पितृपक्ष
प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से श्राद्धकर्म आरम्भ हो जाते हैं. यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक और उसके अगले दिन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तक चलते हैं. पितरों को अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का यह एक अद्भुत अवसर होता है. जिस व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि में हुई है, उसी तिथि को उसका श्राद्ध मनाया जाता है. मृत व्यक्ति के लिए घर में ब्राह्मण को बुलाकर भोजन कराया जाता है. सभी व्यक्तियों को अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भावना रखते हुए पितृयज्ञ तथा श्राद्धकर्म करना जरुरी होता है. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. इसके फलस्वरुप स्वास्थ्य अच्छा, सुख-समृद्धि में वृद्धि, घर में शांति रहती है.
जिन लोगों की मृत्यु अचानक हो जाती है अर्थात शस्त्र, विष, दुर्घटना में मृत व्यक्तियों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है. इनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो, इनका श्राद्ध चतुर्दशी में ही करने का विधान है. अमावस्या के दिन सभी लोगों का श्राद्ध किया जा सकता है. जिन लोगों की मृत्यु की तिथि ना पता हो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करने का विधान है. इसलिए इसे सर्वपितृ श्राद्ध भी कहा जाता है.
श्राद्ध की तिथि - दिनाँक - वार
पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध 29 सितम्बर शनिवार
प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध 30 सितम्बर रविवार
द्वितीया तिथि का श्राद्ध 1 अक्तूबर सोमवार
तृतीया तिथि का श्राद्ध 2 अक्तूबर मंगलवार
चतुर्थी तिथि का श्राद्ध 4 अक्तूबर बृहस्पतिवार
पंचमी तिथि का श्राद्ध 5 अक्तूबर शुक्रवार
षष्ठी तिथि का श्राद्ध 6 अक्तूबर शनिवार
सप्तमी तिथि का श्राद्ध 7 अक्तूबर रविवार
अष्टमी तिथि का श्राद्ध 8 अक्तूबर सोमवार
नवमी तिथि का श्राद्ध 9 अक्तूबर मंगलवार
दशमी तिथि का श्राद्ध 10 अक्तूबर बुधवार
एकादशी तिथि का श्राद्ध 11 अक्तूबर बृहस्पतिवार
द्वादशी तिथि(सन्यासियों) का श्राद्ध 12 अक्तूबर शुक्रवार
त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध 13 अक्तूबर शनिवार
चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध 14 अक्तूबर रविवार
अमावस/सर्वपितृ श्राद्ध 15 अक्तूबर सोमवार
पितृपक्ष पर विशेष लेखों का क्रम जारी है...
''वशिष्ठ''
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