* शनि अमावस्या
शनि अमावस्या के दिन श्रीशनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. 15 सितम्बर 2012 को शनिवार के दिन शनि अमावस्या मनाई जानी है, यह पितृकार्य अमावस्या के रुप में भी जानी जाती है. कालसर्प योग, ढैय्या तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने का यह दुर्लभ समय होता है जब शनिवार के दिन अमावस्या का समय हो जिस कारण इसे शनि अमावस्या (या शनीचरी अमावस्या या शनैश्चरी अमावस्या) कहा जाता है.
श्री शनिदेव कर्मफल व्यवस्था में दंडाधिकारी हैं. यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो व्यक्ति के सभी कष्टों दूर हो जाते हैं. श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला करते हैं. इस दिन शनिदेव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है.
शनैश्चरी अमावस्या पर शनिदेव का विधिवत पूजन कर सभी लोग पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं. शनिदेव क्रूर नहीं अपितु कल्याणकारी हैं. इस दिन विशेष अनुष्ठान द्वारा पितृदोष और कालसर्प दोषों से उत्पन्न कष्टों में भी न्यूनता लाई जा सकती है. इसके अलावा शनि का पूजन और तैलाभिषेक कर शनि की साढेसाती, ढैय्या और महादशा जनित कष्टों से भी मुक्ति पाई जा सकती है.
* शनि अमावस्या पितृदोष से मुक्ति में भी सहायक
पितरों की तिथि होने के कारण अमावस्या का विशेष महत्व है और अमावस्या अगर शनिवार के दिन पड़े तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है. भविष्यपुराण के अनुसार शनैश्चरी अमावस्या शनिदेव को अधिक प्रिय रहती है. शनिदेव की कृपा का पात्र बनने के लिए शनैश्चरी अमावस्या को सभी को विधिवत आराधना करनी चाहिए.
शनैश्चरी अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पितृदोष या जो भी कोई पितृदोष की पीडा़ को भोग रहे होते हैं उन्हें इस दिन दान इत्यादि विशेष कर्म करने चाहिए. यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिन किया गया श्राद्ध आने वाले समय में मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है, क्योंकि शनिदेव की अनुकंपा से पितरों का उद्धार बडी सहजता से हो जाता है.
* शनि अमावस्या पूजन
पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनिदेव का आवाहन कर अथवा मन्दिर में दर्शन कर, पूजन करना चाहिए. शनिदेव का नीले पुष्प, बेल पत्र, अक्षत अर्पण करें.
शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु शनि मंत्र
“ॐ शं शनैश्चराय नम:”,
अथवा
“ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नम:”
का जाप करना चाहिए. इस दिन सरसों के तैल, उडद, काले तिल, कुलथी, गुड शनियंत्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री को शनिदेव पर अर्पित करना चाहिए और शनि देव का तैलाभिषेक अवश्य करना चाहिए. शनि अमावस्या के दिन शनि मंत्र/स्तोत्र, हनुमान चालीसा या संकटमोचन हनुमानाष्टक आदि के पाठ भी किए जा सकते हैं. जिनकी कुंडली या राशि पर शनि की साढ़ेसाती व ढैया का प्रभाव हो ऐसे जातकों को तो शनि अमावस्या के दिन पर शनिदेव का विधिवत पूजन अवश्य ही करना चाहिए.
* शनि अमावस्या महत्व
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार साढ़ेसाती एवं ढ़ैय्या के दौरान शनि व्यक्ति को अपना शुभाशुभ फल प्रदान करता है. शनि अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस दिन शनिदेव को प्रसन्न करके व्यक्ति शनि के कोप से अपना बचाव कर सकते हैं. पुराणों के अनुसार शनि अमावस्या के दिन शनिदेव को प्रसन्न करना बहुत आसान व विशेष होता है. शनि अमावस्या के दिन शनिदोष की शांति बहुत ही सरलता कर सकते हैं.
इस दिन महाराज दशरथकृत या ऋषि पिप्पलादकृत शनिस्तोत्र का पाठ करके शनि की कोई भी वस्तु जैसे काला तिल, लोहे की वस्तुएँ, काला चना, कंबल, नीला फूल दान आपको शनिकृत कष्टों से बचाए रखते हैं. जो लोग इस दिन यात्रा में जा रहे हैं और उनके पास समय की कमी है वह सफर में शनिमंत्र अथवा “कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम:। सौरी: शनिश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।” मंत्र का जप करने का प्रयास अवश्य करें.
|| ॐ शं शनैश्चराय नम: ||
''वशिष्ठ''
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