सनातन हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को वराह जयंती का पर्व मनाया जाता है. भगवान विष्णु ने इस दिन वराहावतार लेकर हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध किया था. इस बार श्रीवराह जयंती आज यानि 18 सितंबर, मंगलवार को है.
वराह अवतार से जुड़ी कथा इस प्रकार है-
पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया, तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए. भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की. सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया. अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए.
जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने वह भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा. दोनों में भीषण युद्ध हुआ. अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया. इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया. इसके पश्चात् भगवान वराह अंतर्धान हो गए.
विशेष- ज्योतिष के सन्दर्भ से महर्षि पराशर ने बृहत्पाराशरहोराशास्त्र में वराहावतार का उद्भव राहु ग्रह को माना है.
अकारण करूणावरूणालय, वराहरूपधारी श्रीहरि को नमन..
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