉल किया, कभी-कभी तो ऐसा भी हुआ है कि तेरे बर्थ-डे पे सिर्फ़ मैनें ही कॉल किया था; अब तू ज़रा मुझे याद करके बता के तूने आखरी बार कब मुझे कॉल किया था? बेचारे की बोलती बंद हो गई, मैनें थोडी रियायत बरती और पूछा, चल ये ही बता दे कि मेरा बर्थ-डे कब आता है? इस बार बेचारे का मुँह लटक गया |

               थोडी देर शांति छाई रही, कुछ देर बाद मैंनें कहा, अगर मैं तुझसे पूछुं के तूने कॉल क्यूं नहीं किया, तो तेरा जवाब क्या होगा? यही न कि बिज़ी था, इसलिए ध्यान नहीं रहा, तो मेरे भाई, जब तू इतना ही बिज़ी है तो मैं तुझे फोन करके डिस्टर्ब क्यों करुँ? इतना सुनने के बाद वो कुछ ना बोल पाया |


 उसकी बोलती तो बंद हो गई लेकिन इस घटना ने मुझे दो सीख दी,
पहली, किसी को उलाहना देने या बुरा कहने से पहले अपने अंदर भी झांक लो, कहीं वो कमियाँ तुम्हारे अंदर भी तो नहीं;
और दूसरी, रिश्ते निभाने से निभते हैं, बहाने ढूंढने से नहीं, टाईम किसी के पास नहीं है, सब अपनी-अपनी लाइफ में बिज़ी हैं, रिश्तों के लिए टाईम निकालना पडता है, किसी ने कहा भी है, ''रिश्ते बना उतना आसान है जितना मिट्‍टी से मिट्‍टी पर मिट्‍टी लिखना और निभाना उतना ही मुश्किल है जितना पानी से पानी पर पानी लिखना |



''हरिहरॐ''
प्रेम.शांति.आनंद