Tuesday, 19 June 2012

आषाढी गुप्त नवरात्रा (20.06.12 - 28.06.12)



            कालचक्र के विभाग अनुसार एक दिन-रात में चार संधिकाल होते हैं, जिन्हें हम प्रात:, मध्यान्ह, सायं और मध्यरात्रि कहते हैं। इन्हीं को उत्तरायण और दक्षिणायण भी कहा गया है। जिस प्रकार मकर और कर्क वृत से अयन परिवर्तन होता है, उसी प्रकार मेष और तुला से उत्तर तथा दक्षिण गोल परिवर्तन होता है। एक वर्ष में कुल चार संधियां होती हैं। दो अयन परिर्वतन की और दो गोल परिवर्तन की। इनको ही हम नवरात्र पर्व के रूप में मनाते हैं।

           प्रात: काल- गोलसंधि-चैत्र नवरात्र
मध्यान्ह-अयन संधि- आषाढ़ नवरात्र (गुप्त नवरात्र)
सायंकाल- गोल संधि- आश्विन नवरात्र
मध्यरात्रि- अयन संधि- माघ नवरात्र (गुप्त नवरात्र)
आषाढ़ एवं माघ मास में गुप्त नवरात्र होते हैं। अयन संधि के अनुसार आषाढ़ और माघ मास के नवरात्र गुप्त रूप से मनाए जाते हैं। यह समय तांत्रिकों के लिए विशेष साधना का माना गया है। यह पर्व रात्रि प्रधान है। तंत्र शास्त्र में "रात्रि स्पा यतो देवी दिवा स्पो महेश्वर" अर्थात दिन को शिव (पुरूष) स्पा में तथा रात्रि को (शक्ति) रूपा माने गए हैं।

           आदि शक्ति मां दुर्गा का स्वरूप तीव्र और शांत दोनों प्रकार का है। तामसी कार्यो अर्थात शत्रु बाधा, उच्चाटन, मारण, सम्मोहन आदि दोष निवारण के लिए देवी स्वरूप चंद्रिका काली की तथा समस्त मनोकामना की पूर्ति एवं आर्थिक-व्यापारिक उन्नति के लिए मां दुर्गा के शांत स्वरूप की साधना की जाती है। इस वर्ष 20 जून बुधवार आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से गुप्त नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में कू्र ग्रहों से परेशानी हो उनके लिए ग्रहों से संबंधित शांति का यह अच्छा समय है। प्रतिकूल ग्रहों को शांत करने के लिए और मंत्र-यंत्र सिद्धि के लिए गुप्त नवरात्र उत्तम माना गया है |

अभिनव वशिष्ठ.
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