पिण्डदान व श्राद्ध के लिए बिहार में स्थित गया तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. पितृपक्ष में यहाँ पिण्डदान व श्राद्ध के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है. ऐसी मान्यता है कि जिसका भी पिण्डदान व श्राद्ध यहाँ किया जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. गया तीर्थ को तर्पण, श्राद्ध व पिण्डदान के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है इसके पीछे एक धार्मिक कथा है.
प्राचीन काल में गयासुर नामक एक शक्तिशाली असुर भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. उसने अपनी तपस्या से देवताओं को चिंतित कर रखा था.। उनकी प्रार्थना पर विष्णु व अन्य समस्त देवता गयासुर की तपस्या भंग करने उसके पास पहुंचे और वरदान माँगने के लिए कहा. गयासुर ने स्वयं को देवी-देवताओं से भी अधिक पवित्र होने का वरदान माँगा.
वरदान मिलते ही स्थिति यह हो गई कि उसे देख या छू लेने मात्र से ही घोर पापी भी स्वर्ग में जाने लगे. यह देखकर धर्मराज भी चिंतित हो गए. इस समस्या से निपटने के लिए देवताओं ने छलपूर्वक एक यज्ञ के नाम पर गयासुर का संपूर्ण शरीर मांग लिया. गयासुर अपना शरीर देने के लिए उत्तर की तरफ पांव और दक्षिण की ओर सिर करके लेट गया.
मान्यता है कि उसका शरीर पांच कोस में फैला हुआ था, इसीलिए उस पांच कोस के भूखण्ड का नाम गया पड़ गया. गयासुर के पुण्य प्रभाव से ही वह स्थान तीर्थ के रूप में स्थापित हो गया. गया में पहले विविधि नामों से 360 वेदियां थी, लेकिन उनमें से अब केवल 48 ही शेष बची हैं. आमतौर पर इन्हीं वेदियों पर विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे अक्षयवट पर पिण्डदान करनी जरुरी समझा जाता है.
इसके अतिरिक्त नौकुट, ब्रह्योनी, वैतरणी, मंगलागौरी, सीताकुंड, रामकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, प्रेतशिला व कागबलि आदि भी पिंडदान के प्रमुख स्थल हैं.
[एक मान्यता के अनुसार माता जानकी ने भी यहाँ तर्पण किया था और उसी क्रम में फल्गु नदी, गौ, तुलसी को श्राप मिला और गयाजी स्थित एक वटवृक्ष को वरदान मिला. प्रयास है कि ये कथा भी वास्तविक स्वरूप में आप तक पहुँचे]
पितृपक्ष पर विशेष लेखों का क्रम जारी है...
''वशिष्ठ''
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