Tuesday, 18 September 2012

हरितालिका तीज - 18.9.12



               भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन अखंड सौभाग्य की कामना के लिए स्त्रियां हरतालिका तीज का विशिष्ट व्रत रखती हैं. शास्त्र इस व्रत की आज्ञा सम्पूर्ण स्त्री जाति को प्रदान करता है. कुँवारी कन्याएँ सुयोग्य एवं सुंदर जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए और विवाहिता स्त्रियां अपने पति की सुख, समृद्धि और दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं. इस व्रत को अखण्ड सौभाग्य प्रदान करने वाला  माना जाता है. यह सबसे कठिन व्रत माना जाता है. इसमें सुबह चार बजे उठकर बिना बोले नहाना होता है और फिर निर्जल रहकर व्रत करना पड़ता है अर्थात इसमें अन्न, फल, दूध इत्यादि की मनाही तो होती है, पूरे दिन व्रत करने वाली स्त्रियां जल भी नहीं पीती. हरतालिका तीज पर रात भर भजन-जागरण होता है. इस व्रत को करने की इच्छुक स्त्रियों को चाहिए कि वे व्रत के एक दिन पहले बहुत ही सात्विक आहार लें. फलाहार अथवा अन्य हल्का आहार करना उत्तम होगा. रात्रि को सोने से पहले दातुन कर लेना चाहिए. रात्रि में सोते समय भवगती पार्वती और भगवान शिव से इस कठिन व्रत को पूरा करने के लिए शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करें.
इस व्रत का प्रारंभ ''मम उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये'' के संकल्प के साथ करना चाहिए.

              भारतीय महिलाओं ने इस पुरानी परंपराओं को कायम रखा है. यह शिव-पार्वती की आराधना का सौभाग्य व्रत है, जो केवल महिलाओं के लिए है. महिलाएं व कन्याएं भगवान शिव को गंगाजल, दही, दूध, शहद आदि से स्नान कराकर उन्हें फल समर्पित करती हैं. रात्रि के समय अपने घरों में सुंदर वस्त्रों, फूल पत्रों से सजाकर फुलहरा बनाकर भगवान शिव और पार्वती का विधि-विधान से पूजन अर्चन किया जाता है.


पौराणिक कथा : 

                हरितालिका तीज की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शंकर-पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे थे. तब पार्वती ने शंकर जी से पूछा कि सभी व्रतों में श्रेष्ठ व्रत कौन-सा है और मैं आपको पत्नी के रूप में कैसे मिली. तब शंकर जी ने कहा कि जिस प्रकार नक्षत्रों में चंद्रमा, ग्रहों में सूर्य, चार वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में विष्णु, नदियों में गंगा श्रेष्ठ है. उसी प्रकार व्रतों में हरितालिका व्रत श्रेष्ठ है. पार्वती ने पूर्व में हिमालय पर्वत पर हरितालिका व्रत किया था. (माना जाता है कि भगवान शिव ने पार्वती को उनके पूर्वजन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत की महात्म्य कथा कही थी).

              कथा के अनुसार पूर्वजन्म में पार्वती प्रजापति दक्ष और प्रसूति की पुत्री थीं और उनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया. सती भगवान शिव के मना करने पर भी पिता द्वारा आयोजित यज्ञ को देखने पहुंच गयीं. यज्ञस्थल पर प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान शंकर का घोर अपमान किया गया. इस अपमान से क्षुब्ध होकर सती ने स्वयं को योगाग्नि में भस्म कर लिया. सती की मृत्यु का समाचार पाकर भगवान शंकर ने वीरभद्र नामक गण को भेजा, जिसने यज्ञ का विध्वंश कर दिया और स्वयं अखंड समाधि में चले गए. बाद में देवी सती ने ही गिरिराज हिमालय और मैना की पुत्री पार्वती के
रूप में जन्म लिया. इस जन्म में भी पार्वती की आस्था भगवान शंकर के प्रति अक्षुण्ण बनी रही. युवावस्था आने पर वह मनोनुकूल वर की प्राप्ति के लिए तपस्यारत हो गईं. पुत्री के अति कठोर तप को देखकर हिमालय बहुत उद्विग्न हुए. उन्होंने विचार-विमर्श कर अपनी बेटी का विवाह भगवान विष्णु से करने का निर्णय लिया. मन ही मन भगवान शिव को अपना वर मान चुकी देवी पार्वती को यह समाचार सुनकर बड़ा आघात लगा. उन्होंने सखियों को अपने मन की बात बताई. पिता की नजरों से पार्वती को बचाने के लिए उनकी सखियों ने उनको घने जंगल में छिपा दिया. जैसे किसी का हरण किया जाता है उसी तरह उमा की सखियों नें उनको जंगल में छिपा दिया था. इसी कारण इस व्रत का नाम हरितालिका पड़ा, '''आखिभिर्हरितायस्माचस्मात्सा हरितालिका'''. हरत अर्थात हरण करना और आलिका अर्थात सहेली. वन की एक पर्वतीय कंदरा में पार्वती जी ने शिव की प्रतिमा बनाकर उनका पूजन किया. उस दिन भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की तृतीया थी. पार्वती जी ने निर्जल और निराहार व्रत करते हुए दिन-रात शिव की आराधना की. पार्वती की सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और उन्होंने पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वर दिया. भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन भगवान शिव ने पार्वती जी को वर के रूप में प्राप्त होने का वर दिया था. तभी से यह पर्व मनाया जाता है.

             सुहागिन महिलाओं के साथ कुंवारी कन्याओं के लिए भी यह दिन बेहद शुभ होता है. इस दिन सुहागिनों द्वारा पति की दीर्घायु, सुखद वैवाहिक जीवन, संपन्नता और पुत्र प्राप्ति की कामना की जाती है, वहीं कन्याएं सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं. यह व्रत संसार के सभी क्लेश, कलह और पापों से मुक्ति दिलाता है. यह व्रत पति के लिए किया जाता है इसलिए आज भी महिलाएं इस दिन पूरे सोलह श्रृंगार के साथ तैयार होकर पूजा में हिस्सा लेती हैं. साल भर होने वाले अन्य व्रतों की तुलना में तीजा का व्रत सबसे कठिन माना जाता है. दरअसल पूरे दिन बिना खाना-पानी के व्रत रखने के पीछे कुछ मान्यताएं चली आ रही हैं, जिन्हें आज भी उपवास रखने वाली वयोवृद्ध महिलाएं पूरी निष्ठा से मानती हैं. 

कुछ क्षेत्रों में ऐसा कहा जाता है कि उपवास रखने वाली जो स्त्री इस दिन मीठा खाती हैं वह अगले जन्म में चींटी बनती है. फल खाने वाली वानरी, सोने वाली अजगर की योनी प्राप्त करती है. जो दूध का सेवन करती है तो अगले जन्म में वह सांपनी बनती है. बदलते समय के साथ-साथ इसमें कई बहुत तेजी से परिवर्तन आया है. [ये केवल मान्यताएं हैं]

हरितालिका तीज पर आप सभी को शुभकामनाएं...

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