कपालभाती और भस्त्रिका प्राणायाम में जिस प्रकार तेजी से सांस लिया और छोड़ा जाता है उससे रक्त, उत्तकों और कोशिकाओं में विद्यमान कार्बनडाईऑक्साइड की मात्रा कम होती है, कोशिकाओं तक पहुँचने वाले ऑक्सीजन में कोई विशेष बढ़ोत्तरी नहीं होती, क्योंकि एक स्वस्थ व्यक्ति में ऑक्सीजन की मात्रा जितनी आवश्यक है उतनी हमेशा सहज श्वांस लेते रहते पर मिल जाती है, सामान्यतः कार्बनडाईऑक्साइड निकल जाने से श्वसन केंद्र उत्तेजित नहीं होते और संभवत: अन्य तंत्रिका केंद्र भी शांत रहते हैं |
कपालभाती, भस्त्रिका और नाड़ी शोधन प्राणायाम (जिसमें एक मिनट से अधिक सांस नहीं रोकी गई हों) के समय मुख्य शारीरिक परिर्वतन यह होता है कि तेजी से साँस लेने के अंतिम चरण में रक्त में कार्बनडाईऑक्साइड की जो मात्रा रहती है वह धीरे-धीरे बढ़ती हुई सामान्य स्तर से अधिक हो जाती है | एक मिनट के कुम्भक के दौरान कोशिकाएँ, लाल रक्त कण और फेफड़ों में जो ऑक्सीजन जमा रहता है उसे उपयोग में लाती है |
प्राणायाम का जो सब से व्यापक प्रभाव है उन में प्रमुख है तंत्रिकातंत्र को शांत, संतुलित, तथा निरभ्र करना, उत्तेजना घटना, ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव होना तथा चेतना की प्रखरता |
इन प्रभावों की व्याख्या हमारे आधुनिक शरीर विज्ञान के ज्ञात सिद्धातों के द्वारा नहीं हो सकती | प्राणायाम के अभ्यास से जो सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, वह है श्वसन केंद्रों का स्वेच्छा से नियंत्रण | संभवत: इसका प्रभाव मस्तिष्क के अन्य उन्नत केंद्रों पर पड़ता है, जिसकी अंतिम परिणति मन और इसकी क्रियाओं पर अधिक नियंत्रण और स्वामित्व के रूप में होती है | रक्त में थोड़ी देर तक कार्बनडाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से उत्प्रेरक की तरह का प्रभाव होता है | इसके कारण कोशिकाओं के अंदर होने वाली रासायनिक क्रियाओं की गति बढ़ जाती है | प्राणायाम कठिन व्यायाम है | जिसका प्रभाव हृदय की गति और रक्तचाप पर भी पड़ता है | प्राणायाम आसनों के अभ्यास से अधिक प्रभावशाली और सुरक्षित है | इसका गहन अभ्यास किसी गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए |
(यह प्रयास श्रीगुरुचरणों में समर्पित, जो स्वयं इसका आधार है)
अभिनव वशिष्ठ.
ஜ۩۞۩ஜ हरि ॐ तत्सत् ஜ۩۞۩ஜ
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